पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग- जिर्णोद्धार के बाद जगमग हुआ देउरा गांव का उन्मत्त भैरव मंदिर, दर्शन का विशेष महत्व 

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वाराणसी। काशी के पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग पर स्थित देउरा गांव में ऐतिहासिक, पौराणिक व पुरातात्विक महत्व का उन्मत्त भैरव मंदिर है। यह विशाल दुधिया तालाब से सटा है और यहां लगभग 100 वर्ष पुराना एक विशाल पीपल का वृक्ष भी है। आंध्र प्रदेश निवासी चंद्रकला अम्मा द्वारा काशी के पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग पर स्थित दर्जनभर से ज्यादा ऐतिहासिक मंदिरों का जीर्णाेद्धार कराया जा चुका है। स्थानीय लोगों ने बताया कि चंद्रकला अम्मा के द्वारा पंचक्रोशी परिक्रमा के प्रथम व द्वितीय पड़ाव के बीच स्थित उन्मत्त भैरव मंदिर का जीर्णाेद्धार अम्मा ने भव्य तरीके से करवाया। लगभग तेरह लाख रुपए की लागत से बना उन्मत्त भैरव का मंदिर भव्य व मनमोहक रूप के साथ मंदिर प्रांगण का दृश्य अब देखने लायक है।

आंध्र प्रदेश की चंद्रकला अम्मा ने बताया कि काशी एक ऐसी नगरी जो धर्म और आस्था का केन्द्र है, जहां आकर सभी के मन को विश्राम मिलता है,उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर बसी काशी का स्वरुप अर्धचन्द्राकार है। जिस प्रकार भगवान् शिव के मस्तक पर अर्धचन्द्र विराजित है उसी प्रकार पृथ्वी के मस्तक पर काशी सुशोभित है। इस अर्धचन्द्र की दूरी पंचक्रोश की है। काशी रहस्य जो की ब्रह्म्वैवर्त्य पुराण के अंतर्गत आता है में बताया गया है कि यह पंचक्रोश का आकार भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। इसकी पवित्र  प्रदक्षिणा की परम्परा अत्यंत प्राचीन है। अम्मा ने बताया कि उनके द्वारा लगभग दर्जनभर से भी ज्यादा ऐतिहासिक व पौराणिक मंदिरों का जीर्णाेद्धार कराया गया है। उन्होंने बताया कि प्रभु के प्रति उनकी श्रद्धा है जिसके कारण वह यह कार्य करती हैं। उनके इस कार्य में किसी भी एनजीओ और ट्रस्ट का कोई भी योगदान नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि आठ भैरव में से चौथे नंबर के उन्मत्त भैरव हैं। मंदिर पूरी तरह से बनकर और साज सजावट के साथ तैयार है। मंदिर के उद्घाटन के बाद भैरव अष्टमी को भव्य भंडारे का आयोजन भी किया गया है।

चंद्रकला अम्मा ने परिक्रमा मार्ग व विश्राम स्थलों के बारे में बताया कि पंचक्रेाशी यात्रा 25 कोस में पूरी की जाती है। इस यात्रा में कुल 5 विश्राम स्थल अथवा पड़ाव हैं। यह पांचों पड़ाव महत्वपूर्ण स्थल (मंदिर) हैं। पंचक्रोशी यात्रा दक्षिणावर्त रूप से परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करते समय सारे मंदिर दाहिने तरफ मिलते हैं और धर्मशालाएं बायीं तरफ। क्योंकि धर्मशालाओं में जो यात्री निवास करते हैं वे अपना भोजन स्वयं बनाते हैं और नित्य कर्म के लिए भी जाते हैं। इसलिए धर्मशालाए बायीं ओर ही बनाई गई हैं। इन धर्मशालाओं में लगभग 25000 यात्री निवास कर सकते हैं। प्रत्येक पड़ाव के पास एक जलकुंड या जल श्रोत भी है। इसमें यात्री स्नान कर दर्शन पूजन करते हैं। पंचक्रोशी यात्रा के दौरान 108 शिवलिंग, 56 मंदिर, 11 विनयक, 10 शिव मंदिर, 10 देवी, 4 विष्णु, 2 भैरव और 14 अन्य देव हैं, जिनका यात्रा के दौरान दर्शन पूजन का विधान है।

देऊरा गांव के ही निवासी शैलेंद्र पांडेय व राजकुमार पाल ने बताया कि काशी के पंचक्रोशी परिक्रमा मार्ग पर ही हमारा गांव देउरा स्थित है। बचपन से ही हमलोग मंदिर से सटे ऐतिहासिक व पौराणिक दुधिया तालाब में स्नान करने के बाद उसी तालाब का जल लेकर उन्मत्त भैरव मंदिर और विशाल पीपल के वृक्ष को चढ़ाते हैं। शैलेंद्र पांडे ने बताया कि इस तालाब का नाम दूधिया तलाब इसलिए पड़ा कि कुंड का जल एकदम दूध की तरह सफेद था। इसीलिए यह तालाब दुधिया तालाब के नाम से जाना जाने लगा।

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