केआईपीजी 2025: दीपक सरगर ने हौसले और जुनून से लिखी नई इबारत

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केआईपीजी 2025: दीपक सरगर ने हौसले और जुनून से लिखी नई इबारत


नई दिल्ली, 27 मार्च (हि.स.)। जीत से ज्यादा महत्वपूर्ण भागीदारी होती है, यह बात पैरा खेलों में अक्सर कही जाती है, लेकिन महाराष्ट्र के सांगली जिले के पैरा टेबल टेनिस खिलाड़ी दीपक चंद्रकांत सरगर इसे अपने जीवन में जी रहे हैं। प्रोग्रेसिव मस्कुलर डिस्ट्रॉफी जैसी गंभीर बीमारी से जूझने के बावजूद, 26 वर्षीय दीपक ने अपने हौसले और जुनून से खुद को सीमित नहीं होने दिया। उन्होंने एक साल पहले ही टेबल टेनिस खेलना शुरू किया और अब खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2025 की सी1 श्रेणी में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं।

बीमारी के बावजूद संघर्ष जारी, खेलों से मिली नई उम्मीद

6 साल की उम्र से दीपक को चलने-फिरने में दिक्कतें होने लगी थीं। प्रोग्रेसिव मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक गंभीर आनुवंशिक विकार है, जिसमें मांसपेशियां धीरे-धीरे कमजोर होती जाती हैं और समय के साथ शरीर पूरी तरह निष्क्रिय हो सकता है। 20 साल की उम्र तक आते-आते वह पूरी तरह व्हीलचेयर पर निर्भर हो गए। इसके बावजूद दीपक ने हार नहीं मानी। उनके पिता का निधन होने के बाद उनकी मां ने परिवार की जिम्मेदारी उठाई और सांगली में फूलों की दुकान चलाने लगीं। इस बीच, दीपक ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और सोशल वर्क में मास्टर डिग्री हासिल की।

योग से शुरू हुआ सफर, फिर टेबल टेनिस ने बदली जिंदगी

दीपक बताते हैं कि जब उनकी हालत बिगड़ने लगी, तब एक दोस्त ने उन्हें योग करने की सलाह दी। चूंकि मेरी बीमारी का कोई इलाज नहीं है, इसलिए मैंने सोचा कि योग से मैं मानसिक रूप से स्वस्थ रह सकता हूं और डिप्रेशन से दूर रह सकता हूं लेकिन असली बदलाव तब आया जब उन्होंने टेबल टेनिस खेलना शुरू किया।

दोस्तों की सलाह पर उन्होंने एक साल पहले ही इस खेल में कदम रखा और रैंकिंग और राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंटों में शानदार प्रदर्शन किया। पिछले साल नवंबर में इंदौर में हुए रैंकिंग टूर्नामेंट और फिर मार्च में वडोदरा में हुए राष्ट्रीय टूर्नामेंट में उन्होंने बेहतरीन खेल दिखाया, जिससे उन्हें खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2025 में जगह मिली।

जीवन को पूरी तरह जीना चाहता हूं, खेल मेरी ताकत है

दिल्ली में हो रहे खेलो इंडिया पैरा गेम्स में भाग लेना दीपक के लिए किसी सपने से कम नहीं है। उन्होंने कहा, मुझे नहीं पता कि मेरी बीमारी कितनी तेजी से बढ़ेगी, लेकिन मैं सिर्फ जीना चाहता हूं।

उनका यह सफर सिर्फ एक व्यक्तिगत जीत नहीं है, बल्कि हजारों लोगों के लिए प्रेरणा है जो विपरीत परिस्थितियों में भी हार मानने को तैयार नहीं होते। दीपक न केवल एक बेहतरीन खिलाड़ी हैं, बल्कि वे अपने भाई के साथ गांव कौटेकन में एक इंटरनेट कैफे भी चलाते हैं।

उन्होंने कहा कि मेरे बड़े भाई को भी यही बीमारी है, लेकिन मैंने उनसे सीखा कि इससे कैसे तालमेल बैठाया जाए। मैंने अपनी बीमारी के इलाज के लिए दुनिया भर में खोज की, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला। तब मैंने तय किया कि मैं इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दूंगा।

अगला लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का नाम रोशन करना

दीपक इस खेल में आगे बढ़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि पैरा खिलाड़ियों को भी मुख्यधारा के खिलाड़ियों की तरह समान अवसर मिले। उन्होंने कहा, खेलो इंडिया पैरा गेम्स जैसे प्लेटफॉर्म पैरा एथलीटों को पहचान दिलाने में बहुत मदद करते हैं।

आज दीपक सरगर की कहानी सिर्फ खेल और संघर्ष की नहीं, बल्कि साहस, आत्मविश्वास और न खत्म होने वाले जज्बे की कहानी है। उनकी यह यात्रा बताती है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी क्यों न हों, इच्छाशक्ति और जुनून से हर बाधा को पार किया जा सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील दुबे

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