IMS-BHU में मेडिकल स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए 465 लोगों ने किया है देहदान, 24 साल के युवा से लेकर, 82 साल के बुजुर्ग तक शामिल

WhatsApp Channel Join Now

रिपोर्ट- ओमकार नाथ

वाराणसी। आईएमएस- बीएचयू के एनाटॉमी विभाग में मेडिकल स्टूडेंट्स की प्रायोगिक पढ़ाई के लिए अब तक 465 महादानियों ने अपनी बॉडी को डोनेट किया है। इसमें 24 साल के युवा से लेकर 82 साल तक के बुजुर्ग शामिल हैं। एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर रोयना सिंह ने कहा कि ऐसे जज्बे वाले लोगों की बदौलत की मेडिकल छात्रों को पढ़ाई के लिए शव मिल पा रहे हैं। 

छह महीने पहले 24 साल के युवा ने की बॉडी डोनेट

एनाटॉमी विभाग की प्रोफेसर रोयना सिंह ने कहा कि बॉडी डोनेशन एक महादान है, जो अपने शरीर को दान में देते हैं वो देवता के ही स्वरुप हैं। प्रोफेसर रोयना ने बताया कि जब छह महीने पहले 24 साल का युवा अपनी बॉडी डोनेट करने यहां आया था तो उससे हम लोगों ने पूछा कि वो अपनी बॉडी क्यों डोनेट करना चाहते हैं, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि वो देश के लिए एक अच्छा कार्य करना चाहते हैं।

50 से 65 साल के लोग बॉडी डोनेशन में सबसे आगे

प्रोफेसर ने बताया कि 50 से 65 साल के लोग बॉडी डोनेशन में सबसे आगे हैं। प्रोफेसर रोयना सिंह ने बताया कि बॉडी डोनेशन में महिलाओं का प्रतिशत काफी कम है। उन्होंने बताया कि हमारे हिन्दू धर्म में मान्यता है कि लोग अपने बड़ों के अंतिम इच्छा को हमेशा पूरा करना चाहते हैं। इसलिए जब भी कोई बॉडी डोनर की मौत होती है उनका परिवर हमें खुद संपर्क करता है। लोग दूसरे शहरों से भी कॉल करते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि डोनर का परिवार विदेश या दूसरे शहर होता है तो इस स्थिति में हम डोनर के बॉडी को उनके परिवार के अंतिम दर्शन तक पूरी तरह सुरक्षित रखते हैं। 

बॉडी डोनेशन की प्रक्रिया पर बात करते हुए प्रोफसर रोयना ने बताया कि इच्छुक व्यक्ति बॉडी डोनेशन का एक फार्म फिल करता है। उस पर 10 रुपये का एक स्टाम्प लगता है। जिसमें डोनर्स लिखते और हस्ताक्षर करते हैं कि वे अपनी स्वेच्छा से बॉडी डोनेट करना चाहते हैं। इसके बाद एनाटॉमी एक्ट के द्वारा ये पास किया जाता है। डोनर की मृत्यु के बाद उनकी बॉडी यहां लाई जाती है। 

सालों तक बॉडी रहती है सही सलामत

प्रोफेसर रोयना ने बताया कि एक बॉडी को तीन साल तक केमिकल की मदद से सही सलामत रखा जाता है। प्रायोगिक उपयोग के बाद बॉडी को दो तरह से डिस्चार्ज किया जाता है। पहला तो बॉडी से अंग निकाल कर उसे लैब में बच्चों को समझाने के लिए रखा जाता है, जो सौ सालों तक सही रहते हैं। उसकी एक पूरी प्रक्रिया होती है, दूसरा हम बॉडी के प्रायोगिक पढ़ाई के बाद उसके हड्डियों को लैब में रख देते हैं, ताकि इससे भी बच्चे पढ़ सके। इस तरह हम बॉडी के हर पार्ट्स का उपयोग शिक्षा के लिए करते हैं।

VIDEO-

Share this story