ओझा, सोखा से झाड़-फूंक नहीं उपचार करायें, कुपोषण को दूर भगायें 

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वाराणसी। आराजीलाइन के अयोध्यापुर निवासी अभिषेक मौर्य के सात माह के बेटे ध्रुव ने मां का दूध पीना लगभग छोड़ दिया। ऊपरी आहार लेते ही उसे उल्टी-दस्त होने लगती। शरीर सू्खता जा रहा था। परिजनों को लगा कि यह सब किसी के टोटका कर देने की वजह से हुआ है। तब उन्होंने फेसुड़ा (चंदौली) में रहने वाले एक ओझा के यहां झाड़-फूंक कराना शुरू किया। ओझा ने बच्चे को एक ताबीज पहनाया और कहा कि यह ताबीज जैसे-जैसे पुराना होगा बच्चा उतना ही स्वस्थ होता जायेगा। पर हुआ इसका ठीक उल्टा। ताबीज पहनाने के बाद दिन गुजरते गए और ध्रुव की हालत और बिगड़ती गयी । बच्चे की मां पूनम देवी बताती हैं यह तो अच्छा हुआ कि आशा दीदी उनके यहां आ गयीं। उन्होंने हमें समझाया कि किसी टोटके की वजह से बीमार नहीं है। वह कुपोषित है और उसे तत्काल उपचार की जरूरत है।

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आशा दीदी (ममता) ने बच्चे को एनआरसी में भर्ती कराने में मदद की। पिछले 6 दिसंबर को ध्रुव जब एनआरसी में भर्ती हुआ तब उसका वजन 7.88 किलोग्राम था। भर्ती होने के बाद 14 दिनों तक चले उपचार में बच्चा न केवल ठीक हुआ बल्कि उसका वजन भी बढ़ कर 9 किलोग्राम हो गया। इसी तरह तुलसीपुर  महमूरगंज की पूजा की आठ माह की बेटी संतोषी की भी हालत ध्रुव जैसी ही थी । पूजा बताती है कि संतोषी का वजन लगातार कम होने के साथ ही उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी । तब एक रिश्तेदार के बताने पर वह भेलूपुर में रहने वाले एक तांत्रिक के यहां पहुंची।

तांत्रिक ने बताया कि उसकी बेटी पर प्रेत बाधा है। यह प्रेत उसकी बेटी के शरीर का खून पी रहा है, इसी से वह कमजोर होती जा रही है। प्रेत बाधा दूर करने के नाम पर तांत्रिक उससे धन एंेठता रहा लेकिन बेटी ठीक नहीं हुई। बेटी के बीमार होने की जानकारी होने पर आशा कार्यकर्ता मंजू उसके घर आयीं। समझाया कि संतोषी का उपचार कराना होगा। उन्होंने ही उसे एनआरसी में 8 दिसंबर को भर्ती कराया। तब उसका वजन 6 किलो 50 ग्राम था। 14 दिनों के उपचार के बाद संतोषी भी अब काफी ठीक है। उसका वजन बढ़कर 8 किलोग्राम हो चुका है।

पं. दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय स्थित पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) की आहार सलाहकार विदिशा शर्मा बताती है कि यह कहानी सिर्फ ध्रुव व संतोषी की ही नहीं है। यहां भर्ती होने वाले उनके जैसे अन्य कई बच्चों के अभिभावक भी ध्रुव व संतोषी के परिजनों की ही तरह भ्रम की स्थितियों से गुजर चुके होते हैं। कुपोषण की समस्या से जूझ रहे बच्चे की बिगड़ती हालत का कारण वह जादू-टोना मानकर पहले ओझा, सोखा से झाड़फूंक कराते है और जब स्थितियां ज्यादा खराब हो जाती हैं। तब उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है और वह उपचार कराना शुरू करते हैं। वह कहती हैं कि बच्चों में कुपोषण का लक्षण नजर आते ही उसे तत्काल स्वास्थ्य केंद्र या एनआरसी ले जाना चहिए ताकि उसका सही उपचार हो सके।

क्या है कुपोषण - पं.दीन दयाल चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक व बाल रोग विशेषज्ञ डा. आरके सिंह बताते हैं कि ‘आहार में पोषक तत्वों का ठीक ढंग से शामिल न होना ही कुपोषण की समस्या को जन्म देता है। कुपोषण के कारण बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे वह आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। कुपोषण के कारण बच्चे में एनीमिया, मानसिक विकलांगता जैसी बीमारियां भी होती है। यदि इसका इलाज समय पर नहीं कराया गया तो इसे बाद में ठीक कर पाना मुश्किल होता है। इससे बच्चे की मृत्यु भी हो सकती है।

कुपोषण से बच्चे को बचाएं - पोषण पुनर्वास केन्द्र की आहार सलाहकार विदिशा शर्मा कहती हैं - पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन और उचित देखभाल ही बच्चे को कुपोषित होने से बचाता है। शिशुओं के लिए इस बात कर खास तौर पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि उसे छह माह तक मां के दूध के अलावा कुछ भी न दिया जाय। छह माह से दो वर्ष तक के बच्चे को स्तनपान कराने के साथ-साथ ऊपरी पोषक आहार दिया जाना चाहिए। शुरू में उसे फलों का जूस या दाल का पानी चावल का माड़ दिया जा सकता है। चूंकि इस समय उसे दांत नहीं निकला होता लिहाजा उसे उबला या भांप में पकाया हुआ सेब, गाजर, लौकी, आलू या पालक आदि मसल कर दे सकते हैं। बाद में उसे दलिया, खिचड़ी, बेसन या आटे का हलुआ भी दिया जा सकता है। शिशु को पोषक आहार मिले, इसके लिए एक बेहतर और संतुलित आहार योजना का पालन करना चाहिए। इतना ही नहीं बच्चे के खाने की आदतों पर नजर रखना चाहिए। यदि बच्चा कुपोषण का शिकार होता नजर आता है तो उसका तत्काल उपचार शुरु कराना चाहिए।
 

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