आईजीएनसीए ने यूनेस्को मंच पर नाट्यशास्त्र की प्रासंगिकता पर बल दिया
नई दिल्ली, 13 दिसंबर (हि.स.)। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) ने दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले में एक अकादमिक कार्यक्रम आयोजित किया। यह आयोजन ‘नाट्यशास्त्र: सिद्धान्त और प्रयोग का संयोजन’ शीर्षक के तहत किया गया। यह यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत संरक्षण समिति के 20वें सत्र के दौरान हुआ।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्म विभूषण से सम्मानित विदुषी डॉ. सोनल मानसिंह ने की। इस मौके पर आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानन्द जोशी, संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ संध्या पुरेचा, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के निदेशक चित्तरंजन त्रिपाठी, आईजीएनसीए के कलाकोश प्रभाग के अध्यक्ष प्रो सुधीर कुमार लाल तथा सह-आचार्य डॉ योगेश शर्मा जैसे प्रतिष्ठित विद्वानों और संस्थानों के प्रमुख उपस्थित रहे।
कार्यक्रम स्थल पर आईजीएनसीए मीडिया केन्द्र द्वारा निर्मित यूनेस्को के ‘मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर’ में नाट्यशास्त्र के अभिलेखन पर आधारित एक लघु फ़िल्म भी प्रदर्शित की गई, जिसे दर्शकों ने काफ़ी सराहा।
डॉ सोनल ने नाट्यशास्त्र की प्रासंगिकता पर बताया कि समय और संस्कृतियों की सीमाओं को पार करते हुए, यह ग्रन्थ आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। इसमें समकालीन कला, सौन्दर्यबोध तथा सांस्कृतिक विमर्श को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है।
डॉ सच्चिदानन्द जोशी ने कहा कि नाट्यशास्त्र जड़ नहीं, बल्कि सतत् प्रवाहमान बौद्धिक परम्परा है। यह ग्रन्थ नए अर्थों और नवीनीकरण की संभावनाओं के लिए हमेशा खुला है।
वहीं, डॉ संध्या पुरेचा ने कहा कि नाट्यशास्त्र कलात्मक परम्पराओं और प्रदर्शन शैलियों का निरंतर प्रेरणा स्रोत है।
‘समकालीन रंगमंच और नाट्यशास्त्र’ विषय पर बोलते हुए, चित्तरंजन त्रिपाठी ने बताया कि नाट्य सिद्धान्त आधुनिक रंगमंच को आकार देते हैं। ये प्रदर्शन विधाओं को सीधे प्रभावित करते हैं। ये समकालीन प्रशिक्षण पद्धतियों को दिशा देते हैं।
प्रो. सुधीर लाल ने कहा कि यह नाटक, नृत्य और संगीत के सिद्धान्तों को संहिताबद्ध करता है। ये सिद्धान्त मानवीय अनुभव और श्रेष्ठता के दार्शनिक ढाँचे में निहित हैं।
इस आयोजन ने नाट्यशास्त्र को परम्परा और आधुनिकता के सेतु के रूप में स्थापित किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रद्धा द्विवेदी

