आईजीएनसीए में 'सांस्कृतिक जम्मू कश्मीर' फिल्म और कॉफी टेबल पुस्तक का विमोचन

WhatsApp Channel Join Now
आईजीएनसीए में 'सांस्कृतिक जम्मू कश्मीर' फिल्म और कॉफी टेबल पुस्तक का विमोचन


नई दिल्ली, 18 दिसंबर (हि.स.)। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में गुरुवार को 'सांस्कृतिक जम्मू कश्मीर' फिल्म और कॉफी टेबल पुस्तक का विमोचन किया गया। यह प्रयास घाटी के उस वास्तविक इतिहास को दुनिया के सामने लाता है, जो केवल प्राकृतिक सुंदरता तक सीमित नहीं है।

आईजीएनसीए के मीडिया सेंटर द्वारा निर्मित इस फिल्म का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की सदियों पुरानी आध्यात्मिक और दार्शनिक जड़ों को पुनर्जीवित करने करना है, जो आतंकवाद और संघर्ष की खबरों के बीच कहीं दब गया था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि वर्तमान में हमारी मान्य परंपराओं और इतिहास को नष्ट करने की कोशिशें लगातार हो रही हैं। उन्होंने कहा, इतिहास को विकृत करने की कोशिशों के बीच यह फिल्म एक दीपस्तंभ की तरह खड़ी होगी, जो युवाओं को जम्मू-कश्मीर के वास्तविक इतिहास से परिचित कराएगी।

फिल्म के लेखक एवं सह-निर्माता राजन खन्ना ने कश्मीर के प्राचीन संदर्भों पर जोर देते हुए कहा कि कश्मीर का इतिहास केवल पिछले 400-500 वर्षों या 1339 से 1819 तक सीमित नहीं है बल्कि यह ऋग्वेद की भूमि है। अनंतनाग दुनिया का सबसे प्राचीन शहर है, लेकिन चर्चा केवल आतंकवाद और संगठनों की होती है। जिस प्रकार शरीर और आत्मा का संबंध है वैसे ही राष्ट्र, संस्कृति और भूगोल का संबंध होता है। उन्होंने कहा कि अगर आप वहां जाते हैं, तो केवल मंदिरों का दर्शन नहीं होता। भारतीय संस्कृति के आधार वेदों की ऋचाएं वहां पर लिखी गई हैं, उनका पूरा दर्शन वहां पर होता है। हमारे पूर्वजों ने जिस महान संस्कृति का निर्माण किया, उसका दर्शन जम्मू-कश्मीर में होता है। जम्मू-कश्मीर भारतीय संस्कृति के पुष्प गुच्छ का एक सुंदर फूल है।

वहीं, सीनियर ब्रॉडकास्टर गौरीशंकर रैना ने कहा कि डिजिटल युग में फिल्म एक सशक्त माध्यम है, इसके जरिए दुर्गम स्थानों की संस्कृति को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है।

आईजीएनसीए मीडिया सेंटर के नियंत्रक अनुराग पुनेठा ने कहा कि जो समाज अपनी धरोहर को याद नहीं रखता, उसके सामने संकट खड़ा हो जाता है।

उल्लेखनीय है कि फिल्म पहलगाम का ममलेश्वर मंदिर और गुलमर्ग के विस्मृत देवालय जैसे प्राचीन मंदिरों और आध्यात्मिक धाराओं को उजागर करती है जो उपेक्षित रह गई थीं। फिल्म में कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ का उल्लेख है और श्रीनगर के हरवान मठ में आयोजित 'चतुर्थ बौद्ध संगीति' की विरासत को भी दिखाया गया है। इसमें सिख और डोगरा शासकों द्वारा किए गए मंदिरों के पुनरुद्धार तथा गुरु हरगोबिंद जी से जुड़ी सिख परंपराओं को भी रेखांकित किया गया है।

---------------

हिन्दुस्थान समाचार / श्रद्धा द्विवेदी

Share this story