काशी में मसाने की होली के विरोध के बीच अघोरपीठ हरिश्चंद्र घाट के पीठाधीश्वर का बयान आया सामने, बताया आध्यात्मिक महत्व, कहा – असामाजिक कहना उचित नहीं
कपाली बाबा ने कहा कि मसाने की होली काशी की धार्मिक परंपराओं में एक विशेष स्थान रखती है। वह लगभग चार दशकों से इस परंपरा को नागा सन्यासियों, अघोर साधकों, अन्य संन्यासी परंपराओं के संतों और किन्नर समुदाय के साथ निभाते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह आयोजन यक्ष, गंधर्व, किन्नर, प्रमथ गण, झोटिंग राण, नागा संन्यासी और अघोर परंपरा के साधुओं का पर्व है।

मसाने की होली की क्या है आध्यात्मिक मान्यता
कपाली बाबा ने बताया कि भगवान शिव समस्त वर्जनाओं से मुक्त हैं। उनके लिए कोई विधि या निषेध लागू नहीं होते। काशी को महाश्मशान कहा गया है, जो महादेव के आनंदमय स्वरूप का प्रतीक है। इसीलिए इसे आनंदवन भी कहा जाता है। यह क्षेत्र अविमुक्त क्षेत्र माना गया है और शिव की कृपा से यह स्थान हमेशा आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर रहता है।
उन्होंने कहा कि काशी उत्सवधाम है, जहां मृत्यु भी एक उत्सव है। इसी परंपरा के तहत प्रत्येक माघ मेले के बाद साधु-संन्यासी महादेव की प्रसन्नता के लिए मसाने की होली खेलते हैं। यह केवल एक धार्मिक आयोजन है, जिसे अधार्मिक या असामाजिक कहना उचित नहीं है।
कपाली बाबा ने कहा कि हर धार्मिक नगरी की अपनी अनूठी परंपराएं हैं, जैसे बरसाने की लट्ठमार होली, ब्रज की लड्डुओं की होली, नाथद्वारा (श्रीनाथजी) की फूलों की होली और उदयपुर के एकलिंगजी की मंवाड़ी होली है। इसी प्रकार, काशी की श्मशान होली को भी लोक परंपराओं के अनुसार देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भूतभावन भगवान शंकर का मुख्य श्रृंगार चिता भस्म ही है, इसलिए महाश्मशान काशी में चिता भस्म की होली खेलना अधार्मिक नहीं, बल्कि शिव भक्ति की एक अनूठी परंपरा है।

कुछ लोग जबरन परम्परा को नकारात्मक रूप देने की कोशिश कर रहे: कपाली बाबा
कपाली बाबा ने यह भी कहा कि कुछ लोग इस परंपरा को विकृत करने और इसे नकारात्मक रूप देने की कोशिश कर रहे हैं, जो उचित नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मसाने की होली के आयोजन में किसी भी प्रकार के नशे या असामाजिक गतिविधियों को बढ़ावा नहीं दिया जाता।
उन्होंने बताया कि इस आयोजन के दौरान भगवान मसान की विशेष पूजा और भगवान दत्तात्रेय की चिता भस्म से आराधना की जाती है। इसके बाद महात्मागण शिव निरमाल्य (चिता भस्म) को अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
उन्होंने कहा कि समय के साथ यह आयोजन एक व्यापक रूप ले चुका है, लेकिन यह धार्मिक मर्यादा के भीतर ही होता है। इसे लेकर हो रहे विरोध पर उन्होंने कहा कि यह परंपरा शिव भक्ति का हिस्सा है और इसे गलत तरीके से पेश करना अनुचित है।
कपाली बाबा के अनुसार, यह आयोजन शिव की अनंत लीला का हिस्सा है और इसे धर्मविरोधी कहना उचित नहीं। उन्होंने लोगों से इस परंपरा को उसकी मूल भावना में समझने और स्वीकार करने की अपील की।

