गंगा की लहरों पर सजी सुरों की महफिल, चैती महोत्सव में कलाकारों ने प्रस्तुतियों से किया मंत्रमुग्ध 

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वाराणसी। गंगा की निर्मल धारा पर तैरते बजड़े पर गुलाब की पंखुड़ियों की खुशबू के बीच सुरों की महफिल सजी। शहनाई की मंगल ध्वनि के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था काशी कला कस्तूरी द्वारा आयोजित चैती महोत्सव  का आगाज हुआ। इसमें लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

इस विशेष आयोजन की शुरुआत प्रसिद्ध शहनाई वादक बांकेलाल की मंगल धुन से हुई। इसके बाद मंच संभाला पद्मश्री उर्मिला श्रीवास्तव और विदुषी सुचरिता गुप्ता ने, जिनकी खनकती आवाजों ने श्रोताओं को लोक गायन की गहराइयों में डुबो दिया। उनके साथ युवा गायिकाएं सुनिति पाठक और श्रेया सोनकर ने भी अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम में नई ऊर्जा का संचार किया।

कार्यक्रम में चैता गौरी, चैती खमाज, निर्गुण चैती (घाटो), चैती ठुमरी, भैरवी चैती के अलावा राग मिश्र काफी में निबद्ध होरी ठुमरी और होरी दादरा जैसी शास्त्रीय और उपशास्त्रीय विधाओं की प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। गुलाब जल की फुहारों और धीमे बहाव के साथ बढ़ते बजड़े पर संगीत की लहरें जैसे गंगा की लहरों से संवाद करती रहीं।

पद्मश्री उर्मिला श्रीवास्तव ने ‘गंगा जल अस जल नहीं’, ‘नईहरे से भैया नाही आइले हो रामा’, ‘धानी रंग चुनरी रंगाइबे पियरवा’ जैसे गीतों के माध्यम से माहौल को संगीतमय बना दिया। वहीं, सुचरिता गुप्ता ने ‘सूतल सइयां के जगावे हो रामा’, ‘रात हम देखली सपनवा हो रामा’ और ‘महुआ मदन रस बरसे हो रामा’ जैसे गीतों से दर्शकों को लोक संगीत की मिठास का अनुभव कराया।

इस आयोजन में तबले पर पं. भोलानाथ मिश्र और श्रीकांत मिश्र तथा हारमोनियम पर मोहित साहनी ने सधी हुई संगत दी। कार्यक्रम का संचालन संस्था की अध्यक्ष डॉ. शबनम खातून ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रभास झा ने किया। आगतों का स्वागत संस्था की संरक्षक आर्यमा सान्याल एवं प्रो. सुनील चौधरी ने किया।

कार्यक्रम की सफलता में प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी, डॉ. स्मिता भटनागर, डॉ. एन.के. शाही सहित शहर के गणमान्य लोग भी उपस्थित रहे। चैती महोत्सव ने न सिर्फ लोक परंपरा को जीवंत किया, बल्कि बनारस की सांस्कृतिक आत्मा को फिर से झंकृत कर दिया।

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