भारत की सांस्कृतिक विरासत सबको समाहित करने की बात कहती है : उपराष्ट्रपति


नई दिल्ली, 12 अप्रैल (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि भारत की सांस्कृतिक विरासत सबको समाहित करने की बात कहती है। इसमें टकराव की कोई गुंजाइश नहीं है।
धनखड़ ने लाल किले के माधोदास पार्क में विक्रमोत्सव 2025 के अवसर पर सम्राट विक्रमादित्य के जीवन पर आधारित सांस्कृतिक प्रस्तुति 'महानाट्य' में भाग लिया और समारोह को संबोधित भी किया। इस अवसर पर मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री मोहन यादव, केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत एवं दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता एवं अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि लंबे अंतराल के बाद भारत ने एक नए युग में प्रवेश किया है। आर्थिक संपन्नता, आर्थिक उछाल, दुनिया की संस्थाओं द्वारा प्रशंसा, संस्थागत ढांचे के अंदर भारी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। उन्होंने कहा कि जब भारत विकास में इतना आगे बढ़ रहा है, महाशक्ति बनकर उभर रहा है, दुनिया की नजर भारत पर है, तो स्वाभाविक है कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों के प्रति हमारा लगाव बढ़ना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कोई देश दुनिया में ऐसा नहीं है जिसकी सांस्कृतिक विरासत 5000 साल पुरानी हो। उन्होंने भारत को विश्व का सांस्कृतिक और सभ्यता का केंद्र बताते हुए इसे एक सुखद संकेत करार दिया।
धनखड़ ने कहा कि अब अंग्रेजियत को छोड़ने का समय आ गया है। अपना भारत बदल रहा है, तकनीकी की पढ़ाई अलग-अलग भाषाओं में होने लग गई है। पहले सोचा नहीं था कि डॉक्टर और इंजीनियर बनेंगे तो अंग्रेज़ी में ही पढ़ना पड़ेगा। यह क्रांतिकारी बदलाव आ गया है। हमारी सभी भाषाएं हमें गौरव देती हैं। देश और दुनिया में उनका नाम है। हमारी सांस्कृतिक विरासत सबको समाहित करने की बात कहती हैं, टकराव की कोई गुंजाइश नहीं है।
उन्होंने कहा कि मुझे याद बचपन में अंग्रेजी के मार्क्स मिलते थे, अंग्रेजी रैंकिंग सब्जेक्ट था, फिर देश में एक बड़ा बदलाव आया, एक सरकार इमरजेंसी के बाद आई और अंग्रेजी को रैंकिंग सब्जेक्ट नहीं रखा । 2009 में क्या कारण थे मुझे नहीं पता, एक बार पलटा खा गए और अंग्रेजी को क्वालीफाइंग सब्जेक्ट की बजाए रैंकिंग सब्जेक्ट कर दिया। भाषा हमारी संस्कृतिक धरोहर का एक हिस्सा है। हर भाषा गुणात्मक रूप से हमें प्रभावित करती है। दक्षिण में जाएं, उत्तर में जाएं, पूर्व में जाएं, पश्चिम में जाएं और यही सोच हमें जोड़ती है। जो चीज़ जोड़ने की है, वह हमें अलग थलग कर नहीं सकती है, यह हमारे सोचने, चिंतन और मंथन का विषय है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के दिन सम्राट विक्रमादित्य को याद कर रहे हैं। उनके साथ न्याय और सुशासन जुड़ा है। हमें दिल टटोलना चाहिए जो संवत पहले शुरू हो गया, हमें उसकी पालना करनी चाहिए। उसमें आपको विधि दिखेगी, तकनीकी दिखेगी, संस्कृति दिखेगी और उसमें विज्ञान भी दिखेगा और विज्ञान के वो पहलू नज़र आते हैं, जिनकी ओर आज पूरा विश्व ध्यान आकर्षित कर रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार