काशी की अद्भुत परंपरा: भक्तों को दर्शन देने स्वयं काशी में घूमे भगवान, 5 किमी लंबी यात्रा पर निकले भगवान जगन्नाथ, आस्था से सराबोर हुई काशी

Rathyatra mela 2024
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वाराणसी। नाथों के नाथ भगवान जगन्नाथ शनिवार को 14 दिनों के बाद स्वस्थ होकर सैर पर निकले। अस्सी क्षेत्र में स्थित भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा के भव्य मंदिर से भगवान जगन्नाथ की डोली पालकी यात्रा निकाली गई। भगवान जगन्नाथ भक्तों को दर्शन के लिए पालकी पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकले। काशीराज परिवार के सदस्य ने भगवान जगन्नाथ का रथ खींचकर काशी के तीन दिवसीय रथयात्रा मेला की शुरुआत करेंगे। इस दौरान भगवान की आरती उतार कर रथयात्रा निकाली जाएगी। रविवार को घंटा घड़ियाल डमरू के धुन पर भगवान की भव्य आरती की जाएगी।

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भगवान जगन्नाथ जी का भव्य शोभायात्रा निकालने के साथ ही हर हर महादेव, राधे कृष्णा, भगवान जगन्नाथ की जय, का जय घोष हुआ। इस दौरान जैसे ही भगवान डोली पर सवार हुए, डमरूदल, शंखनाद के गूंज से क्षेत्र गूंजायमान हो उठा। लोग डोली को कंधा देने के लिए लालायित नजर आए। लाखों की संख्या में लोग भगवान जगन्नाथ की डोली के साथ चलते रहे। रास्ते भर भगवान जगन्नाथ पर पुष्प वर्षा और अक्षत छिड़ककर महिलाओं ने नाथों के नाथ का स्वागत किया। जहां से भी भगवान जगन्नाथ का डोली निकली, लोगों ने अपने ही स्थान से खड़े होकर भगवान जगन्नाथ बलभद्र और सुभद्रा को प्रणाम किया। डोली यात्रा निकालने के साथ ही पूरा काशी भगवान जगन्नाथ की भक्ति में लीन दिखाई दिया।

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डोली यात्रा जैसे संकुल धारा पोखरा स्थित द्वारकाधीश मंदिर के पास पहुंचती है वैसे ही भगवान का डोली कुछ पल के लिए रुकता है। जिसके बाद वहां पर भी भगवान पर सुभद्रा और जगन्नाथ की मंदिर के महंत रामदास आचार्य ने आरती उतारी। लोगों में प्रसाद वितरण होता है उसके बाद डोली यात्रा आगे बढ़ जाती है।

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18 फीट ऊंचा होता है भगवान का रथ

भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र का रथ शीशम की लकड़ी से श्रीयंत्र के आकार का बना हुआ होता है। रथ की चौड़ाई 21 फीट और ऊंचाई 18 फीट होती है। प्रथम तल पर चारों तरफ पहियों के ऊपर 14 खंभे और द्वितीय तल पर अष्टकोणीय गर्भगृह में छह खंभे लगे हैं। सामने लाल रंग के दो आधे खंभे हैं जो बाहर से तीन तरफ से आच्छादित हैं। रथ की छतरी अष्टकोणीय कमानीदार है। कुल मिलाकर रथ का स्वरूप काफी भव्य है। 

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रथ के शिखर पर चांदी का ध्वज और चक्र

रथ के शिखर पर चांदी का ध्वज और चक्र लगाया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होते हैं तब चांदी के डंडे से चांदी का ध्वज लगाया जाता है। इसमें दोनों और हनुमान जी विराजमान रहते हैं। त्रिकोणीय ध्वज की ऊंचाई पांच फीट और लंबाई डंडे से नोक तक तीन फीट है। अष्टकोणीय गर्भगृह के मुख्य द्वार के ऊपर सामने रजत पत्र पर केंद्र में श्रीगणेश जी एंव ऋद्धि-सिद्धि विराजमना हैं। 

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रथ में लगे होते हैं 14 पहिए

1802 ईस्वी में निर्मित इस रथ में लोहे के 14 पहिए लगाए गए हैं। हर पहिए में 12 तीलियां हैं। आगे के दो पहियों के जरिये रथ को घुमाने के लिए स्टीयरिंग लगाई गई है। रथ के अग्रभाग के केंद्र में सारथी विराजमान होते हैं, जो कांस्य धातु के हैं। इस पर चांदी के पानी की पालीश है। रथ के आगे दो कांस्य के अश्व लगाए जाते हैं। इनके ऊपर चांदी के पानी की पालिश होती है।

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