वाराणसी : विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला का 13वां दिन- भरतजी ने त्याग और प्रेम की मिशाल पेश की, चित्रकूट पहुंचे राजा जनक

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रिपोर्टर- आरके सिंह, ओमकारनाथ
 

वाराणसी। विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के तेरहवें दिन बुधवार की लीला में देवता भी चक्कर मे पड़ गए जब भरत ने प्रेम और त्याग की मिसाल पेश की। चित्रकूट में अयोध्या के राज परिवार ने जिन पारिवारिक मूल्यों और उच्च आदर्शों की स्थापना की वह विरले ही देखने को मिलता है। भरत का खुद वन जाने को कहना यह दर्शाता है कि वह त्याग के लिए ही बने थे।

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चित्रकूट में राम को मनाने के लिए जब भरत ने राम से अपने मन की बात कही तो देवता दुविधा में पड़कर घबरा गए। गुरु वशिष्ट ने भरत को बुलाकर कहा कि राम जिस तरह अयोध्या वापस लौटे वही उपाय करना चाहिए। भरत ने कहा कि आप हमसे उपाय पूछ रहे हैं। वशिष्ठ भरत से राम के साथ वन जाने व लक्ष्मण और सीता को अयोध्या वापस लौटने का उपाय बताते हैं। यह सुनकर भरत इसे अपना सौभाग्य बताते हैं।

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सभी राम के पास गए तो वशिष्ठ ने राम से कहा कि भरत की बात सुनकर विचार करिए। इस पर राम तैयार हो गए। गुरु वशिष्ठ ने भरत से संकोच  छोड़कर अपनी बात कहने को कहा। भरत अपनी माता की करनी पर ग्लानि करने लगे तो राम उन्हें समझाते हैं। भरत ने राम से कहा कि राजतिलक की सब सामग्री साथ लाया हूं, इसे आप सफल कीजिए। मैं लक्ष्मण, शत्रुघ्न को वापस लौटाकर आपके साथ वन चलूंगा। अगर यह बात न ठीक हो तो आप सीता के साथ लौट जाइए। हम तीनांे भाई आपके बदले वन चले जाएंगे। आप वही कीजिए जिसमें आप प्रसन्न हो सके। 

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यह सुनकर सभी देवता दुविधा में पड़ गए। तभी जनक के दूत ने गुरु वशिष्ट को बताया कि जनक जी आए हैं। जनक राम और सीता को कुटिया में देखकर व्याकुल हो गए।  यह देखकर वशिष्ठ ने उन्हें समझाया। जनक की पत्नी सुनयना तीनों रानियों से मिलने लगी। सुनयना पुत्री सीता को गले लगाती हैं। जनक श्रीराम और भरत की महिमा सुनयना को सुनाने लगे। इतने में रात बीत गई। यही भगवान की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया जाता है।

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