डोपिंग रोधी नियमों का उल्लंघन करने के कारण पेरिस पैरालिंपिक 2024 में हिस्सा नहीं लेंगे प्रमोद भगत
नई दिल्ली, 13 अगस्त (हि.स.)। बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन (बीडब्ल्यूएफ) के डोपिंग रोधी नियमों के उल्लंघन का दोषी पाए जाने के बाद भारत के प्रमोद भगत पेरिस पैरालिंपिक 2024 का हिस्सा नहीं होंगे।
मंगलवार (13 अगस्त) सुबह बीडब्ल्यूएफ के एक बयान में पेरिस पैरालिंपिक में भाग लेने के लिए भगत की अयोग्यता की पुष्टि की गई।
बयान में कहा गया, “01 मार्च 2024 को जारी एक निर्णय के माध्यम से, सीएएस एंटी-डोपिंग डिवीजन ने पाया कि भगत ने बीडब्ल्यूएफ एंटी-डोपिंग विनियमों के अनुच्छेद 2.4 (ठिकाने) का उल्लंघन किया था, उन्होने 12 महीनों के भीतर तीन ठिकाने विफलताओं को अंजाम दिया था। परिणामस्वरूप, उन पर 01 सितंबर 2025 तक 18 महीने की अयोग्यता की अवधि लगा दी गई। भगत ने इस निर्णय के खिलाफ सीएएस अपील प्रभाग में अपील की। 29 जुलाई 2024 को, सीएएस अपील डिवीजन ने खिलाड़ी की अपील को खारिज कर दिया और 01 मार्च 2024 के सीएएस एंटी-डोपिंग डिवीजन के फैसले की पुष्टि की। तदनुसार, श्री भगत की अपात्रता की अवधि अब पुष्टि की गई है।“
पेरिस पैरालिंपिक का आयोजन 28 अगस्त से 8 सितंबर तक होगा। 11 दिवसीय प्रतियोगिता 11 अगस्त को ओलंपिक के समापन के ठीक दो सप्ताह बाद शुरू होगी।
भगत ने टोक्यो 2020 पैरालिंपिक में पुरुष एकल एसएल 3 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह पहली बार था जब किसी भारतीय ने पैरालिंपिक में बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीता था।
एसएल (निचले स्तर पर खड़े होना) 3 वर्ग उन खिलाड़ियों के लिए है जिनके शरीर का एक तरफ का हिस्सा, दोनों पैर मामूली रूप से प्रभावित होते हैं, या कोई अंग नहीं होता है।
दृढ़ संकल्प और रणनीतिक प्रतिभा के संयोजन ने भगत को पैरा-बैडमिंटन के शिखर पर पहुंचा दिया। टोक्यो में उनकी स्वर्ण पदक जीत वर्षों की कड़ी मेहनत और समर्पण का परिणाम थी। एक रोमांचक फाइनल में, भगत ने ग्रेट ब्रिटेन के डेनियल बेथेल को हराकर खेलों में भारत के लिए चौथा स्वर्ण पदक सुरक्षित किया।
1988 में जन्मे भगत के जीवन में पांच साल की उम्र में उस समय अप्रत्याशित मोड़ आया जब उन्हें पोलियो हो गया, जिसके परिणामस्वरूप उनका बायां पैर विकलांग हो गया। अपनी शारीरिक चुनौतियों से विचलित हुए बिना, युवा भगत ने तेरह साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया और एक पेशेवर खिलाड़ी बनने की यात्रा पर निकल पड़े।
हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे
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