इतिहास केवल अतीत नहीं, भविष्य की दृष्टि है: रामबहादुर राय

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इतिहास केवल अतीत नहीं, भविष्य की दृष्टि है: रामबहादुर राय


इतिहास केवल अतीत नहीं, भविष्य की दृष्टि है: रामबहादुर राय


इतिहास केवल अतीत नहीं, भविष्य की दृष्टि है: रामबहादुर राय


— आईजीएनसीए न्यास के अध्यक्ष ने वाराणसी में ‘क्रांतिकारी पंचांग–2026’ का किया लोकार्पण

—जगतगंज कोठी में भ्रमण कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू जगत सिंह पर हुए शोध को सराहा

वाराणसी,19 दिसंबर (हि.स.)। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए)न्यास अध्यक्ष ‘पद्म भूषण’ राम बहादुर राय ने शुक्रवार को लहुराबीर जगतगंज स्थित जगतगंज कोठी में ‘क्रांतिकारी पंचांग–2026’ का लोकार्पण किया। मातृभूमि सेवा संस्था की ओर से प्रकाशित यह ‘क्रांतिकारी पंचांग–2026’ केवल तिथियों का संग्रह नहीं, बल्कि उन गुमनाम और उपेक्षित स्वतंत्रता सेनानियों की जीवित स्मृति है, जिनके त्याग और बलिदान से भारत की आजादी संभव हुई, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सका।

इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार पद्म भूषण रामबहादुर राय ने कहा कि इतिहास केवल बीते समय का विवरण नहीं, बल्कि वह सेतु है जो वर्तमान को अतीत से जोड़ते हुए भविष्य की दिशा देता है। बाबू जगत सिंह के जीवन और बलिदान पर हुआ यह शोध उसी विस्तृत इतिहास की ओर ले जाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसे अब तक पूरी तरह सामने नहीं लाया जा सका था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू जगत सिंह पर हुए शोध के जरिए आजादी में उनके योगदान का उल्लेख कर वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि अब यह स्पष्ट हो चुका है कि बाबू जगत सिंह की गिरफ्तारी कब हुई, उन पर मुकदमा कितने समय तक चला, उन्हें चुनार से विंडहैम फोर्ट जेल कब भेजा गया, वहाँ से सेंट हेलेना द्वीप तक किस तिथि को ले जाया गया और बंगाल की खाड़ी गंगा सागर में उन्होंने किस दिन जल-समाधि ली। यह सब तथ्य सामने आना ही अपने आप में एक बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि है। उन्होंने यह भी कहा कि अभी यह जानना शेष है कि उनकी जेल रवानगी के समय का आधिकारिक रजिस्टर उपलब्ध है या नहीं, और उसमें उनके बारे में क्या दर्ज किया गया था। उस दौर में हर घटना का विधिवत लेखा-जोखा रखा जाता था। यही अगली और आवश्यक खोज है, जिस पर आगे कार्य होना चाहिए।

रामबहादुर राय ने कहा कि इसी खोज-प्रक्रिया के क्रम में यह कैलेंडर तैयार हुआ है। इसका महत्व इसमें दर्ज तिथियों या नामों के कारण नहीं, बल्कि इसलिए है कि यह स्वतंत्रता आंदोलन को गंगोत्री से गंगा-सागर तक के एक तीर्थ-पथ के रूप में प्रस्तुत करता है। जिस प्रकार गंगा अपने प्रवाह में घाटों का निर्माण करती है, उसी प्रकार यह कैलेंडर स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे घाट हैं, जहाँ नई और पुरानी पीढ़ी को इतिहास से जुड़ने का अनुभव होता है। उन्होंने कहा कि समझ ही ऊर्जा होती है। जब किसी व्यक्ति के भीतर इतिहास की नई समझ विकसित होती है, तो उसका जीवन भी व्यापक होता है। बाबू जगत सिंह के ऊपर लिखित पुस्तक और इसके अगले चरण के रूप में तैयार किया गया यह कैलेंडर हमें ऐसे ही नए ऐतिहासिक बोध से परिचित कराता है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अब देश संचित इतिहास से आगे बढ़कर विस्तृत इतिहास की ओर अग्रसर हो रहा है। जिस दिन हम इस विस्तृत इतिहास को आत्मसात कर लेंगे, उस दिन यह समझ पाएंगे कि भारत का इतिहास केवल कुछ वर्षों का नहीं, बल्कि डेढ़ लाख वर्षों की निरंतरता का इतिहास है। उन्होंने कहा कि बाबू जगत सिंह के पूरे कार्य और योगदान को जानने के बाद बनारस का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को इस व्यापक इतिहास का हिस्सा महसूस करेगा।

उन्होंने इतिहासकार डॉ. हामिद आफाक कुरैशी सहित इस शोध से जुड़े सभी लोगों को बधाई देते हुए कहा कि यह कार्य अभी प्रारंभ हुआ है, समाप्त नहीं। इसके आगे अंग्रेज़ी संस्करण, हिंदी अनुवाद, कविताएं, उपन्यास और डॉक्यूमेंट्री के रूप में यह यात्रा आगे बढ़ेगी। लोकार्पण समारोह में उत्तर प्रदेश सरकार के स्टांप तथा न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविंद्र जायसवाल, इतिहासकार डॉ. हामिद आफाक कुरैशी,संस्था के संस्थापक एवं राष्ट्रीय सचिव राकेश कुमार ने भी विचार प्रकट किया। समारोह की अध्यक्षता इंडो–श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय बुद्धिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं महाबोधि सोसाइटी ऑफ इंडिया के पूर्व सचिव डॉ. के. सिरी सुमेध थेरो ने की।

उन्होंने कहा कि पंचांग के माध्यम से इतिहास को केवल पढ़ा नहीं जाएगा, बल्कि उसे अनुभव किया जाएगा। इससे युवा पीढ़ी में राष्ट्र के प्रति दायित्वबोध विकसित होगा । संस्था के संरक्षक प्रदीप नारायण सिंह ने अतिथियों का स्वागत कर बताया कि बीते छह वर्षों से मातृभूमि सेवा संस्था उन स्वतंत्रता सेनानियों की अनकही गाथाओं को सामने लाने के लिए निरंतर कार्य कर रही है, जिन्हें इतिहास ने भुला दिया। क्रांतिकारी पंचांग–2026 उसी संघर्ष का सशक्त दस्तावेज है, जो आने वाली पीढ़ियों को अपने गौरवशाली अतीत से जोड़ेगा। लोकार्पण समारोह में बड़ी संख्या में इतिहासप्रेमी, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता और विशिष्टजन उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

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