शस्त्र लाइसेंस मामले में वीसी के जरिए पेश हुआ मुख़्तार अंसारी, अब इस तारीख को होगी अगली सुनवाई
बता दें कि पिछली तिथि पर आरोपित मुख्तार अंसारी के अधिवक्ता श्रीनाथ त्रिपाठी, आदित्य वर्मा, शहनवाज परवेज, राकेश मिश्रा, शिवम सिंह ने कोर्ट में कहा कि पूर्व में प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट 1947 प्रभावी था. जिसमें सिर्फ व सिर्फ लोकसेवक ही आरोपित हो सकता था. लोकसेवक के अतिरिक्त कोई सामान्य जन आरोपित नही हो सकता है। इस वाद की घटना फरवरी 1988 के पूर्व की बतायी जाती है, जिसके कारण यह अधिनियम लागू ही नहीं हो सकता है। पूर्व में सिर्फ आई.पी.सी. में ही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करायी गयी थी। इसीलिए एंटी करप्शन नहीं लगाया गया ।
इस स्थिति में प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट 1988 का आरोप निरस्त करते हुए सक्षम न्यायालय में विचरण कराने की गुहार लगाई गई है। इस आवेदन पर अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से सीबी- सीआईडी के अभियोजन अधिकारी उदय राज शुक्ल व एडीजीसी विनय कुमार सिंह की ओर से आपत्ति दाखिल की गई। जिसमें कहा गया कि इस मामले में विवेचना के बाद शस्त्र विभाग के लिपिक और मुख्तार को आरोपी बनाया गया था। आरोपी लिपिक के मृत्यु हो गई। उसकी पत्रावली समाप्त हो गई। सिर्फ आरोपी के पत्रावली चल रही है बचाव पक्ष सिर्फ मुकदमे को लटकाना चाहती है। बचाव पक्ष की अर्जी निरस्त करने की गुहार लगाई गई है।
1990 में दर्ज हुआ था मुकदमा
मुख्तार अंसारी के खिलाफ आरोप है कि दस जून 1987 को दोनाली कारतूसी बंदूक के लाइसेंस के लिए जिला मजिस्ट्रेट के यहां प्रार्थना पत्र दिया था। जिलाधिकारी एवं पुलिस अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर से संस्तुति प्राप्त कर शस्त्र लाइसेंस प्राप्त कर लिया गया था। इसका फर्जीवाड़ा उजागर होने पर सीबीसीआईडी द्वारा चार दिसंबर 1990 को मुहम्मदाबाद थाना में मुख्तार अंसारी, तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर समेत पांच नामजद एवं अन्य अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। जांचोपरांत तत्कालीन आयुध लिपिक गौरीशंकर श्रीवास्तव और मुख्तार अंसारी के विरुद्ध 1997 में अदालत में आरोप पत्र प्रेषित कर दी गई। मुकदमे की सुनवाई के दौरान गौरीशंकर श्रीवास्तव की मृत्यु हो जाने के कारण उनके विरुद्ध वाद 18 अगस्त 2021 को समाप्त कर दिया गया। इस मामले में अभियोजन पक्ष की ओर से प्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन,पूर्व डीजीपी देवराज नागर समेत दस गवाहों का बयान दर्ज किया गया है।
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