रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ धारण करेंगे खास मुकुट, बंगाल के कारीगरों ने शील की लकड़ी और केले के रेशे से बनाया 

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वाराणसी। रंगभरी एकादशी पर माता पार्वती के गौना के दिन बाबा विश्वनाथ इस बार शाही पगड़ी की बजाए खास मुकुट धारण करेंगे। बंगाल के कारीगरों ने मुकुट को शील की लकड़ी और केले के रेशे से तैयार किया है। इसे बंगाल में देव किरीट कहा जाता है। शुक्रवार को मुकुट अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकरपुरी ने शिवांजली के संयोजक संजीव रत्न तिवारी को सौंपा। 

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विशेष आर्डर पर कराया गया तैयार 
संजीव रत्न मिश्रा ने बताया कि हर बार बाबा विश्वनाथ रंगभरी एकादशी के दिन शाही पगड़ी में नजर आते थे। इसे काशी के मुस्लिम कारीगर तैयार करते थे। 400 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा होगा जब बाबा विश्वनाथ और माता पार्वती के सिर पर सजने वाले मुकुट को बंगाल के कारीगरों ने तैयार किया है। बाबा विश्वनाथ और माता गौरा गौना के समय बंगाल के कारीगरों की ओर से तैयार किए गए ‘देव किरीट’ मुकुट को धारण करेंगे। इसे विशेष ऑर्डर पर अन्नपूर्णा मंदिर के मंहत शंकर पुरी ने तैयार करवाया है। 


हर साल फाल्गुदन मास की कृष्णए पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। मान्युता है कि इसी दिन शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। वहीं रंगभरी एकादशी के दिन माता पार्वती का गौना होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव पहली बार माता पार्वती के साथ काशी आए थे। इसी कारण से इस एकादशी पर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का विशेष विधान है। रंगभरी एकादशी से काशी में होली की शुरुआत होती है। माता गौरा के गौना के समय काशी के लोग बाबा विश्वनाथ संग होली खेलते हैं। इस बार रंगोत्सव पर काशी के अधिपति बाबा विश्वनाथ के गौने की बारात अनूठे अंदाज में निकलेगी। चांदी के राजसी सिंहासन पर बाबा जब गौना कराने निकलेंगे, तब विश्वनाथ गली अबीर-गुलाल की बौछार से सराबोर हो जाएगी।

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