जो भारतीय संस्कृति और मातृभूमि को मानता है, वह हिन्दू हैः डॉ. भागवत

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जो भारतीय संस्कृति और मातृभूमि को मानता है, वह हिन्दू हैः डॉ. भागवत


कोलकाता, 21 दिसंबर (हि.स.)।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कोलकाता में अपने व्याख्यान के दौरान संघ की स्थापना, उद्देश्य और कार्यपद्धति को विस्तार से रखा। उन्होंने कहा कि संघ को लेकर जो राय बनती है, वह अक्सर तीसरे स्रोत से फैलाए गए गलत नैरेटिव पर आधारित होती है। संघ का प्रयास है कि उसके बारे में लोगों की समझ वस्तुस्थिति के आधार पर बने, न कि अफवाहों और भ्रांतियों पर।

उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं चला और न ही किसी प्रतिक्रिया में इसकी शुरुआत हुई। संघ की स्थापना इसलिए हुई ताकि विश्वभर में भारत की जय-जयकार हो और विश्वगुरु बनने वाले भारत का समाज उस स्तर पर खड़ा हो सके।

डॉ. भागवत ने कहा कि संघ विशुद्ध रूप से हिन्दू समाज के संगठन के लिए शुरू हुआ। इसका अर्थ किसी अन्य के विरोध से नहीं है। उन्होंने श्री गुरुजी के कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि दुनिया में एक भी ईसाई या मुसलमान नहीं होता, तब भी हिन्दू समाज के संगठन की आवश्यकता रहती क्योंकि समाज भीतर से कटा-बंटा है।

सरसंघचालक ने कहा कि सन् 1857 की क्रांति की असफलता के बाद यह सवाल खड़ा हुआ कि कुशल योद्धा और बुद्धिमान होने के बावजूद भारत पर मुट्ठी भर अंग्रेज कैसे शासन कर सके। उस समय यह भी स्पष्ट हुआ कि केवल स्वतंत्रता नहीं बल्कि समाज सुधार अधिक आवश्यक है। रूढ़ियों और कुरीतियों के साथ-साथ आत्मविस्मृति भी हमारी कमजोरी बनी।

उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को अपनी पहचान याद दिलाने का काम प्रमुख रूप से स्वामी विवेकानंद और महर्षि दयानंद ने किया। इसी कालखंड में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का व्यक्तित्व उभरा, जो जन्मजात देशभक्त थे।

डॉ. भागवत ने बताया कि डॉ. हेडगेवार के माता-पिता का निधन उनके 11 वर्ष की आयु में प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए हो गया था। इसके बाद उन्होंने अत्यंत निर्धनता में जीवन बिताया लेकिन मेधावी रहे और पढ़ाई में हमेशा आगे रहे। माता काली के समक्ष ली गई प्रतिज्ञा के अनुसार वे आजीवन भारत माता की सेवा में लगे रहे। दस वर्षों के गहन चिंतन के बाद साल 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना की। देश की दुरावस्था और समाज की कमजोरी से व्यथित होकर संघ का जन्म हुआ। इसका उद्देश्य संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करना है।

व्यक्ति निर्माण से समाज परिवर्तन

सरसंघचालक ने कहा कि व्यक्ति निर्माण के माध्यम से देशव्यापी कार्यकर्ताओं का संगठन खड़ा कर समाज जीवन में परिवर्तन लाना संघ की कार्यपद्धति है। संघ की शाखा का अर्थ है दिन का एक घंटा सबकुछ भूलकर देश और समाज के लिए चिंतन करना।

डॉ. भागवत ने कहा कि हिन्दू किसी एक पूजा पद्धति, खानपान या वेशभूषा का नाम नहीं है। हिन्दू कोई धर्म या मजहब नहीं, बल्कि एक स्वभाव है। जो इस भूमि की संस्कृति और मातृभूमि को मानता है, वह हिन्दू है। विविधता में एकता खोजने का विचार सनातन है और यही हिन्दू स्वभाव की पहचान है।

उन्होंने कहा कि हिन्दू समाज वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के साथ सबके कल्याण की कामना करता है। संघ का काम समाज को जोड़ना है, न कि समाज के भीतर कोई अलग प्रभावी संगठन खड़ा करना।

सरसंघचालक ने कहा कि संघ से तैयार स्वयंसेवक समाज के हर क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। जहां भी निःस्वार्थ भाव से अच्छे काम होते हैं, संघ वहां सहयोग करता है और समाज के साथ मिलकर कार्य करता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / संतोष मधुप

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