काशी के इस कुंड में स्नान करने से होती है संतान की प्राप्ति, कुष्ठ रोग से मिलती है मुक्ति
- लाखों लोग संतान की प्राप्ति को लेकर लगते हैं आस्था की डुबकी
- संतान प्राप्ति के बाद कराया जाता है मुंडन संस्कार व चढ़ता है हलवा-पुरी
- काशी के अस्सी के भदैनी में स्थित है पौराणिक लोलार्क कुंड, सूर्य षष्ठी पर उमड़ेंगे भक्त
रिपोर्ट-ओमकारनाथ
वाराणसी। काशी तीनों लोको से न्यारी है। लोग जहां मोक्ष की कामना लेकर काशी में शरीर त्यागना चाहते हैं, तो वही काशी में संतान की प्राप्ति के लिए भी यहां आते हैं। काशी के अस्सी के भदैनी में स्थित लोलार्क कुंड की विशेष महत्ता है। लोग संतान प्राप्ति और असाध्य कुष्ठ रोग से छुटकारा पाने के लिए इस कुंड में स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान से संतान की प्राप्ति होती है। वहीं असाध्य कुष्ठ रोग से भी छुटकारा मिल जाता है। भादो माह की षष्ठी तिथि पर इसी मान्यता के साथ स्नान करने पहुंचते हैं। इस वर्ष सूर्य षष्ठी पर लोलार्क कुंड में डुबकी लगाने के लिए जनसैलाब उमड़ेगा और आस्था का मेला लगेगा।
काशी के लक्खा मेलों में शुमार लोलार्क षष्ठी स्नान की मान्यता है कि संतान प्राप्ति की कामना लेकर आने वाले दंपतियों की मनोकामना लोलार्केश्वर महादेव पूरी कर देते हैं। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को लोलार्क कुंड में स्नान के लिए दंपती बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, बंगाल, नेपाल सहित आसपास के जिलों से काशी पहुंचेंगे। सिर्फ आसपास के जनपदों या जिलों से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आस्थावान संतान प्राप्ति की कामना से पहुंचते हैं। प्रधान पुजारी लोलार्क कुंड रमेश कुमार पांडे ने बताया कि लोलार्क कुंड में स्नान का विषेश महत्व होता है। हर साल सूर्य षष्ठी पर देश के अलग अलग प्रांतों और देश से आए लाखों श्रद्धालुओं की यहां भीड़ जुटती है। लोलार्केश्वर महादेव मंदिर के प्रधान पुजारी के अनुसार पश्चिम बंगाल स्थित कूच विहार स्टेट के एक राजा चर्मरोग से पीड़ित और नि:संतान थे। यहां स्नान करने से न केवल उनका चर्मरोग ठीक हुआ बल्कि उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
बताते हैं कि राजा ने इस कुंड का निर्माण सोने की ईंट से कराया था। काशी खंड के अनुसार भगवान सूर्य ने लोलार्क कुंड पर सैकड़ों वर्ष तक भगवान शिव की आराधना की थी। उन्होंने जो शिवलिंग यहां स्थापित किया उसे लोलार्केश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। पुराणों में वर्णित है कि देवासुर संग्राम के समय भगवान सूर्य के रथ का पहिया यहां गिरने के कारण कुंड का निर्माण हुआ। आज भी उदय होने वाले सूर्य की पहली किरण इस कुंड में पड़ती है और यहां स्नान मात्र से चर्म रोग दूर होते हैं और संतान कामना पूरी होती है। स्कंद पुराण के काशी खंड के 32वें अध्याय में उल्लेख है कि माता पार्वती ने स्वयं इस कुंड परिसर में स्थित मंदिर में शिवलिंग की पूजा की थी।
प्रधान पुजारी ने बताया कि संतान की कामना से दंपती लोलार्क छठ के दिन भदैनी स्थित लोलार्क कुंड में तीन बार डुबकी लगाकर स्नान करते हैं। कुंड में स्नान के बाद दंपती को एक फल का दान कुंड में करना चाहिए। दंपती अपने भीगे कपड़े भी छोड़ देते हैं। कुंड में स्नान के बाद दंपती को लोलार्केश्वर महादेव के दर्शन करने चाहिए। स्नान के दौरान दंपती जिस फल का दान कुंड में करते हैं, मनोकामना पूर्ति तक उसे उसका सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से भगवान सूर्य प्रसन्न होते हैं और स्नान करने वाली माताओं की मनोकामना पूरी होती है। वह प्रधान पुजारी ने बताया कि यह इकलौता ऐसा शिवलिंग है जिसका पूर्व दिशा की तरफ इसका अर्घा है। वही उनका कहना है कि इस शिवलिंग पर जल चढ़ाने से वह सीधे सूर्य को प्राप्त होता है। जिस से भगवान शिव और सूर्य प्रसन्न होते हैं।
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