काशी हिंदू विश्वविद्यालय: पंडित मदन मोहन मालवीय के संकल्प से बनी एशिया की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी, निजाम ने दान देने से किया इंकार, तो जूती कर दी नीलाम

एक संकल्प, जो बना ऐतिहासिक विश्वविद्यालय
पंडित मदन मोहन मालवीय ने जब अंतरराष्ट्रीय स्तर की यूनिवर्सिटी बनाने का सपना देखा, तो उनके पास इसके लिए धन नहीं था। उन्होंने अमृतसर, दरभंगा और जोधपुर समेत पूरे देश में घूम-घूमकर दान और चंदा एकत्र किया। काशी नरेश ने इस विश्वविद्यालय के लिए जमीन दान में दी।
निजाम की जूती उठाकर कर दिया नीलाम
BHU के निर्माण के लिए जब पंडित मालवीय हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान के पास चंदा मांगने गए, तो निजाम ने इसे 'हिंदू विश्वविद्यालय' बताते हुए दान देने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, गुस्से में उन्होंने पंडित मालवीय पर अपनी जूती फेंक दी। मालवीय ने विनम्रता से वह जूती उठाई और नीलाम कर दी। उससे मिले धन को विश्वविद्यालय की स्थापना में लगा दिया।
काशी नरेश की शर्त जीतकर मांग ली जमीन
प्रचलित कहानी के अनुसार, जब पंडित मालवीय काशी नरेश के पास दान मांगने पहुंचे, तो उन्होंने कहा, "सूर्यास्त तक जितनी जमीन पैदल चलकर नाप लोगे, वह तुम्हारी होगी।" इसके बाद मालवीय जी ने पूरे दिन पैदल चलते हुए विश्वविद्यालय के लिए विशाल भूखंड प्राप्त किया।
BHU बन गया भारतीय शिक्षा का प्रमुख केंद्र
BHU की स्थापना के समय भारत में इस स्तर की कोई यूनिवर्सिटी नहीं थी। अंग्रेजों के शासनकाल में भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते थे, जिससे उनकी संस्कृति और परंपराओं से दूरी बढ़ती थी। इसी कारण पंडित मालवीय ने 1904 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा। आज BHU भारत का एक शीर्ष शिक्षण संस्थान है, जो पंडित मदन मोहन मालवीय के संघर्ष और दूरदर्शिता की मिसाल बना हुआ है।