राष्ट्रीय खेल: बिलियर्ड्स चैंपियन भास्कर ने सख्त फिटनेस को दिया अपनी सफलता का श्रेय
पणजी, 31 अक्टूबर (हि.स.)। कर्नाटक के भास्कर बालचंद्र ने बतौर बिलियर्ड्स खिलाड़ी अपनी भूमिका और रेशम साड़ियों के अपने पारिवारिक व्यवसाय को चलाने के बीच अपने जीवन में एक अच्छा संतुलन बनाए रखा है। 52 वर्षीय भास्कर ने सोमवार को पुरुष बिलियर्ड्स 100 फॉर्मेट में महाराष्ट्र के रोहन जंबूसरिया को 3-1 से हराकर यहां पेडेम इंडोर स्टेडियम में जारी 37 वें राष्ट्रीय खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
बिलियर्ड्स और स्नूकर को पहली बार राष्ट्रीय खेलों में प्रतिस्पर्धा खेल के रूप में शामिल किया गया है। इससे पहले, बेंगलुरु (तब बैंगलोर) में 1997 के खेलों में इसे केवल एक डेमो गेम के रूप में शामिल किया गया था। भास्कर ने वहां भी कांस्य पदक जीता था जबकि अशोक शांडिल्य और गीत सेठी ने क्रमशः स्वर्ण और रजत पदक अपने नाम किए थे।
52 साल की उम्र में भी अपने इस शानदार प्रदर्शन का श्रेय भास्कर ने सालों से चली आ रही अपनी कड़ी फिटनेस को दी है। उन्होंने कहा, '' बतौर खिलाड़ी अपने करियर के चरम पर, मैं हर दिन 5-6 किलोमीटर दौड़ता था और फिर तीन घंटे तक अभ्यास करता था। फिर कुछ घंटे मैं अपने पार्टनर के साथ प्रैक्टिस करता था। खुद को पूरी तरह से फिट रखने के लिए दौड़ना, योग और नियमित अभ्यास जरूरी है।''
भास्कर ने आगे कहा, '' बिलियर्ड्स और स्नूकर कैलेंडर में मैच शेड्यूल इतना व्यस्त है कि आपको एक ही दिन में 10-12 घंटे खेलना पड़ता है। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं और मैच जीतते रहते हैं, आपको तेज और तरोताजा रहने की जरूरत होती है।''
अब भास्कर खेल को उतना समय नहीं दे सकते क्योंकि उनकी प्राथमिकता अब अपना बिजनेस बढ़ाना है। लेकिन वह अपने फिटनेस पर काम करना जारी रखते हैं और प्रतिदिन करीब तीन घंटे तक ट्रेनिंग और प्रैक्टिस करते हैं।
भास्कर ने कहा, ''राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतने के बावजूद, मैंने कभी भी खुद को पूर्णकालिक पेशेवर खिलाड़ी नहीं माना क्योंकि मुझे अपने काम और अपने खेल के बीच संतुलन बनाना पड़ता है.'' उन्होंने साथ ही कहा कि उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि अब बच्चे भी इस खेल को अपना रहे हैं।
भास्कर ने आगे कहा, '' देश के टियर 1 और टियर 2 शहरों में स्थानीय क्लब स्तर पर इस खेल को काफी बढ़ावा मिल रहा है। पहले इस खेल को खेलने के लिए आपको किसी प्रतिष्ठित क्लब का हिस्सा बनना पड़ता था, लेकिन अब स्थानीय स्नूकर और बिलियर्ड्स क्लबों के चलन ने इस खेल को सभी के लिए सुलभ बना दिया है। इससे अधिक से अधिक पेशेवर खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए फायदेमंद होगा।''
2003 में जब पब्लिक सेक्टर की कंपनियों ने क्यू स्पोर्ट्स खिलाड़ियों की भर्ती शुरू की तो बिलियर्ड्स और स्नूकर को निश्चित रूप से बढ़ावा मिला। लेकिन भास्कर का मानना है कि अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है क्योंकि केवल 5-10 प्रतिशत खिलाड़ियों को ही नौकरी मिलती है और वे इस खेल को पेशेवर रूप से खेलते हैं।
उन्होंने कहा, '' बिलियर्ड्स और स्नूकर को और ज्यादा बढ़ावा देने के लिए हमें सरकार और सभी हितधारकों से भारी प्रोत्साहन की जरूरत है ताकि लोग इसमें अपना करियर बना सके।''
हिन्दुस्थान समाचार/ सुनील
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