आजादी का अमृत महोत्सव : वाराणसी की खास तिरंगी बर्फी को अब मिलेगी अलग पहचान, डॉ रजनीकांत ने भेजा जीआई पंजीकरण के लिए आवेदन
वाराणसी। देश की आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। इस अमृत महोत्सव में वाराणसी से एक वर्ष में 75 सामान के जीआई पंजीकरण के लिए आवदेन किया गया है। इन आवेदनों में 75वां नंबर मिला है काशी की खास तिरंगी बर्फी को, जिसके लिए पद्मश्री डॉ रजनीकांत ने जीआई के लिए चेन्नई स्थिति कार्यालय में पंजीकरण के लिए आवेदन भेजा है।
बनी 75 वां उत्पाद
पद्मश्री डॉ रजनीकांत ने बताया कि बनारस जो दुनिया के लिए हमेशा आकर्षण का केन्द्र रहा है और हस्तशिल्प एवं हथकरघा मिठाईयों, बनारसी साड़ी, लंगड़ा आम, शहनाई, तबला, एवं पान के लिए जरूर से जाना जाता है। देश की बौद्धिक सम्पदा में जीआई पंजीकरण के माध्यम से शुमार होने की तैयारी में है, जिसमें आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में 75वें उत्पाद के रूप में स्वाधीनता आन्दोलन से जुड़ी प्रसिद्ध मिठाई बनारस की तिरंगी बर्फी का जीआई आवेदन होने के लिए चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री में भेजा जा चुका है।
साल भर में 75 आवेदन
उन्होंने बताया कि आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष 75वें वर्ष में एक ही वर्ष के अन्दर 75 जीआई आवेदन भेजने का लक्ष्य तय कर लिया गया था और 05 अगस्त 2021 से इस लक्ष्य को पाने की प्रक्रिया जम्मू डिवीजन से बसोहली पाश्मिना के साथ शुरू हुई एवं महाराष्ट्रा, उड़ीसा, अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, त्रिपुरा, आसाम, दादरानगर हवेली, झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखण्ड राज्यों से होते हुए उत्तर प्रदेश में विभिन्न जनपदों से होकर वाराणसी पहुंची और बनारस तिरंगी बर्फी को इस वर्ष अकेले संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा फैसिलिटेट की गयी 75वें उत्पाद के रूप में जीआई रजिस्ट्री को भेज दिया गया।
महानगर उद्योग व्यापार समिति ने किया है आवदेन
उन्होंने बताया कि तिरंगी बर्फी का आवेदन महानगर उद्योग व्यापार समिति द्वारा किया गया है। इस 75 उत्पादों को जीआई पंजीकरण में सहयोग के लिए नाबार्ड, उत्तराखण्ड आर्गनिक कमोडिटी बोर्ड, उत्तराखण्ड सरकार, यूयचयचडीसी-देहरादून, त्रिपुरा एवं ट्राईफेड-नई दिल्ली ने पूरा सहयोग प्रदान किया और स्थानीय सम्बन्धित संस्थाओं के आवेदन के माध्यम से ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन के तकनिकी सहयोग से यह 75 का लक्ष्य सम्भव हो पाया, जिसके लिए संस्था सभी की आभारी है।
भारत हो रहा लोकल से ग्लोबल
उन्होंने कहा कि देश के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बचाने व बढ़ाने का अमृतफल निश्चित तौर पा आने वाले वर्षों में इस राष्ट्र के साथ साथ इन उत्पादों से जुडे सभी शिल्पियों, बुनकरों, किसानों, स्थानीय निर्माताओं के साथ साथ निर्यातकों को भी देश की बौद्धिक सम्पदा को जीआई के माध्यम से विश्व बाजार में पहुंचाने का गौरव प्राप्त होगा और जो उत्पाद पंजीकृत हो गए हैं, व विश्वबाजार में आत्मनिर्भरत भारत और डिजिटल इण्डिया के माध्यम से लोकल से ग्लोबल हो रहे हैं।
बनारस के 12 सामान प्रक्रिया में शामिल
बता दें कि किसी एक संस्था (ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन) के प्रयास से अभी तक भारत वर्ष में 75 जीआई आवेदन एक वर्ष में नहीं किया गया था। काशी की संस्था ह्यूमन वेलफेयर एसोसिएशन ने डॉ रजनीकान्त के नेतृत्व में जीआई फैसिलिटेशन द्वारा यह मुकाम हासिल किया है जिसे छू पाना लगभग नामुमकीन है। इसके पूर्व में भी बनारस और पूर्वांचल के 18 उत्पादों को जीआई का टैग प्राप्त हो चुका है एवं बनारस के नए 12 उत्पाद प्रक्रिया में शामिल हो चुके हैं जिसमें तिरंगीबर्फी, शहनाई, तबला, लालपेड़ा, लंगड़ाआम, सहित कई उत्पाद शामिल हैं।
क्यों बनना शुरू हुई तिरंगी बर्फी
बता दें कि आजादी का आंदोलन जब तेज हुआ तो अंग्रेजों ने बनारसी पान पर रोक लगा दी। ऐसे में स्तंत्रता सेनानियों की राय पर राम भंडार में पहली बार तिरंगे के रंग वाली तिरंगी बर्फी बनी तो अंग्रेजों के होश उड़ गए थे। तिरंगे पर रोक के दौर में लोग तिरंगी बर्फी हाथों में लिए घूमते थे। इसके बाद बनारस से ही जवाहर लड्डू, गांधी गौरव, मदन मोहन, वल्लभ संदेश, नेहरू बर्फी के रूप में राष्ट्रीय मिठाइयां सामने आईं। तिरंगी बर्फी और तिरंगे जवाहर लड्डू में आज की तरह रंग का उपयोग नहीं हुआ था। हरे रंग के लिए पिस्ता, सफेद के लिए बादाम और केसरिया के लिए केसर का प्रयोग कर तिरंगे का रूप दिया गया था।

