चंबल मैराथन-4 की तैयारी जोरों पर, बीहड़ों में दौड़ने के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू
औरैया, 07 जनवरी (हि.स.)। चंबल संग्रहालय की ओर से आयोजित चंबल मैराथन का चौथा संस्करण 14 जनवरी को पांच नदियों के संगम क्षेत्र पंचनद घाटी में आयोजित किया जायेगा। चंबल मैराथन के चौथे वर्ष के आयोजन को अंतिम रूप देने के लिए आयोजन समिति के सदस्य जोर-शोर से जुटे हुए हैं। चंबल मैराथन में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू हो चुका है।
चंबल मैराथन 2024 का रूट जुहीखा,कंजौसा,बिठौली,चौरेला,हरकेपुरा, सुल्तानपुरा,हुकुमपुरा,बिलौड़,जगम्मनपुर होते हुए जुहीखा तक 42.195 किमी तक प्रस्तावित है। चंबल मैराथन में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के धावक अपना दमखम दिखाएंगे। 14 जनवरी को प्रातः 8 बजे से मैराथन की दौड़ शुरू होगी।
चंबल मैराथन के संस्थापक और दस्तावेजी लेखक डॉ. शाह आलम राना ने बताया कि चंबल घोषणा पत्र को लागू कराने के लिए इस बार 42.195 किमी. की मैराथन दौड़ होगी। उन्होंने बताया कि चंबल अंचल की तस्वीर बदलने के लिए अनथक परिश्रम से 'चंबल जन घोषणा-पत्र 2019' का निर्माण किया गया था। उत्तर प्रदेश के चार जनपदों (बाह-आगरा, इटावा, औरैया और जालौन) तथा मध्य प्रदेश के दो (भिंड, मुरैना) एवं राजस्थान के धौलपुर की दुःसाध्य यात्राएं कर और लंबे जनसंपर्क व राजनैतिक एवं प्रशासनिक अमले से मिलकर चंबल घोषणा-पत्र का निर्माण किया था। इसका उद्देश्य यह था कि जिम्मेदार लोग इस घोषणा पत्र को पढ़ें और चंबल क्षेत्र की समस्याओं से रूबरू हों। साथ ही अपने अंचल के जन मानस के ध्यानार्थ कि वे भी अपने अंचल की वास्तविक समस्याओं से रूबरू हों और उन्हें पूर्ण कराने के वास्ते अपने क्षेत्र के जन प्रतिनिधयों पर दबाब भी बनायें।
चंबल परिवार प्रमुख डॉ. शाह आलम राना ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान चंबल घाटी के रणबाकुरों का गौरवशाली इतिहास रहा है। इतिहास उत्खनन के दौरान ब्रिटिशकालीन दस्तावेजों में बीहड़ के लड़ाका पुरखों की गाथाएं रोमांचित करती हैं। हमें उन महानायकों को अपने सामने खड़ा कर उनसे प्रकाशपुंज ग्रहण करें। आज भी देश की सेना में सबसे ज्यादा चंबल अंचल के जाबांज हथियार थामे खड़े हैं। देश की सरहदों पर शहीद हुए सैनिकों के स्मारक घाटी के बीहड़ों में गांव-गांव मिल जाएंगे। लिहाजा वर्षों से चंबल की बेहतरी की हमारी सरकारों से जायज मांग रही है।
गौरतलब है कि चंबल मैराथन का पहला वर्ष इटावा में 'रन फार बेटर चंबल' दूसरा वर्ष भिंड में 'स्प्रिट चंबल' और तीसरा वर्ष मुरैना में 'चंबल रेजिमेंट लागू करो' के नारों के साथ ऐतिहासिक रूप से सफल रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार/सुनील/राजेश
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