लोकसभा चुनाव : नैनीताल सीट से जो जीता, उसकी पार्टी ही केंद्र में हुई सत्तारूढ़

लोकसभा चुनाव : नैनीताल सीट से जो जीता, उसकी पार्टी ही केंद्र में हुई सत्तारूढ़
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लोकसभा चुनाव : नैनीताल सीट से जो जीता, उसकी पार्टी ही केंद्र में हुई सत्तारूढ़


-बदलाव की हर बयार में नैनीताल ने भी ली है करवट

-कइयों को राजनीति का ककहरा सीखते ही नैनीताल ने पहुंचाया दिल्ली

नैनीताल, 01 अप्रैल (हि.स.)। देश के सर्वाधिक शिक्षित संसदीय क्षेत्रों में शामिल और भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार, पं.एनडी तिवारी की परंपरागत सीट माने जाने नैनीताल ने देश में चल रही हर बदलाव की बयार में खुद भी करवट ली है। यह भी सच है कि देश में जिस भी पार्टी की अच्छी सरकार चली है तो यहां के मतदाताओं ने उस सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार को ही सिर-माथे पर बिठाया है, लेकिन जहां सत्तारूढ़ पार्टी ने चूक की और नैनीताल को अपनी परम्परागत सीट मानकर गुमान में रही, तो उसे यहां के मतदाताओं ने जमीन दिखाने से भी गुरेज नहीं किया। इसके साथ ही नैनीताल संसदीय सीट के साथ यह संयोग भी स्थापित होता चला गया है कि नैनीताल से जिस पार्टी का उम्मीदवार जीता, उसी पार्टी की ही देश में सरकार भी बनती रही है। साथ ही यह भी कहा जाता है कि नैनीताल देश-दिल्ली के साथ कदमताल करता है। इन संयोगों के साथ नैनीताल सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों राजनीतिक दलों की इस बार भी नजर है।

पंत भी नैनीताल से हारे-एनडी भी-

नैनीताल लोकसभा सीट के अतीत के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि नैनीताल देश की आजादी के बाद भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार और बाद में एनडी तिवारी सरीखे नेताओं की परंपरागत सीट रही है। साथ ही दोनों को ही संसद पहुंचने की सीढ़ी चढ़ने का ककहरा भी नैनीताल ने ही सिखाया है। मगर यह भी मानना होगा कि यहां के मतदाताओं की मंशा को कोई नेता ठीक से नहीं समझ पाया। इसीलिये एनडी भी यहां से हारे और पं. पंत के पुत्र केसी पंत भी। इसी तरह कांग्रेस की परंपरागत सीट माने जाने के बावजूद कांग्रेस के नेता भी हर चुनाव में यहां असमंजस के दौर से ही गुजरते रहे हैं, जबकि देश की सत्ता संभाल रही भाजपा यहां से केवल चार बार ही जीत हासिल कर पाई है। जनता पार्टी और जनता दल के नेताओं को भी नैनीताल ने अपना प्रतिनिधित्व करने का मौका देने से गुरेज नहीं किया।

जो जीता उसकी पार्टी की ही केंद्र में बनी सरकार-

वर्ष 1971 के चुनाव तक नैनीताल के मतदाताओं ने कुछ खास नेताओं को ही गले लगाया। इसके बाद उन्होंने अपने किसी भी प्रतिनिधि को दोबारा नहीं जिताया। इसके साथ ही यह भी साफ तौर पर नजर आता है कि देश में चल रही तत्कालीन राजनीतिक हवा का असर नैनीताल सीट पर भी सीधा पड़ता रहा है। देश के शुरुआती 1951 व 1957 के लोक सभा चुनावों में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के दामाद सीडी पांडे और 1962 से 1971 तक के तीन चुनावों में पं. पंत के पुत्र केसी पंत कांग्रेस के टिकट पर नैनीताल से सांसद रहे। यानी देश में कांग्रेस की सरकारें भी बनती रहीं। मगर 1977 के चुनाव में आपातकाल के दौर में तीन बार के सांसद केसी पंत को भारतीय लोकदल के नए चेहरे भारत भूषण ने पराजित कर दिया। तब देश में पहली बार विपक्ष की सरकार बनी। लेकिन विपक्ष का प्रयोग विफल रहने पर 1980 में एनडी तिवारी को उनके पहले संसदीय चुनाव में ही नैनीताल ने दिल्ली पहुंचा दिया। अपने कार्यकाल के बीच ही 1984 में तिवारी सांसदी छोड़ यूपी का सीएम बनने चले तो उनके शागिर्द सतेंद्र चंद्र गुड़िया को भी जनता ने जीत का सम्मान दिया। इस दौरान केंद्र में फिर से कांग्रेस की सरकार बनी।

1989 के चुनाव में देश भर में मंडल आयोग की हवा चली तो जनता दल के नए चेहरे डा. महेंद्र पाल नैनीताल से चुनाव जीत गए और जनता दल की ही केंद्र में सरकार बनी। 1998 में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को पटखनी दी और केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद से 2004 व 2009 के चुनावों में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा यहां से सांसद बने और दोनों बार देश में कांग्रेस की ही सरकार बनी। इसके बाद 2004 व 2009 में हुए 2 लोक सभा चुनावों में नैनीताल से कांग्रेस के टिकट पर ‘चंदवंशीय राजकुमार’ केसी सिंह बाबा चुनाव जीते और केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। जबकि 2014 में भाजपा के टिकट पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी नैनीताल से सांसद बने तो देश में फिर से भाजपा की सरकार भी बनने से यहां से जीतने वाले दल की ही दिल्ली में सरकार बनने का मिथक पूरी तरह से स्थापित हो गया और 2019 में भाजपा उम्मीदवार अजय भट्ट के जीतने और केंद्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की दुबारा सरकार बनने से नैनीताल से जीतने वाले उम्मीदवार की ही पार्टी के केंद्र में सत्तारूढ़ होने का मिथक और मजबूत हो गया।

एनडी की वजह से तीन बार टूटा मिथक

नैनीताल में जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में सरकार बनने के मिथक को केवल एनडी तिवारी की वजह से 1991, 1996 और 1999 के चुनावों में टूटा। 1991 के चुनाव में नैनीताल के मतदाताओं ने देश में चल रही राम लहर की हवा में बहे और भाजपा के बिल्कुल नये चेहरे बलराज पासी ने एनडी तिवारी को हराकर न केवल इतिहास रच दिया, बल्कि एनडी का देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना भी तोड़ दिया। यह पहली बार था जब नैनीताल के सांसद का सत्तारूढ़ दल में बैठने का मिथक टूटा और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने।

1996 में एनडी ने कांग्रेस से नाराज होकर सतपाल महाराज, शीशराम ओला व अन्य के साथ मिलकर कांग्रेस (तिवारी) बनाई और चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन इस चुनाव के बाद केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। इसी तरह 1999 के चुनाव में भी एनडी तिवारी ने फिर अपवाद दोहराया, जब कांग्रेस से तिवारी तीसरी बार सांसद बने, लेकिन फिर केंद्र में भाजपा की ही सरकार बनी। वर्ष 2002 में उनके उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव में जनता दल से कांग्रेस में आए डा. महेंद्र पाल भी उनकी सीट बचाने में सफल रहे और दूसरी बार नैनीताल के सांसद बने, लेकिन तब केंद्र में पहले से भाजपा की सरकार थी।

हिन्दुस्थान समाचार/डॉ.नवीन जोशी/रामानुज

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