वाराणसी में संस्कृत विश्वविद्यालय का 42वां दीक्षांत समारोह संपन्न, राज्यपाल ने 31 मेधावियों को दिए 56 गोल्ड मेडल
वाराणसी। डॉ. सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय का 42वां दीक्षांत समारोह धूमधाम से संपन्न हुआ। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने 31 मेधावी विद्यार्थियों को 56 स्वर्ण पदकों से सम्मानित किया। टुंपा राय ने सर्वाधिक 7 स्वर्ण पदक जीतकर समारोह में अपनी विशेष पहचान बनाई। इसके साथ ही राज्यपाल ने चंदौली जिले के प्राथमिक स्कूलों के छात्रों को भी शैक्षणिक प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए सम्मानित किया।
आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बनने की अपील
अपने प्रेरणादायक संबोधन में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने कहा कि हमें कुछ ऐसा कार्य करना होगा जिससे आने वाली पीढ़ियां हमें याद रखें। उन्होंने विशेष रूप से संस्कृत के क्षेत्र में और अधिक काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू किए गए अटल आवासीय विद्यालयों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ये विद्यालय श्रमिकों के बच्चों की शिक्षा के लिए बनाए गए हैं, और हमारा कर्तव्य है कि हम इन बच्चों को उन तक पहुंचाएं, क्योंकि बहुत से लोगों को इन विद्यालयों के बारे में जानकारी नहीं है। राज्यपाल ने अपील की कि श्रमिकों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए समाज के सभी वर्गों को अपना योगदान देना चाहिए।
बेटियों की शिक्षा में चुनौतियाँ
राज्यपाल ने एक उत्कृष्ट महिला खिलाड़ी, आकांक्षा वर्मा की कहानी सुनाई, जिसे इस दीक्षांत समारोह में गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। उन्होंने बताया कि आकांक्षा के पिता एक मोबाइल रिपेयरिंग कारीगर हैं, जिन्होंने अपनी बेटी को विदेश भेजने के लिए कर्ज लेकर पैसे जुटाए। जब दोबारा पैसे नहीं जुट पाए, तो उसकी माँ ने अपने गहने बेचकर आकांक्षा को विदेश भेजा। राज्यपाल ने कहा कि बेटियों को पढ़ाना और उन्हें आगे बढ़ाना बेहद चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यदि परिवार दृढ़ संकल्पित हो, तो हर चुनौती को पार किया जा सकता है।
भारत से हुई गणित और विज्ञान की उत्पत्ति
एनएएसी के चेयरमैन अनिल सहस्त्रबुद्धे ने अपने भाषण में कहा कि यह विश्वविद्यालय न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में शिक्षा के विस्तार और ज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी रहा है। उन्होंने कहा कि यह धारणा गलत है कि विज्ञान और गणित की उत्पत्ति यूरोप से हुई है। असल में, गणित, विज्ञान, और भौतिकी की नींव भारत से रखी गई, जो बाद में ईरान और अमेरिका तक पहुँची। हालांकि, आज इन क्षेत्रों में पश्चिमी देशों की रिसर्च हमसे आगे हो चुकी हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इनका मूल हमारे देश से ही निकला है।
महान भारतीय शासकों का योगदान क्यों नहीं पढ़ाया गया?
उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय ने समारोह में मेडल विजेताओं से आग्रह किया कि वे देश के लिए प्रेरणा बनें। उन्होंने कहा कि शिक्षा राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, और हमें राम, कृष्ण और भगवान शिव जैसे एकता के प्रतीकों से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अकबर को महान पढ़ाया गया, लेकिन चंद्रगुप्त मौर्य और राणा प्रताप जैसे महान शासकों का उल्लेख क्यों नहीं किया गया। उपाध्याय ने यह भी कहा कि जिस नेता ने देश को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया, उनके नेतृत्व को काशी में क्यों नजरअंदाज किया गया?
टुंपा राय को 7 स्वर्ण पदक मिले
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा ने बताया कि 42वें दीक्षांत समारोह में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने मेधावी छात्रों को पदक प्रदान किए। इस साल 31 मेधावियों को कुल 56 गोल्ड मेडल मिले, जिनमें से सबसे अधिक 7 स्वर्ण पदक टुंपा राय को दिए गए। टुंपा राय को निंबार्क वेदांत में आचार्य की उपाधि के साथ विभिन्न श्रेणियों में स्वर्ण पदक प्राप्त हुए। कुलाधिपति ने मंच से कुल 21 छात्रों को व्यक्तिगत रूप से स्वर्ण पदक प्रदान किए।
डीजी लॉकर के माध्यम से उपाधियाँ ऑनलाइन जारी
कुलपति प्रोफेसर बिहारी लाल शर्मा ने जानकारी दी कि इस वर्ष 13,733 उपाधियाँ ऑनलाइन जारी की गई हैं। डीजी लॉकर के जरिये एक बटन क्लिक करके यह प्रक्रिया पूरी की गई, ताकि पास आउट छात्रों को अपनी उपाधियाँ आसानी से मिल सकें। इस वर्ष 9402 लड़कों और 4331 लड़कियों को उपाधियाँ प्राप्त हुईं, जिनमें से शास्त्री वर्ग में सबसे अधिक 8305 विद्यार्थी पास आउट हुए हैं।
17 स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाली 8 छात्राएँ
इस दीक्षांत समारोह में 8 छात्राओं को कुल 17 स्वर्ण पदक दिए गए। टुंपा राय ने सर्वाधिक 7 स्वर्ण पदक जीते, जिनमें डॉ. सोमनाथ झा स्वर्ण पदक, रिपन स्वर्ण पदक, चंद्रशेखर शास्त्री बैकुण्ठनाथ शास्त्री स्वर्ण पदक, सवाई माधोसिंह रजत पदक, अनंदा प्रसाद मुखर्जी स्वर्ण पदक, सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक और महाराजा डॉ. विभूति नारायण सिंह स्वर्ण पदक शामिल हैं। इस ऐतिहासिक दीक्षांत समारोह में मेधावियों को सम्मानित कर उन्हें जीवन में उत्कृष्टता की ओर अग्रसर होने के लिए प्रेरित किया गया।
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