वाराणसी : विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला-अयोध्या के आंगन में चार बहुओं के पड़े पांव तो इतराई माताएं 

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रिपोर्टर- आरके सिंह, ओमकारनाथ 

वाराणसी। विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला में गुरूवार को समूची अयोध्या अपनी खुशकिस्मती पर इतरा रही थी। क्यों न इतराती आखिर एक साथ अयोध्या के घर आंगन में चार बहुओं के चरण जो पड़े थे। उसमें में एक जनकनन्दिनी सीता थी जिनका राम के साथ मिलन ही दैवीय इरादे के साथ हुआ था। राजा जनक को पुत्री विदा करने का स्वाभाविक दुःख था, लेकिन एक संतोष भी था कि सीता जिसकी अर्धांगिनी बनी है वह साधारण मनुष्य नही है। रामलीला के सातवें दिन बेहद भावुक प्रसंगों का मंचन हुआ तो अयोध्या के द्वार पर पालकी में बैठे श्रीराम सीता की भव्य झांकी लोगों को सम्मोहित कर गई। सातवें दिन का प्रसंग कुछ यूं था।

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विश्वप्रसिद्ध लीला का सातवां दिन भी रह-रहकर हो रही बारिश के बीच होती रही। लीला स्थल पर बारिश का पानी जम गया। लीला प्रेमी बरसाती, छाते लिए बैठकर प्रभु लीला में मगन रहे। पिछले तीन दिनों से बारिश भी लीला प्रेमियों की आस्था को डिगा नही पा रही है। यहां लीला अद्भुत और लीला प्रेमी भी अद्भुत है। ऐसी लीला नजारा शायद ही कहीं देखने को मिलता हो।

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राजा जनक विदाई से पूर्व दशरथ को जेवनार के लिए बुलाते हैं। सभी को भोजन परोसा जाता है। उसी समय जनकपुर की स्त्रियां परंपरानुसार गारी गाने लगती है। इसे सुनकर दशरथ बहुत प्रसन्न हुए। दहेज का सारा सामान आदि देकर जनक अपनी पुत्री और बरात की विदाई करते हैं। विदाई के दौरान राजा जनक, सुनयना और श्रीराम जानकी के मार्मिक संवाद लोगों की आंखे भिंगो गये। बारात विदा हो कर अयोध्या पहुंचती है। द्वार पर ही पालकी की अप्रतिम झांकी होती है। माताएं राम सीता का परिछन करके उनकी आरती उतार कर महल ले कर आती हैं। राजकुमारों और उनकी बहुओं को सिंहासन पर बैठाया जाता है।

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माताएं उन्हें आशीर्वाद देती है। दशरथ पुत्रों सहित स्नान आदि करके कुटुम्बियों को भोजन कराते हैं। उनको विदा करने के बाद रानियों को बुलाकर कहते हैं कि बहूएं अभी लरिका ( बच्चे ) हैं तिस पर पराये घर से आईं हैं। उन्हें पलकों पर बिठा कर रखना। वह सब को शयन कराने के लिए कहते हैं। शयन की झांकी होती है। मुनि विश्वामित्र आश्रम जाने के राजा दशरथ से विदा मांगते हैं। दशरथ उनसे सदैव कृपा बनाए रखने और दर्शन देते रहने के लिए कहकर उनका आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा करते हैं। यहीं पर आठों स्वरूपों की आरती के बाद लीला को विश्राम दिया गया। आज के प्रसंग के साथ ही राम चरित मानस के बाल कांड का समापन हो जाता है।

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