कालिदास रचित 'विक्रमोर्वशीयम्' शृंखला का हुआ मंचन, दिखा शास्त्रीय संगीत का समावेश

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वाराणसी। महाकवि कालिदास रचित ‘विक्रमोर्वशीयम् के चार मंचन की शृंखला का आगाज गुरुवार को बीएचयू के कला संकाय के सभागार से हुआ। एनएसडी की वाराणसी शाखा के प्रशिक्षुओं ने नाटक का मंचन सरल संस्कृत मिश्रित हिंदी में किया। 90 मिनट के नाटक में शास्त्रीय संगीत का समावेश देखने को मिला। 

नाटक के मुख्य तत्व शृंगार रस में प्राकृतिक सौन्दर्य पर केंद्रित गीत और उन पर नृत्याभिनय विशेष प्रभावी रहा। कुल पांच दृश्यों में बंटे नाटक की शुरुआत राज पुरुरवा से शुरू हुई, जिसने केशी नामक राक्षस से उर्वशी की रक्षा की। दूसरे दृश्य में उर्वशी के प्रेमपत्र का प्रसंग तो तीसरे में पुरुरवा और उर्वशी के मिलन मंचित हुआ। 

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चौथे दृश्य में भरतमुनि के उर्वशी को श्राप के प्रसंग को विस्तृत किया गया। पांचवें और अंतिम दृश्य में पुरुरवा और उर्वशी के गुप्तरूप से जन्मे पुत्र कुमार आयु के प्रसंग का प्रभावी मंचन प्रशिक्षुओं ने किया। रामजी बाली के निर्देशन में मंचित नाटक देशभर से आए विशेषज्ञों की देखरेख में तैयार किया गया। 

विशिष्ट अतिथि राजेश्वर आचार्य, कमलेश दत्त त्रिपाठी व कार्यक्रम संयोजक और एनएसडी वाराणसी के निदेशक रामजी बाली ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। कार्यक्रम के अंत में कमलेश दत्त त्रिपाठी ने सभी कलाकारों को आशीर्वाद प्रदान कर सब के अभिनय की तारीफ की। रामजी बाली ने सभी दर्शकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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