बनारस की शहनाई और मेटल कास्टिंग क्राफ्ट को मिलेगी पूरी दुनिया में पहचान, जल्द मिलेगा जाईआई टैग

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वाराणसी। बनारस की शहनाई और काशी धातु शिल्प को जल्द ही जीआई टैग मिलेगा। प्रधानमंत्री के आगमन से पूर्व बनारस शहनाई जीआई टैग के लिए भेजी गयी दस्तावेज पूरी होने के बाद जीआई आवेदन चेन्नई भेजा गया है। आने वाले समय में एक बार फिर बनारस की शहनाई और मेटल कास्टिंग क्राफ्ट की धूम पूरी दुनिया में होगी।

भारत रत्न उस्ताद बिसमिल्ला खाँ एवं शहनाई एक दूसरे के पर्यावाची हैं। काशी की शहनाई को पूरी दुनिया में पहुंचाने का काम खॉ साहब ने किया और काशी की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को पूरे तहजीब के साथ बरकरार रखा। बनारसी शहनाई का परचम पूरी दुनिया में लहराया।

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जीआई मैन आफ इण्डिया' के नाम से विख्यात, जीआई विशेषज्ञ, पदमश्री से सम्मानित डॉ रजनीकान्त, जिन्होंने देश के अलग अलग राज्यों से अब तक 126 जीआई आवेदन फाइल की है, ने बताया कि यह गौरवान्वित करने वाला पल होगा। काशी की प्रसिद्ध शहनाई एवं बनारस धातुशिल्प ढलाई क्राफ्ट का जीआई आवेदन मंगलवार को जीआई रजिस्ट्री चेन्नई भेजा गया है और यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काशी आगमन पर सबसे बड़ा उपहार है। 

प्रधानमंत्री ने स्वयं काशी की शहनाई व भारत रत्न उस्ताद विसमिल्ला खां का जिक्र अपने उद्बोधनों में कई बार किया है। वहीं बनारस की शहनाई देश की बौद्धिक सम्पदा में शामिल होने के लिए बनारस धातुशिल्प ढलाई क्राफ्ट भेज दिया गया है। काशी के ढलाई धातु शिल्प का भी बहुत ही प्राचनी इतिहास है और यहां प्राचीन काल के सिक्कों से लेकर धातु की छोटी मूर्तियां, पूजा के पात्र, गंगाजली लोटा, कमण्डल, सिंहासन, धातु की डलिया सहित बनारसी घंटे और घंटियां प्रसिद्ध रहे हैं।

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आज भी कसेरा व विश्वकर्मा समुदाय के लोग इसे परम्परागत रूप से हाथ से तैयार करते हैं और देश विदेश में भेजे जाते हैं। बनारस शहनाई (वाद्य यंत्र) के लिए आवेदन "भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ फाउण्डेशन द्वारा व बनारस धातुशिल्प ढलाई क्राफ्ट के लिए "काशी क्षेत्र मेटल क्राफ्ट प्रोड्यूसर कम्पनी की ओर से नाबार्ड लखनऊ के सहयोग से संस्था हयूमन वेलफेयर एसोसिएशन के फैसिलिटेशन से किया गया है।

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