आपातकाल भारत की संवैधानिक यात्रा का सबसे काला और शर्मनाक काल था : उपराष्ट्रपति

आपातकाल भारत की संवैधानिक यात्रा का सबसे काला और शर्मनाक काल था : उपराष्ट्रपति
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आपातकाल भारत की संवैधानिक यात्रा का सबसे काला और शर्मनाक काल था : उपराष्ट्रपति


- धनखड़ ने 'हमारा संविधान हमारा सम्मान' अभियान का किया शुभारंभ, टेली-सुविधा सेवा- न्याय सेतु भी की लॉन्च

नई दिल्ली, 24 जनवरी (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने देश में आपातकाल की घोषणा को भारत की संवैधानिक यात्रा का सबसे काला और शर्मनाक काल बताते हुए कहा कि इसने लाखों लोगों को जेल में डालकर उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया था। उन्होंने कहा कि इसे हमेशा सबसे शर्मनाक काल के रूप में याद किया जाएगा।

उपराष्ट्रपति ने दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में गणतंत्र के रूप में भारत के 75वें वर्ष के उपलक्ष्य में 'हमारा संविधान, हमारा सम्मान' अभियान का उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने टेली-सुविधा सेवा- न्याय सेतु भी लॉन्च की। इस मौके पर उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमें उम्मीद थी कि न्यायपालिका इस अवसर पर आगे आएगी, दुर्भाग्य से न्यायपालिका के लिए भी, यह सबसे अंधकारमय अवधि में से एक है। नौ उच्च न्यायालयों ने यह रुख अपनाया कि आपातकाल के दौरान भी मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती लेकिन एडीएम जबलपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन उच्च न्यायालयों के फैसले को खारिज कर दिया।”

उपराष्ट्रपति ने मौलिक अधिकारों को हमारे लोकतंत्र की सर्वोत्कृष्टता और लोकतांत्रिक मूल्यों का एक अभिन्न पहलू बताया। उन्होंने कहा कि यदि कोई मौलिक अधिकारों से वंचित रहता है तो वह लोकतंत्र में रहने का दावा नहीं कर सकता है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि संविधान के इस भाग में हमारे पास श्रीराम, सीता और लक्ष्मण के अयोध्या लौटने का लघु चित्र है। मौलिक कर्तव्यों को संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बताते हुए उपराष्ट्रपति ने सभी से मौलिक कर्तव्यों का पालन करने की अपील की और कहा कि इसमें कोई खर्च नहीं होता है और यह हमें अच्छा नागरिक बनाता है। राज्य के सभी अंगों से अपने-अपने क्षेत्र में काम करने का आग्रह करते हुए धनखड़ ने कहा कि एक गतिशील दुनिया में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच मुद्दे होना स्वाभाविक है। हालांकि, उन्होंने सहयोगात्मक दृष्टिकोण और संरचित तंत्र के माध्यम से ऐसे मुद्दों को सुलझाने का आह्वान किया और इन्हें सार्वजनिक मंचों पर नहीं उठाने के प्रति आगाह किया।

भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वह हम सभी के लिए बहुत मायने रखते हैं और भारत के वास्तुकार के पद तक उनका पहुंचना आसान नहीं था। यह कहते हुए कि डॉ. अंबेडकर को बहुत पहले ही भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए था। धनखड़ ने इस तथ्य पर संतोष व्यक्त किया कि वह उस सरकार और संसद का हिस्सा थे जिसने 1990 में भारत रत्न से सम्मानित करके भारत के महानतम पुत्रों में से एक के साथ न्याय किया। उसी धारा में उसी उद्देश्य के लिए अब बिहार के एक और महान सपूत कर्पूरी ठाकुर को न्याय मिला है। मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत देने की घोषणा की।

धनखड़ ने इस बात पर दुख जताया कि संविधान सभा के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित संविधान की प्रति हमारे बच्चों को नहीं मिल पाती है। यह देखते हुए कि इस मूल दस्तावेज़ में 22 लघु चित्र हैं, जिन्हें संविधान के प्रत्येक भाग के ऊपर सोच-समझकर रखा गया है। इन लघुचित्रों के माध्यम से संविधान के संस्थापकों ने हमारी पांच हजार साल पुरानी संस्कृति का सार व्यक्त किया है लेकिन आप सक्षम नहीं हो पाए हैं इसे देखने के लिए क्योंकि यह किताबों का हिस्सा नहीं है। उन्होंने केंद्रीय कानून मंत्री से यह सुनिश्चित करने के लिए पहल करने का आग्रह किया कि देश को उसके प्रामाणिक रूप में संविधान उपलब्ध कराया जाए, जैसा कि हमारे संस्थापकों ने हमें दिया था।

अयोध्या में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को एक ऐतिहासिक क्षण बताते हुए धनखड़ ने कहा कि नियति के साथ साक्षात्कार और आधुनिकता के साथ साक्षात्कार के बाद हमने 22 जनवरी, 2024 को देवत्व के साथ साक्षात्कार किया।

हिन्दुस्थान समाचार/सुशील/पवन

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