राष्ट्रीय खेल : डेढ़ साल की बेटी को घर पर छोड़ सनातोम्बी ने वुशु में जीता एक और स्वर्ण

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राष्ट्रीय खेल : डेढ़ साल की बेटी को घर पर छोड़ सनातोम्बी ने वुशु में जीता एक और स्वर्ण


पणजी, 3 नवंबर (हि.स.)। मणिपुर की लीमापोकपम सनातोम्बी चानू के लिए स्वर्ण पदक जीतना आम बात है। अनुभवी वुशु खिलाड़ी ने गोवा में जारी 37वें राष्ट्रीय खेलों में चौथा स्वर्ण पदक जीता, जोकि इन खेलों में उनका पांचवां पदक है। उन्होंने ताओलू डिवीजन की ताई ची स्पर्धा में शीर्ष स्थान हासिल किया।

लेकिन कंपाल ओपन ग्राउंड में उनके स्वर्ण पदक जीत की खास बात यह रही कि मां बनने के बाद से राष्ट्रीय खेलों में उनका यह पहला स्वर्ण पदक है। सनातोम्बी चानू की अभी डेढ़ साल की बेटी भी है। सनातोम्बी ने छह महीने के भीतर ही मैट पर वापसी की और उन्होंने पटियाला में राष्ट्रीय शिविर में वापसी करते हुए पिछले साल नवंबर में सीनियर नेशनल में स्वर्ण पदक जीता।

उनकी उपलब्धि हांग्झोऊ एशियाई खेलों में जगह बनाने में भी उनके लिए बाधा बनी और उन्हें चीन नहीं भेजा गया क्योंकि उन्होंने 2019 के बाद से किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया था।

सनातोम्बी ने कहा, '' मैंने पहले तीन स्वर्ण (2007 में एक रजत, 2011 में दो स्वर्ण, 2015 में एक स्वर्ण) जीते थे, लेकिन यह मेरे लिए काफी खास है क्योंकि मैं अपनी डेढ़ साल की बेटी को उसके पिता के पास मणिपुर में घर पर छोड़कर राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने के लिए टीम के साथ आई थी।''

उन्होंने कहा, '' मां बनने के बाद फिर से ट्रेनिंग शुरू करना बहुत मुश्किल था क्योंकि बॉडी का मूवमेंट आसान नहीं था। इसके बाद मुझे धीरे-धीरे ट्रेनिंग शुरू करने से पहले हल्की जॉगिंग करनी पड़ी। तीन महीने बाद मुझे सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप (नवंबर 2022) में भाग लेनी थी और अपने खोए हुए आत्मविश्वास को वापस पाने के लिए मैं हर कीमत पर इसे जीतना चाहती थी। आखिरकार मैंने राष्ट्रीय शिविर में अपनी वापसी करते हुए स्वर्ण पदक जीता।''

इम्फाल में एक किसान के घर जन्मी सनातोम्बी पांच बहनों में तीसरे नंबर पर हैं और 2004 में खेल में आने के बाद से उन्होंने कई वित्तीय बाधाओं को पार किया है।

उन्होंने कहा, '' ऐसे कई मौके आए जब पैसों की कमी के कारण मैं टूर्नामेंट में भाग नहीं ले सकी। लेकिन मुझे हमेशा यह विश्वास था कि एक दिन चीजें बेहतर होंगी। वह पल 2007 में आया जब मुझे 1.70 लाख रुपये का नकद पुरस्कार मिला। इससे मुझे कर्ज चुकाने में मदद मिली और 2011 में जीते गए स्वर्ण पदक का मतलब था कि मैं अब अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकती हूं।''

साल 2007 में स्वर्ण पदक के साथ डेब्यू करने के बाद से सनातोम्बी ने राष्ट्रीय सीनियर प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया और वह 2009 तक स्वर्ण पदक की हैट्रिक लगाने में सफल रहीं। लेकिन 2011 में उनके प्रदर्शन में गिरावट देखने को मिली और उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा। लेकिन उसके बाद से 34 वर्षीय खिलाड़ी का स्वर्णिम दौड़ जारी है और वह 2022 तक राष्ट्रीय चैंपियनशिप के सभी संस्करणों में शीर्ष स्थान पर रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में, सनातोम्बी ने दक्षिण एशियाई खेलों में दो स्वर्ण और 2016 विश्व कप में कांस्य के अलावा ब्रिक्स चैंपियनशिप में 2017 में कांस्य पदक जीते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/ सुनील

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