मानवाधिकारों की मजबूती 'मुफ्त बांटने' के बजाय सशक्तिकरण में - उपराष्ट्रपति

मानवाधिकारों की मजबूती 'मुफ्त बांटने' के बजाय सशक्तिकरण में - उपराष्ट्रपति
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मानवाधिकारों की मजबूती 'मुफ्त बांटने' के बजाय सशक्तिकरण में - उपराष्ट्रपति


नई दिल्ली, 10 दिसंबर (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने आज कहा कि मानवाधिकारों की मजबूती लोगों के सशक्तिकरण में है और मुफ्त की राजनीति से इसे हासिल नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि ‘मुफ्त बांटने’ की राजनीति की होड़ से हमारी व्यय प्राथमिकता प्रभावित हो रही है। उन्होंने कहा कि देश में इस बात पर बहस होनी चाहिए कि इस तरह की राजनीति कैसे देश की अर्थव्यवस्था, जीवन गुणवत्ता और समाजिक सामन्जस्य पर प्रभाव डाल रही है। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार मुफ़्त चीज़ें व्यापक आर्थिक स्थिरता के बुनियादी ढांचे को कमजोर करती हैं।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ नई दिल्ली के प्रगति मैदान में मानवाधिकार दिवस समारोह में शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता का लोकाचार और संवैधानिक ढांचा मानवाधिकारों के सम्मान, सुरक्षा और पोषण के प्रति हमारी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

उन्होंने कहा कि भारत दुनिया के मानवाधिकारों को पोषित, पल्लवित, बढ़ावा देने से जुड़ा एक उदाहरण है। इसकी जमीनी हकीकत देखने के लिए हमें महानगरों से बाहर निकलना होगा। उन्होंने मानवाधिकारों के पालन में देश के जागरूक न्याय व्यवस्था का विशेष उल्लेख किया। कानून की समानता और सभी के लिए न्याय तक पहुंच मानव अधिकारों को समाज में फलने फूलने का अवसर देती है। कोई भी कानून से ऊपर नहीं होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने इस दौरान शिक्षा और सामाजिक विकास के क्षेत्र में आए बदलावों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि तीन दशकों के बाद एक ऐसी नई शिक्षा नीति लायी गई है जो मानवाधिकारों के विकास का प्रावधान करती है। इसके अतिरिक्त सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं कि हमारा विकास समावेशी हो।

नागरिकों की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में सरकार की पहलों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि समावेशी विकास का यह उत्तम उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने सरकारी योजनाओं का लाभ जन-जन तक पहुंचाया है। बैंक खाते, गैस कनेक्शन, हर घर तक नल से जल, हर घर में शौचालय और बुनियादी ढांचे का विकास इसका उदाहरण है।

व्यापक बैंकिंग समावेशन और हर किसी को बुनियादी ढांचे के विकास का लाभार्थी होने से अधिक समावेशी विकास क्या माना जा सकता है? सभी नागरिकों को सरकारी पहलों का लाभ मिले, इससे अधिक समावेशी क्या हो सकता है? महिलाओं को अब गैस कनेक्शन, दरवाजे पर पानी, हर घर में शौचालय और अपनी प्रतिभा का उपयोग करने के प्रचुर अवसर उपलब्ध हैं।

हिन्दुस्थान समाचार/अनूप/सुनीत

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