हम सब एक हैं, इस भाव से ही विश्वगुरु भारत की कल्पना संभव : भैय्याजी जोशी
रांची, 12 फरवरी (हि.स.)। राष्ट्र संवर्धन समिति के तत्वावधान में रांची विश्वविद्यालय के आर्य भट्ट सभागार में सोमवार को सामाजिक सद्भाव विषय पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य सुरेश भैय्याजी जोशी ने कहा कि हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमने भारत में जन्म लिया, हमें एक ऐसी विरासत मिली, जिसने आदर्श और विश्व को समभाव से देखने की दृष्टि दी।
उन्होंने कहा कि वर्तमान काल भी भारत का स्वर्णिम काल है। देश समाज बदल रहा है। हम सब संक्रांति के समर्थक हैं। एक श्रेष्ठ देश का श्रेष्ठ नागरिक होने का गर्व हमें है। उन्होंने कहा कि आज भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक अलग स्थान रखता है। हमने हजारों संघर्षों के आघात को जो कि विश्व के अनेक शक्तियों ने किया किंतु फिर भी हम मिटे नहीं। तभी हमें मृत्युंजय भारत का विशेषण महर्षि अरविंदो ने कहा था। काल प्रवाह ने अपने समाज में विसंगति भी आती रही, जिसे अपने संत महात्मा ने इन विसंगति को दूर करने का सार्थक प्रयास भी किया। लेकिन कुछ विसंगति हमारी परंपरा बनकर कुरीति का आकार ग्रहण कर लेता है। अपने समाज का आंतरिक शक्ति यदि ठीक हो तो ऐसी कुरीति पर अंकुश लग पाती है।
उन्होंने कहा कि हिंदू भारत का एक चिंतन है जो हमें जीवन देखने की एक समुचित दृष्टि देती है। जिसके कारण स्पष्ट है की अपना हिंदू समाज जीवन मूल्यों पर चलने वाली समाज है। हमने काल के प्रवाह में कुछ कुरीति को स्वीकार भी करता हूं तो उसे परिमारर्जन करने का प्रयास भी करता हूं। जाति के विकास पर जातियता और उसके बाद जातिवाद पनपी। उसके बाद उच्च नीच, छुआछूत अपने समाज में पनपी। हरि को भजे सो हरि का होई इस भाव का लोप हो गया।
हम सब एक है इस भाव से ही विश्व गुरु भारत की कल्पना संभव है। उन्होंने अनेक उदाहरण जाति व्यवस्था के कारण समाज में पनपी विकृति पर बताते हुए कहा कि अठारह पुराणों में परोपकार को श्रेष्ठ बताया गया है। उन्होंने आक्षेप करते हुए कहा कि ऐसी विसंगति यानी जातिवाद को हम कब तक ढोते रहेंगे? हम सब एक है ऐसा भाव जब तक विकसित नहीं होगा तब तक हम समाज को एक और श्रेष्ठ नहीं बना सकते। जब हम भारत माता को मानते तो फिर अपने बीच भेदभाव कैसे। मानव निर्मित जातिवाद जैसे भेदभाव को प्रकृति नहीं बल्कि हम समाज के प्रयास से ही दूर करना है। हम भारत के लोग हमारी संविधान की मूल है फिर किसी भी प्रकार का पंथ,जाति,भाषा, क्षेत्र, रंग का भेदभाव हम कैसे करते हैं।
उन्होंने जातिवाद के साथ-साथ दहेज प्रथा, कन्या जन्म, भ्रष्टाचार, नारी सम्मान के प्रति सोच जैसे विसंगति पर भी अपना विचार रख समाज को ऐसे विकृति को दूर करने का आह्वान किया, जो समाज जीवन मूल्यों पर चलने वाली है उस समाज का ऐसा क्षरण कैसे हो सकता। हमारे नैतिक जीवन का क्षरण इतना नीचे कैसे गिर सकता कि हम अपने लोगों के साथ ऐसा अनैतिक कार्य करने लग जाते हैं। प्रमाणिक होना ये अपना जीवन शैली हो। भारत का समाज परस्परालंबी है। एक दूसरे को अपना मानकर आगे बढ़े यही सार्थक प्रयास देश को समृद्ध बनाएगा तभी भारत विश्वगुरु बन सकेगा।
सद्भाव विषय पर अपने प्रस्तावना के आलोक में राकेश लाल ने कहा कि हमसब हिंदू हैं,अपना समाज संगठित हो, ताकि राष्ट्र सशक्त हो क्योंकि हिंदू समाज को तोड़ने का अथक प्रयास चलता आ रहा है ऐसे गंभीर विषय पर हम सबको आज चिंतन करना है।
इस अवसर पर रांची महानगर के प्रबुद्ध नागरिकों के साथ उत्तरपूर्व के क्षेत्र संघचालक देवव्रत पाहन, गोपाल महापात्र, प्रांत संघचालक सच्चिदानंद लाल अग्रवाल, सह संघचालक अशोक कुमार श्रीवास्तव, प्रांत प्रचारक गोपाल शर्मा, पद्मश्री अशोक भगत, सामाजिक सद्भाव प्रमुख विजय घोष, राकेश लाल, विनायक शर्मा, सिद्धि नाथ सिंह, अर्जुन राम, जिज्ञासा ओझा, शालिनी सचदेव सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
हिन्दुस्थान समाचार/वंदना/प्रभात/आकाश
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