केआईयूजी 2023: कैसे मल्लखंब ने बाधाओं को पार करने में मदद की

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केआईयूजी 2023: कैसे मल्लखंब ने बाधाओं को पार करने में मदद की


- सोहेल हुसैन शेख ने मुंबई विश्वविद्यालय को गुवाहाटी में पुरुष टीम को स्वर्ण जीतने में मदद की

गुवाहाटी, 20 फरवरी (हि.स.)। जब सोहेल हुसैन शेख ने छोटी उम्र में ही अपने पिता को खो दिया, तो उनकी मां फरीदा को चिंता हुई कि उनकी दो बेटियां और इकलौता बेटा अपने इलाके में बच्चों के साथ घूमने से बुरी आदतों में पड़ सकते हैं और इसलिए उन्होंने उन्हें मल्लखंब प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला दिलाया।

सोहेल तब सिर्फ नौ साल के थे और चौथी कक्षा में पढ़ रहे थे, जब उन्होंने अपनी बड़ी बहन साहीन के साथ मुंबई के चेंबूर में सुनील गंगावणे के अधीन प्रशिक्षण शुरू किया। दूसरी ओर मां लोगों के घरों में नौकरानी के रूप में काम करके अपने बच्चों की पढ़ाई और कोचिंग के खर्चे निकालने लगी।

जहां साहीन अब परिवार पर वित्तीय बोझ को कम करने के लिए कोच बन गई हैं, वहीं शेख ने खेल जारी रखा और सोमवार को यहां सरुसजाई स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में जारी चौथे खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2023, अष्टलक्ष्मी में मुंबई विश्वविद्यालय को पुरुष टीम का स्वर्ण पदक दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सोहेल ने पोल पर कुल 8.20 अंक, रस्सी पर 8.40 और हैंगिंग श्रेणी में 7.90 अंक हासिल किए। मुंबई विश्वविद्यालय ने मध्य प्रदेश के विक्रम विश्वविद्यालय को लगभग चार अंकों के अंतर से हराकर 123.50 अंकों के साथ शीर्ष स्थान हासिल किया।

मुंबई के बंट्स संघा कॉलेज से बी.कॉम की पढ़ाई कर रहे सोहेल डिग्री हासिल करने के बाद भी इस खेल से जुड़े रहना चाहते हैं।

अंडर -12 और अंडर -14 नेशनल में स्वर्ण पदक जीतकर युवावस्था में ही अपनी हुनर दिखा चुके सोहेल ने कहा, “मेरे पिता की मृत्यु के बाद हम अपने नाना-नानी के घर चले गए। हालांकि हमारी वित्तीय स्थिति काफी गंभीर थी। मेरी मां चाहती थीं कि मैं और मेरी बहन दोनों बेहतर भविष्य के लिए खेल को आगे बढ़ाएँ और उन्होंने हमारा सपोर्ट करने के लिए सब कुछ किया।”

सोहेल को पता है कि उनकी मां और अब उनकी बहन कड़ी मेहनत कर रही हैं ताकि वह खेल खेलना जारी रख सके और वह जितना संभव हो योगदान देने की कोशिश करते हैं।

सोहेल ने कहा, अपना कॉलेज और प्रशिक्षण पूरा करने के बाद, मैंने क्षेत्र में छोटे बच्चों को कोचिंग देने का काम भी शुरू कर दिया है ताकि मैं कुछ पैसे भी कमा सकूं और अपनी मां पर बोझ कम कर सकूं।

सोहेल ने कहा कि एक बार जब वह खेलना समाप्त कर लेते है तो कोचिंग करते है और उस खेल में वापस आ जाते है जिसने उन्हें अपने जीवन को बदलने में मदद की है।

यहां खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में सुविधाओं के बारे में बात करते हुए सोहेल ने कहा, “मैं वास्तव में यहां रहने का आनंद ले रहा हूं। मैं अलग-अलग खाने का स्वाद ले रहा हूं।”

हिन्दुस्थान समाचार /श्रीप्रकाश/अरविंद

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