संकटमोचन संगीत समारोह की अंतिम निशा में संगीत साधकों ने हनुमत दरबार में दी प्रस्तुति

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वाराणसी। संकटमोचन मंदिर में पिछले 98 वर्षों से अनवरत हो रहा संगीत समारोह इस वर्ष 99वें संस्करण में पहुंचा। 20 अप्रैल को शुरू हुआ यह 6 दिवसीय संगीत समारोह सोमवार को अपनी अंतिम संगीत निशा के साथ समाप्त हुआ जिसमे मालिनी अवस्थी ने ख्याल गायकी से सभी का मन मोह लिया। अंतिम निशा का शुभारम्भ भगवान श्रीराम और शबरी के भक्ति पूर्ण प्रसंग से हुआ। 

भक्त शिरोमणि के दरबार में शबरी की भक्ति ओडिसी की भंगिमाओं में मुखर हुईं। प्रख्यात नर्तक एवं पं.केलुचरण महापात्रा के सुयोग्य पुत्र रतिकांत महापात्र ने शबरी प्रसंग के भावपूर्ण अभिनयात्मक नृत्य से प्रस्तुति को यादगार बना दिया। शबरी की प्रतीक्षा को नृत्य के भावों में बारीकी से ढाला गया। वृद्धावस्था में शबरी का चलना, प्रभु की राह देखना और हर दिन निराश होकर अपनी कुटिया की ओर लौटने के दृश्यों के दौरान ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सचमुच शबरी ही संकटमोचन में आ गई हो। शबरी के उल्लास को रतिकांत महापात्र ने न स़िर्फ आंगिक अभिनय से बल्कि भावों से भी अभिव्यक्त किया।

छठी निशा की द्वितीय प्रस्तुति कोलकाता की संयुक्ता दास ने राग मारूविहाग में गायन किया। पटियाला और सेनिया मैहर घराने की विशिष्टता का प्रभाव बंदिश की शुरुआत में आलाप से ही दिखा। पटियाला घराने के उस्ताद रजा अली खान और सेनिया घराने के पं. समरेश चौधरी से संगीत की शिक्षा लेने वाली संयुक्ता दास ने उप शास्त्रीय गायन की शिक्षा विदुषी पद्म विभूषण गिरिजा देवी से प्राप्त की है। 

प्रस्तुति के तीसरे चरण में उप शास्त्रीय गायिका मालिनी अवस्थी ने बाबा के दरबार में हाजिरी लगाई। यूं तो उनकी प्रस्तुति उत्तरार्ध में होनी थी किंतु अपरिहार्य कारणों से डॉ. यल्ला वेंकटेश्वर के मृदंग वादन से पहले उनका कार्यक्रम रखा गया। मालिनी अवस्थी ने छोटा ख्याल में गायन की शुरुआत राग बिहागड़ा से की। माता सीता का पता लगाने के लिए हनुमानजी के लंका प्रस्थान करने के कथानक पर आधारित इस बंदिश में उन्होंने अपने गुरु मां विदुषी गिरिजा देवी के ठसके के साथ सुर लगाए। इस बंदिश के बोल थे ‘लंका जो धाय गए स्वामी को काज करन’। 

इस समारोह की अंतिम निशा पर संकटमोचन मंदिर के महंत पंडित विश्वम्भरनाथ मिश्रा ने कहा कि हम लोग इस भौतिक दुनिया में हैं और इसमें संकट ऐसे ही आता है। पिछले दो सालों में लोग ट्रॉमेटिक कंडीशन में चले गए थे।  हमने दो साल हिम्मत बांधकर हमने ऑनलाइन मोड में करवाया ताकि इसकी कंटीन्यूटी न भंग हो।  इस बार 99वें वर्ष में यह ऑफलाइन मोड में हो रहा है और जो महामारी है उसके निराकरण का साधन भी हनुमान जी हैं। 

वहीँ धर्म और मजहब की बार करते हुए उन्होंने कहा कि संगीत ही ऐसी जगह है जहां कोई धर्म और मजहब नहीं है।कितने ही मुस्लिम कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी है। उन्होंने कहा कि सबको एक कॉमन एजेंडा लेकर चलना चाहिए इस विशाल देश में कई डायमेंशन है पर हमें एक होकर चलना होगा और सबको एक करने के लिए संगीत से बड़ा कोई हथियार नहीं है। 

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SANKATMOCHAN SANGEET SAMAROH

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