मध्यस्थता प्रणाली को 'कड़ी मुट्ठी' में रखते हैं सेवानिवृत्त न्यायाधीश : उपराष्ट्रपति

मध्यस्थता प्रणाली को 'कड़ी मुट्ठी' में रखते हैं सेवानिवृत्त न्यायाधीश : उपराष्ट्रपति
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मध्यस्थता प्रणाली को 'कड़ी मुट्ठी' में रखते हैं सेवानिवृत्त न्यायाधीश : उपराष्ट्रपति


नई दिल्ली, 02 दिसंबर (हि.स.)। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की टिप्पणी कि देश में मध्यस्थता का स्थान ‘ओल्ड बॉयज क्लब’ जैसा है, को दोहराते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि दुनिया में कहीं भी मध्यस्थता इतने कड़े नियंत्रण में नहीं है, जितनी भारत में है। मध्यस्थता प्रणाली को इस पकड़ से मुक्त कर इसे विश्वसनीय और और भरोसेमंद बनाने की आवश्यकता है। वह नई दिल्ली में छठे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय दिवस के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे।

यह देखते हुए कि भारत में मध्यस्थता के क्षेत्र में सेवानिवृत्त न्यायाधीश हावी हैं, उपराष्ट्रपति ने मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ की भावनाओं को दोहराया, जिन्होंने मध्यस्थों की नियुक्ति में विविधता की कमी पर विचार किया था जबकि अन्य योग्य उम्मीदवारों जैसे वकील और शिक्षाविद को नजरअंदाज कर दिया जाता है। सीजेआई ने इस साल की शुरुआत में टिप्पणी की थी कि भारत में मध्यस्थता का स्थान ‘ओल्ड बॉयज क्लब’ जैसा है। धनखड़ ने आगे जोर देकर कहा कि हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था और विकास की तेज गति के लिए हमारे आत्मनिर्भरता के संकेत के रूप में देश में मजबूत, संरचित मध्यस्थता संस्थानों की आवश्यकता है।

धनखड़ ने कहा, “दुनिया में कहीं भी, किसी अन्य देश में, किसी अन्य प्रणाली में, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों द्वारा मध्यस्थता प्रणाली पर इतना कड़ा नियंत्रण नहीं है, जितना हमारे देश में है।” उन्होंने कहा कि सिस्टम को इस पकड़ से मुक्त कर इसे विश्वसनीय और भरोसेमंद बनाने की जरूरत है। धनखड़ ने भारत में मध्यस्थता प्रणाली पर सीजेआई की “साहसिक” टिप्पणियों की सराहना की। उन्होंने कहा कि समय आ गया है कि आत्मनिरीक्षण किया जाए और आवश्यक बदलाव लाकर आगे बढ़ा जाए, जिसमें आवश्यकता पड़ने पर कानून भी शामिल हो।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने पेरिस में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के सदस्य के रूप में अपने तीन साल के कार्यकाल के बारे में भी बात करते हुए कहा, “भारत अपने समृद्ध मानव संसाधनों के लिए जाना जाता है लेकिन उन्हें मध्यस्थ प्रक्रियाओं पर निर्णय लेने के लिए नहीं चुना जाता है।”

उन्होंने कहा कि संस्थागत मध्यस्थता तदर्थ तंत्र से बेहतर है, क्योंकि यह निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए एक मजबूत प्रणाली प्रदान करती है। धनखड़ ने यह भी कहा कि एक ऐसा तंत्र विकसित करने की जरूरत है, जहां मध्यस्थता प्रक्रिया को न्यायिक हस्तक्षेप का सामना न करना पड़े।

उपराष्ट्रपति ने कहा कि जब विवाद लंबे समय तक चलते हैं तो कानूनी बिरादरी को लाभ होता है। उन्होंने कहा कि यदि विवाद समाधान तंत्र न्यायसंगत और निर्णायक होगा तो विश्व की आर्थिक व्यवस्था अधिक ऊंचाइयों पर जाएगी।

हिन्दुस्थान समाचार/ सुशील/दधिबल

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