महाराष्ट्र को चैंपियन बनाना चाहते हैं दिहाड़ी मजदूरी करने वाले रग्बी स्टार भरत चव्हाण
पणजी, 24 अक्टूबर (हि.स.)। भरत फट्टू चव्हाण की कहानी गोवा में जारी 37वें राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने वाले बाकी सभी एथलीटों से अलग और संघर्षपूर्ण है। महाराष्ट्र रग्बी पुरुष टीम के कप्तान भरत अब तक नौ नेशनल टूर्नामेंट में खेल चुके हैं। वह दूसरी बार राष्ट्रीय खेलों में भाग ले रहे हैं। महाराष्ट्र की टीम को पिछले साल गुजरात में हुए 36वें नेशनल गेम के फाइनल में हारकर रजत पदक से संतोष करना पड़ा था। 37वें राष्ट्रीय खेलों में महाराष्ट्र रग्बी पुरुष टीम को अपना पहला मैच 25 अक्टूबर को बिहार के खिलाफ खेलना है।
उन्होंने पिछले साल लखनऊ में हुए खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में केआईआईटी-भुवनेश्वर पर पुरुषों के रग्बी फाइनल में 10 अंक लेकर भारती विद्यापीठ-पुणे चैंपियन बनाया था। इसके अलावा वह पूरे टूर्नामेंट में सर्वोच्च स्कोरर रहे थे। पुणे के भारती विद्यापीठ से बीए कर रहे भरत के लिए सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि वह शारीरिक रूप से अक्षम अपने माता-पिता और स्कूल में पढ़ रहे छोटे भाई के भरण पोषण के लिए दहाड़ी मजदूरी करते हैं, पढ़ाई भी करते हैं और साथ ही साथ अपने खेल को भी जारी रखे हुए हैं।
भरत ने कहा, ''हमारे एरिया में बच्चे रग्बी खेलते थे और मैंने उन्हें खेलते हुए देखकर रग्बी खेलना शुरू कर दिया। मैं मुंबई के कोलाबा झुग्गी-झोपड़ी में रहता हूं। यहां पर मैं दिहाड़ी मजदूरी करता हूं। मेरे परिवार गांव में रहते हैं। मां और पिता जी गांव में रहते है। पिता किसान हैं। अब वह ठीक से खेती नहीं कर पाते। पैरालाइज्ड हैं 50 परसेंट। मां को अधिक समस्या नहीं हैं पर पिताजी काफी पैरालाइज्ड हैं। मैं मुंबई में डेली बेसिस पर जाब भी करता हूं, पढ़ाई भी करता हूं और रग्बी भी खेलता हूं।''
महाराष्ट्र के सबसे बड़े खेल पुरस्कार, छत्रपति पुरस्कार से सम्मानित भरत ने 37वें राष्ट्रीय खेलों को लेकर कहा, ''टीम की तैयारी काफी अच्छी है। पिछले साल कुछ कारणों से हम गोल्ड जीतने से चूक गए थे, लेकिन इस बार टीम गोल्ड पर कब्जा जमाने को तैयार है। टीम नागपुर में 18 दिन के ट्रेनिंग कैंप के बाद यहां पहुंची है। कैंप में हम दिन में तीन बार ट्रेनिंग करते थे। रग्बी में भारत का प्रतिनिधित्व करना मेरा सपना है। एक बार मेरा चयन हो जाए तो मैं अपने जैसे स्लम के और भी बच्चों को रग्बी खेल में लाऊंगा।''
भरत मुंबई में मुंबई जिमखाना में प्रैक्टिस करते हैं और स्थानीय लीग्स में रहीमुद्दीन शेख की देखरेख में मैजिशियन फाउंडेशन इंडिया की टीम के लिए खेलते हैं। उन्होंने कहा, ''घर का खर्च मैं ही चलाता हूं। फिशिंग का आक्शन करता हूं। शिप में जो इम्पोर्ट का माल आता है, उसको ऑक्शन करता हूं। सुबह 3 बजे फिशिंग यार्ड जाता हूं। चार बजे से ऑक्शन स्टार्ट होता है। सात बजे तक फ्री होकर जिम जाता हूं। और फिर घर आकर पढ़ाई करता हूं। शाम के वक्त अपनी लोकल टीम के साथ रग्बी खेलता हूं।''
नेशनल गेम में रजत और फिर खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्हें भारतीय टीम में चयन करने के लिए नेशनल कैंप में बुलाया गया। भरत ने बताया कि अच्छा खेलने के कारण विश्वविद्यालय उनकी फीस 50 फीसदी तक कम कर देता है, जिससे उन्हें काफी मदद मिलती है।
भरत ने बताया कि वह महाराष्ट्र के लिए पहली टीम के प्लेयर हैं और पांच साल से नेशनल गेम्स में खेल रहे हैं। उन्होंने कहा, ''गुजरात में आयोजित नेशनल गेम्स में महाराष्ट्र का सिल्वर मेडल था। 2015 में मैंने पहली बार नेशनल्स खेला था, जहां मेरी टीम को ब्रांज मिला था। तब से रुका नहीं हूं।''
अपने लक्ष्य के बारे में बात करते हुए स्टार रग्बी प्लेयर ने कहा,''खिलाड़ी के तौर पर मुझे इंडिया खेलना है। उसके लिए तैयारी कर रहा हूं। इसके बाद मैं किसी अच्छी नौकरी के लिए अप्लाई कर सकता हूं क्योंकि मैं जो काम अभी कर रहा हूं उसमें कभी काम होता है और कभी फांका रह जाता है। मुझे अपने परिवार के देखना होता है और इस कारण मुझे एक अच्छी नौकरी की तलाश है, जो मुझे खेलों के माध्यम से ही मिल सकती है।''
हिन्दुस्थान समाचार/सुनील
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