उत्तराखंड : सिलक्यारा सुरंग में डीवाटरिंग पूर्वाभ्यास के लिए पहुंची एसडीआरएफ टीम
उत्तरकाशी, 15 फरवरी (हि.स.)। उत्तराखंड के यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा टनल में लंबे समय बाद डीवाटरिंग कार्य शुरू करने के लिए एसडीआरएफ की टीम पूर्वाभ्यास के लिए पहुंच है। इस बारे में एसडीआरएफ निरीक्षक जगदंबा प्रसाद बिजल्वाण ने बताया कि 14 जवान सिलक्यारा में डिवाटरिंग के लिए पूर्वाभ्यास कर रहे हैं।
इधर एनएच आई डीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि डीवाटरिंग के कार्य की प्लानिंग की जा रही है, जिसमें अभी तीन-चार दिन का वक्त लग सकता है। उन्होंने बताया किसके पूर्व अभ्यास के लिए गत बुधवार को एसडीआरएफ की टीम आ चुकी है। उन्होंने बताया कि सुरक्षात्मक कार्य के लिए करीब दस-दस मीटर बेस तैयार करने की योजना है।
क्या होता डीवाटरिंग?
डिवाटरिंग एक आवश्यक प्रक्रिया है, जिसमें एक निर्माण स्थल, खुदाई या भूमिगत सुरंग से पानी निकालना शामिल है। डिवाटरिंग यह सुनिश्चित करने के लिए प्रक्रिया महत्वपूर्ण होती है जो निर्माण श्रमिकों के लिए कार्य वातावरण को सुरक्षित और स्थिर करने के साथ ही मिट्टी में जलभराव को रोकने के लिए की जाती है।
सिलक्यारा सुंरग के ज़ख्मों पर मरहम लगाने से क्या भविष्य में नहीं होगी अनहोनी-
बीती 12 नवम्बर 2023 को सिलक्यारा निर्माणाधीन टनल हादसे के बाद केन्द्र सरकार की जांच एजेंसियों ने बंद पड़े निर्माण कार्य को शुरू करने का आदेश कार्यदायी संस्था नवयुगा को देने के बाद बड़ा सवाल उठने लगा है कि क्या कार्यदायी संस्था डैमेज एरिया का ट्रीटमेंट गारंटी के साथ करेंगी और दोबारा टनल नहीं टूटेगी। क्योंकि जिस एरिया में टनल बार बार डैमेज हो रही है वह बहुत ही लूज एरिया है और सफेद दल-दल मिट्टी को रोकना बहुत रिस्की कार्य है।
गौरतलब है कि 12 नवंबर 2023 में सिलक्यारा टनल में 17 दिन तक नवयुगा कंपनी के 41 मजदूर टनल के अंदर फंसे रहे, जिसके लिए केन्द्र और राज्य की एजेन्सियों ने एडी चोटी का जोर लगाकर बामुश्किल 28 नवम्बर को श्रमिकों को 8 एमएम के पाइपों के जरिए बाहर निकाला था और तब जाकर कंपनी के अधिकारियों ने चैन की सांस ली थी। तब से लेकर अब तक केन्द्र और राज्य सरकार की विभिन्न जांच एजेंसियों ने अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी। अब जाकर केन्द्र सरकार ने अनुबंधित कंपनी एनएचआईडीसीएल को फिर से टनल निर्माण में कार्य करने की अनुमति दी है।
मगर टनल के अंदर अस्सी मीटर एरिया का जो डैमेज क्षेत्र है, वह बहुत ही रिस्की है और ऊपरी हिस्से में दलदली सफेद मिट्टी होने के कारण भविष्य में डैमेज हो सकता है। क्योंकि इस जगह से पहले भी दो बार टनल ने खतरे के सिग्नल दिये थे। हालांकि टनल निर्माण का कार्य कर रही नवयुगा कंपनी के एक्सपर्ट इंजीनियर सब कुछ ठीक होने की बात कर रहे हैं। अब दोबारा से जांच एजेंसियों से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद टनल निर्माण में लगी नवयुगा कंपनी में पुनर्निर्माण की हलचल शुरू हो गई है। यह टनल दोबारा न टूटे यह तो भविष्य के गर्भ में है।
हिन्दुस्थान समाचार/चिरंजीव सेमवाल/रामानुज
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