काशी-तमिल संगमम साझा सभ्यता और नियति का उत्सव: डॉ. मजूमदार

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काशी-तमिल संगमम साझा सभ्यता और नियति का उत्सव: डॉ. मजूमदार


— केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री काशी-तमिल संगमम के कार्यक्रम में हुए शामिल

वाराणसी, 14 दिसंबर (हि.स.)। केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने रविवार को कहा कि उत्तर दिशा बाबा विश्वनाथ के चरणों में नमन करती है जो दक्षिण रामेश्वरम से उसी भक्ति-परंपरा को आगे बढ़ाता है। यह एक अविच्छिन्न आध्यात्मिक परिपथ है। काशी-तमिल संगमम इसी प्राचीन, निरंतर साझा सभ्यता और नियति का उत्सव है।

केन्द्रीय मंत्री नमोघाट पर आयोजित काशी-तमिल संगमम के चौथे संस्करण को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि काशी-तमिल संगमम् “एक भारत–श्रेष्ठ भारत” की भावना का सजीव और अनुभवात्मक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि काशी की यह यात्रा सभी के लिए आनंददायक है और यह आयोजन चोल और पांड्य जैसी महान सभ्यताओं से आकार पाई भारत की जीवंत, बहुरंगी जीवन-परंपराओं का उत्सव है।

केंद्रीय मंत्री मजूमदार ने काशी आए सभी तमिल प्रतिभागियों का स्वागत किया। मंत्री ने कहा कि काशी-तमिल संगमम् का यह संस्करण भाषायी सेतुओं को और सुदृढ़ करने के उद्देश्य से समर्पित है तथा इसकी थीम “तमिल करकलाम (तमिल सीखें)” प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उस पहल का हिस्सा है, जो भारत की सभ्यता और आत्मा को जोड़ने का कार्य करती है। उन्होंने कहा कि हमारी साझा थाली, मसालों की सुगंध, कांचीपुरम की रेशमी साड़ियां और बनारसी सिल्क, तथा दोनों क्षेत्रों के विद्वानों और शिल्प परंपराओं में प्रत्यक्ष दिखाई देती है। उन्होंने प्रतिभागियों से आग्रह किया कि वे यहां केवल दर्शक बनकर न रहें, बल्कि मित्रता करें, संस्कृति को आत्मसात करें, अनुभवों को साझा करें और लौटकर साझा सांस्कृतिक सेतु के दूत बनें।

उन्होंने विद्यार्थियों से विशेष रूप से संवाद करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी को भाषा की दीवारों को तोड़ना होगा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की भावना के अनुरूप भारतीय शिक्षा प्रणाली की बहुभाषिक समृद्धि को अपनाना होगा। उन्होंने उत्तर भारत के विद्यार्थियों से तमिल सीखने और दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु के विद्यार्थियों से अपनी भाषा और संस्कृति को साझा करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जिस मन में गंगा की कविता और कावेरी का दर्शन एक साथ समाहित हो जाए, वही वास्तव में शिक्षित भारतीय मन है। काशी तमिल संगमम दोनों संस्कृतियों की साझा धड़कन को स्वर देता है।

कार्यक्रम में आईआईटी–बीएचयू के निदेशक प्रो. अमित पात्रा ने कहा कि काशी तमिल संगमम् “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की भावना का जीवंत और अनुभूतिपरक उदाहरण है। काशी और तमिलनाडु भारत की सभ्यता और ज्ञान के दो पवित्र ध्रुव हैं—यदि काशी भारतीय आध्यात्मिक चेतना की नाभि है, तो तमिलनाडु कावेरी के तट पर प्रवाहित भक्ति, साहित्य और दर्शन की भूमि है। प्रो. अमित पात्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘तमिल करकलाम’ जैसी पहलें भाषायी सीमाओं को तोड़कर सभ्यताओं के बीच सेतु का कार्य करती हैं। यह संगम केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान नहीं, बल्कि भारत की साझा बौद्धिक और आत्मिक विरासत की पुनः खोज है।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी

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