वाराणसी : श्रीराम ने जयंत कौवे की आंख फोड़ी, सती अनुसुइया और ऋषियों से मिले, पंचवटी की पर्णकुटी में किया विश्राम

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रिपोर्टर-आरके सिंह, ओमकारनाथ
 

वाराणसी। विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में शुक्रवार को भरत के अयोध्या वापसी के बाद अब श्रीराम को वन में आने का प्रयोजन पूरा करना था। वह आगे चलने की राह देखने लगे। देवता तो अपने स्वार्थ में इतने उतावले हो गए थे कि छोटी-छोटी बात पर उनकी निष्ठा ही डोलने लगती थी। लेकिन श्रीराम कोई मनुष्य तो थे नही। साक्षात प्रभु थे।

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रामलीला के पंद्रहवे दिन श्रीराम के चित्रकूट से पंचवटी पहुंचने तक का प्रसंग मंचित किया गया। वन में श्रीराम के बल की थाह लेने के लिए इंद्र का पुत्र जयंत कौवे का वेश बनाकर उनके पास गया और सीता के चरण में चोंच मारकर भागने लगा। सीता के पैर से खून बहते देख राम ने एक बाण मारा। जयंत अपनी जान बचाने के लिए देवताओं की शरण में जाने लगा। किसी ने उसकी कोई सहायता नहीं की।

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अंत में वह नारद की शरण में गया। नारद ने उसे राम की शरण में जाकर क्षमा याचना करने को कहा। जब जयंत उनकी शरण में गया तो राम ने उसकी एक आंख फोड़ कर उसे अभयदान दे दिया। इसके बाद श्रीराम वन में अत्रि मुनि के आश्रम में पहुंचे तो मुनि ने उनका आतिथ्य सत्कार करने के बाद उनकी स्तुति की। अनुसूइया ने सीता को स्त्री धर्म सिखाया। वन में श्रीराम मतंग ऋषि से मिले।

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राक्षस विराज ने क्रोध से गर्जना करते हुए सर्प की तरह झपट कर सीता को चुरा लिया तो राम ने सात बाणों से मारकर उसका वध करके सीता को बचा लिया। रास्ते में शरभंग, सुतीक्ष्ण व अगस्त्य आदि ऋषियों से मिलते हुए राम पंचवटी पहुंचे। वहां पर्ण कुटी बनाकर निवास करने लगे। लक्ष्मण ने उनसे कुछ जानने की इच्छा से ज्ञान, विराग, माया, भक्ति,ईश्वर और जीव के भेद को समझाने और शोक, मोह, और भ्रम दूर करने को कहा। 

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श्रीराम ने उनको उपदेश सुनाया। इसे सुनकर लक्ष्मण श्रीराम के चरणों में गिर पड़े और कहा कि मेरा संदेह दूर हो गया। मुझे ज्ञान और नेह हुआ है। यहीं पर आरती के बाद लीला को विराम दिया गया है। अब सोलहवें दिन शनिवार को सूर्पणखा नासिका छेदन, खरदूषण वध, जानकी हरण और रावण-गिद्धराज युद्ध की लीला होगी।
 

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