(वार्षिकी ) वर्ष 2025 में भाजपा में सत्ता के शीर्ष नेतृत्व पर पहुंचे बिहारी नेता नितिन नबीन

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(वार्षिकी ) वर्ष 2025 में भाजपा में सत्ता के शीर्ष नेतृत्व पर पहुंचे बिहारी नेता नितिन नबीन


पटना, 29 दिसंबर (हि.स.)। बिहार के लिए साल 2025 भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीति रुप से उपलब्धी वाला साल रहा। जहां एक ओर भाजपा-जदयू वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने प्रचंड जनादेश (202) सीटों के साथ सरकार में वापसी की, वहीं राष्ट्रीय क्षितिज पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व की जिम्मेवारी (नितिन नबीन) भी बिहार के नाम रही है।

बिहार भले ही राजनीतिक रुप से काफी सक्रिय राज्य रहा है, लेकिन देश में सत्ता के शीर्ष पर बैठे राजनीतिक दल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व मे कोई बिहारी सत्ता के शीर्ष पर आज तक नहीं पहुंचा था। नितिन नबीन यह करने वाले पहले बिहारी बने है। उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेवारी दिसंबर 2025 में सौंपी गई है।

संगठन पर नबीन की अच्छी पकड़

संगठन पर भी नितिन की अच्छी पकड़ है। वे पार्टी के लिए लंबे अरसे से काम करते रहे हैं। इसका पुरस्कार उन्हें तब मिला, जब 2019 में उन्हें पार्टी ने सिक्किम में चुनाव प्रभारी बनाया। इसी साल उन्हें सिक्किम भाजपा के संगठन प्रभारी का जिम्मा सौंपा गया। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी ने नितिन को छत्तीसगढ़ के चुनाव प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी। उनके बेहतर चुनावी प्रबंधन से यहां भाजपा को निर्णायक बढ़त मिली। छत्तीसगढ में 2018 में महज 15 सीट लाने वाली भाजपा ने 2023 में भूपेश बघेल जैसे जमीनी नेता को पटखनी देकर 54 सीट जीत ली। नबीन ने यहां चुनाव से पहले सांगठनिक स्तर पर कई तरह के बदलाव किए तथा बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का एक मजबूत नेटवर्क तैयार किया। छोटे-छोटे कार्यक्रमों के साथ ही व्यक्तिगत संपर्क अभियान चलाया, जिससे पार्टी की छवि बदली। कांग्रेस की सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद संगठन में नितिन नबीन का सियासी कद काफी बढ़ गया और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली।

बंगाल सहित अगले चुनावों पर नजर

वरिष्ठ पत्रकार अरुण पाण्डेय ने बातचीत में कहा कि नितिन कायस्थ जाति के हैं। बिहार में इस समाज की आबादी भले ही एक प्रतिशत से कम हो, लेकिन कायस्थ भाजपा के पारंपरिक और भरोसेमंद मतदाता रहे हैं। पार्टी का जनाधार जब इतना व्यापक नहीं था, तब भी कायस्थ सहित सवर्ण समाज ही उसकी ताकत थे। नितिन की नियुक्ति से यह मैसेज तो गया ही है कि शीर्ष पर पहुचने के बाद भी भाजपा को सवर्ण याद हैं। देशभर में कायस्थों की आबादी करीब डेढ़ से दो करोड़ के बीच मानी जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और बंगाल में इनकी बड़ी आबादी है। बंगाल में इनकी आबादी 27 लाख के आसपास बतायी जाती है। अरुण पाण्डेय ने बताया कि पश्चिम बंगाल में होने वाला चुनाव नितिन की नियुक्ति का तात्कालिक कारणों में से एक हैं। वहां कायस्थों की आबादी तीन प्रतिशत से अधिक है। नितिन ने 2021 के बंगाल चुनाव में वहां काम भी किया था। वे वहां गैर हिन्दी भाषी व गैर बंगाली वोटरों को भाजपा के पक्ष में लाने में कारगर साबित हो सकते हैं। हिंदी भाषी, दलित व आदिवासी तथा कुछ इलाकों के उर्दू भाषी मुस्लिम भाजपा को वोट देते रहे हैं। बांग्लाभाषी सवर्ण मतदाताओं में भी वे सेंध लगा सकते हैं। खासकर उस वर्ग में, जो एंटी इनकम्बेंसी या अन्य किसी कारणों से ममता बनर्जी से नाराज चल रहे हैं। हालांकि, इसके साथ ही एक बात और भी है कि बंगाल में चुनाव भाषायी आधार पर होते हैं, न कि बिहार की तरह जातीय आधार पर। 294 सीट वाली पश्चिम बंगाल विधानसभा में 2021 के चुनाव में भाजपा को 77 सीट मिली थी। वैसे, यह तो चुनाव बाद ही पता चल सकेगा कि 2026 में नितिन नवीन यहां छत्तीसगढ़ वाली विजय पताका फिर लहरा सकेंगे या नहीं, किंतु, इतना तो तय है कि भाजपा ने सेंकेंड लाइन लीडरशिप के तहत पीढ़ीगत बदलाव की शुरुआत कर दी है।

नितिन नबीन ही क्यों पहुंचे भाजपा के शीर्ष पर

नितिन नबीन एक शांत स्वभाव के नेता हैं, लेकिन नवीन राजनीति में नए नहीं हैं। वह 2021 से भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के पदेन सदस्य रहे हैं। नबीन भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के राष्ट्रीय महासचिव और भाजयुमो बिहार के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। भाजयुमो के साथ अपने जुड़ाव के दौरान, उन्होंने युवा लामबंदी अभियानों में हिस्सा लिया, जिसमें जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रीय एकता यात्रा और 1965 के युद्ध के शहीदों को याद करने के लिए गुवाहाटी से तवांग तक एक श्रद्धांजलि मार्च शामिल है। उन्होंने सिक्किम के लिए भाजपा प्रभारी और छत्तीसगढ़ के प्रभारी के रूप में भी काम किया है, और इन राज्यों में संगठनात्मक गतिविधियों और चुनावी अभियानों में योगदान दिया है। नितिन नबीन के पिता, भाजपा नेता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा, बिहार में पटना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से लगातार चार बार जीते थे। वर्ष 1995, 2000, फरवरी 2005 और अक्टूबर 2005 । जनवरी 2006 में उनकी मृत्यु के बाद, उस समय सिर्फ़ 26 साल के नबीन ने 2006 का उपचुनाव भारी अंतर से जीता, उन्हें डाले गए वोटों का 82 प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिले। परिसीमन के बाद, पटना पश्चिम सीट बांकीपुर बन गई, जिसे नवीन 2010 से लगातार जीत रहे हैं। बांकीपुर में जीत के तुरंत बाद, वह भाजपा युवा विंग के राष्ट्रीय नेतृत्व का हिस्सा बन गए और 2010 में, वह युवा विंग, भारतीय जनता युवा मोर्चा (भजयुमो) के राष्ट्रीय महासचिव बने। 2023 में छत्तीसगढ़ में भाजपा के शानदार प्रदर्शन के बाद, नबीन छत्तीसगढ़ के अकेले प्रभारी बनाए गए। 2024 में नीतीश कुमार के भाजपा के साथ फिर से हाथ मिलाने के बाद, नबीन बिहार सरकार में मंत्री के तौर पर वापस आ गए। इन सभी पदों पर रहते नितिन नबीन ने अपनी कार्यकुशलता से अच्छे परिणाम दिया, जिसकी वजह से केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें इतनी कम उम्र (45 वर्ष) में इतनी बड़ी जिम्मेवारी सौंपी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद चौधरी

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