BHU स्थापना दिवस विशेष : महामना ने सबसे पहले डाली थी संस्कृत विद्या धर्म संकाय की नींव, अंग्रेज गवर्नर ने रखा था नींव का पत्थर 

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रिपोर्ट : ओमकारनाथ 

वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 4 फरवरी 1916 को बसंत पंचमी के दिन महामना मदन मोहन मालवीय ने गांधी जी और देश के सभी राजाओं और प्रतिष्ठित जनों, काशी के विद्वतजनों और काशी के प्रसिद्द पहलवानों के समक्ष अंग्रेज गवर्नर लार्ड हार्डिंग से नींव का पत्थर रखवाया था। ट्रामा स्नेटर में आज भी मौजूद यह स्थापना पत्थर विश्वविद्यालय के इतिहास का गुणगान गा रहा है। 104 वर्षों की सफल यात्रा तय कर चुके इस विश्वविद्यालय ने अनेकों उतार चढ़ाव देखें हैं। 

इस विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद सबसे पहले किस संकाय का निर्माण हुआ। इस विश्वविद्यालय के निर्माण का क्या उद्देश्य था और महामना के इस सपने को किस तरह से आज भी यह विश्वविद्यालय आगे ले जा रहा है, इसपर Live VNS विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्रा, ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ गिरजा शंकर शास्त्री से विस्तार पूर्वक बात की। पेश है इस बातचीत के मुख्य अंश। 

अंग्रेज़ गवर्नर ने रखी नींव 
ज्योतिष विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ गिरजा शंकर शास्त्री ने बताया कि 4 फरवरी माघ शुक्ल पंचमी अर्थात बसंत पंचमी को महामना मदन मोहन मालवीय ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना की, जिसका स्थापना पत्थर आज भी ट्रामा सेंटर में लगा हुआ है। महामना इस ज्ञान प्रवाह के संकुल को गंगा के तट पर बनाना चाहते थे, इसलिए गंगा के बगल में इसकी नींव उस समय भारत के अंग्रेज गवर्नर जनरल चार्ल्स बेरन हार्डिंग ऑफ़ पेंशर्टस के हाथों रखवाई। अंग्रेज़ गवर्नर जनरल ने नींव का पत्थर रखा। 

ओरियंटल कालेज के नाम से शुरू हुआ महाविद्यालय 
डॉ गिरजा शंकर शास्त्री ने बताया की इसके कुछ ही दिनों बाद बरसात के मौसम में मां गंगा ने अपना रौद्र रूप दिखाया और यह स्थान जलमग्न हो गया। ऐसे में विश्वविद्यालय जल्द से जल्द शुरू करने के लिए कटिबद्ध महामना ने विश्वविद्यालय परिसर में सबसे पहले ओरियंटल कालेज के नाम से संस्कृत महाविद्यालय की शुरुआत की जिसे आज हम सभी संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के रूप में प्रसिद्द है। इसके बाद  धीरे-धीरे संकाय बनते गए और आज विश्वविद्यालय के वृहद् स्वरुप में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 

बीएचयू में नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालय का भाव 
सामाजिक विज्ञानं संकाय के डीन प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कोई आम विश्वविद्यालय नहीं है। यह विश्वविद्यालय प्रतीचि-प्राची का मेल सुन्दर है। मालवीय जी के दिमाग में ये था कि हमारे देश में नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला विश्वविद्यालय था, जिनको आतातियों और आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया। हमारे पास नालंदा जैसा विश्वविद्यालय था तो उसका निर्माण होना चाहिए। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला का भाव है। 

स्थापना दिवस पर गांधी जी सहित सभी राजा-महराजा हुए थे उपस्थित  
प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्रा ने आगे बताया कि 1916 में विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। स्थापना स्थल ट्रामा सेंटर में है। स्थापना दिवस पर गांधी जी के साथ  उस समय देश के सभी राजा-महराजाओं की उपस्थिति हुई।  बनारस के सभ्रांत लोग इसकी स्थापना के लिए मौजूद रहे। बनारस की पांडित्य परम्परा की उपस्थित थी। संगीत, आयुर्वेद और ज्ञान परम्परा की उपस्थिति थी। इसके अतिरिक्त मालवीय जी ने पहली बार स्थापना के समय काशी के पहलवानों को भी आमंत्रित किया था और सभी पहुंचे भी थे, क्योंकि पंडित मदन मोहन मालवीय ने ही कहा था कि दूध पियो कसरत करो।  

खेल और कुश्ती से महामना का था लगाव 
कौशल किशोर मिश्रा ने आगे बताया कि मालवीय जी का काशी के पहलवानों का आह्वान बताता था कि वो खेल में रूचि रखते थे और खासकर कुश्ती में।  उन्होंने बताया कि आज भी सेन्ट्रल ऑफिस के पीछे वो अखाड़ा मौजूद है जहां पहलवान उस समय कुश्ती किया करते थे और आज भी बिड़ला और राधा राम मोहन छात्रावास के कुछ छात्र वहां कुश्ती का अभ्यास करते हैं।  

ज्ञान को वास्तव में प्रतिपादित करता है बीएचयू 
उन्होंने बताया कि यह विश्वविद्यालय खेल, शिक्षा, संगीत, साहित्य, ज्ञान, विज्ञान, टेक्नोलॉजी, आयुर्वेद और चिकित्सा का एक अद्भुत मेल है और ऐसा विश्वविद्यालय पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। बीएचयू दुनिया का एक ऐसा दुनिया का ऐसा अभिनव और अकेला विश्वविद्यालय है जो ज्ञान को वास्तव में प्रतिपादित करता है और ज्ञान को वैश्विक बनाता है। 

कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि यहीं से डायना नामक महिला ने काशी पर एक अद्भुत किताब लिखी थी। मोतीचंद ने काशी पर अद्भुत किताब लिखी थी। आचार्य पद्मविभूषण बलदेव आचार्य ने काशी की पांडित्य परम्परा लिखी थी। इसी विश्वविद्यालय के छात्र थे या किसी न किसी रूप में विश्वविद्यालय से जुड़े हुए थे। यह विश्वविद्यालय अप्रितम है।  यह विश्वविद्यालय संस्कार और ज्ञान के साथ ही राष्ट्र के प्रति समपर्ण का विश्वविद्यालय है।

मालवीय जी जल्दीबाज़ी में थे 
प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि बहुत अधिक शुभ घड़ी को मानाने वालों में से नहीं थे। वो पंचांग को मानते थे। वो ज्योतिष को मानते थे लेकिन तात्कालिक परिस्थितियों में उन्हें स्थापना महत्वपूर्ण लगी विश्वविद्यालय कि, तो जैसे ही सारी तैयारियां पूरी हुईं उन्होंने स्थापना करवा दी। क्योंकि वो जल्दीबाज़ी में थे और जल्दीबाज़ी में इसलिए थे क्योंकि उस समय भारत गुलाम था और भारत में शिक्षा का आभाव था और वो एक नए नालंदा की स्थापना करना चाहते थे। 

प्रोफ़ेसर कौशल किशोर मिश्रा ने बताया कि मालवीय जी कर्मकांडी और धर्म और भवन में आस्था रखने वाले थे, जब उन्हने गांधी जी के साथ विश्वनाथ जी के दर्शन किये तो वहीँ बाबा विश्वनाथ से माँगा था की हे काशी विश्वनाथ आप हमारे यहां आकर ठहर जाइये, जिसके बाद भव्य काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। ये विश्वनाथ मंदिर का बाबा विश्वनाथ के धाम से अन्योनासिक मंदिर है।

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