क्या है बनारसी पान की कहानी, भगवान शिव और माता पार्वती से कैसे जुड़ा है इसका उदभव

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खईके पान बनारस वाला खुल जाए बंद अकल का ताला। ये गाना सुनते ही सभी के ज़हन में बनारसी पान की याद को ताज़ा कर देता है, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि जिस पान को हम लोग पूजा से लेकर खाने के लिए इस्तेमाल करते हैं वो बनता कैसे है, इतना ही नहीं भगवान शिव और माता पार्वती से कैसे जुड़ा है पान का इतिहास। इन सब बातों को हम आज आपको बताएंगे। 

PAAN

कुछ चीजों को हम ईश्वर या प्रकृति का उपहार मानते हैं और उनकी अनेकों उपयोगिता के लिए शुक्रगुजार होते है। पान उन्हीं में से एक है। हमारे लिए पान महज एक पत्ता नहीं है बल्कि वह अनोखी और जादुई वस्तु है जो अपने अंदर अनेकों इतिहास को समेटे हुए हैं। 

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ऐसा माना जाता है कि स्वयं भोलेनाथ और मां पार्वती ने पान के बीजों को बोया था और तब से लेकर आज तक पान ना ही सिर्फ भारतवर्ष में बल्कि पूरी दुनिया में मशहूर है। यह एक ऐसी अमूल्य वस्तु है जो एक बच्चे के जन्म होने से अंतिम सांस लेने तक के कामों में प्रयोग की जाती है। भारत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने अपने पूरे जीवन में एक बार भी पान का सेवन ना किया हो। पानों की इस दुनिया का सरताज है बनारसी पान या ये कहना गलत नहीं होगा की पान का पर्याय है बनारसी पान।

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बनारसी पान का इतिहास भी हजारों साल पुराना है। बनारस में पान भारत के कई कोनो से आता है जैसे बिहार, बंगाल, यूपी, उड़ीसा से आता है। जो पूर्वांचल की सबसे बड़ी मंडी पान दरीबा में खरीदा और बेचा जाता है। पान दरीबा पान के कारोबार का वह दरिया है जिसमें कई वर्षों से हजारों से ज्यादा परिवार जुड़े है। पान दरीबा बनारस में श्री बरई सभा काशी के नाम से एक पंजीकृत संगठन है जिसकी स्थापना 1952-53 में हुई थी यहां हर महीने लगभग 90 करोड़ पान के पत्तों का कारोबार होता है।

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वो क्या है जो बनारसी पान को पूरे विश्व में अलग पानों से भिन्न करता है वो है यहां के लोगों की अद्वितीय पान पकाने की कला। जगह-जगह से जब पान पान दरीबा में आते हैं तो पान के कारोबारी इन कच्चे पान को अपने अपने घरों में ले जाते हैं। पान को टोकरी में अलग-अलग रख है उन्हें एक कमरा नुमा भट्टी में रखा जाता है। और उनसे डेढ़ से दो फीट की दूरी पर लोहे की अंगीठी में लकड़ी का कोयला सुलगा कर रख दिया जाता है और इसके बाद कमरे को बंद कर पत्तों को 6 से 8 घंटे के लिए पकने दिया जाता है। पान को पकाने की प्रक्रिया 3 से 4 दिन तक चलती है। जब तक कि पान हरे से सफेद न हो जाए। जब पान सफेद हो जाते हैं तब उन्हें वापस मंडी में लाकर बेचा जाता है। जिससे वे लोगों तक पहुँच सके। 

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बनारस में जो पान आते हैं उनकी कई प्रजातियां हैं जैसे मघई, जगरनाथी, जुग्गी, चन्द्रकला, हल्दिया, देशी आदि। पर इन सब का राजा है मघई। पानों को खरीदने के बाद आती है बारी पान लगाने की जिसमें सुरती, सुपारी कत्था, गुलकंद आदि शामिल हैं। और इस तरह बन जाते हैं लजीज और मुँह में पानी ला देने वाले बनारसी पान जो अब तैयार है हमारे मुँह का स्वाद बढ़ाने के लिए। पान का प्रयोग ना सिर्फ खाने में बल्कि पूजा पाठ, शादी- विबाह तथा अन्य औषधियाँ बनाने में भी होता है। ये कहना गलत नहीं होगा कि पान हमारा गौरव होने के साथ साथ विश्व पटल पर हमें एक अलग पहचान भी देता है।


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