तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव

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तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव


तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव


तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव


तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव


तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव


तानसेन समारोह : संगीतधानी ग्वालियर में मना सुरों का उत्सव


- पूर्वरंग कार्यक्रम श्रृंखला में एक साथ 15 स्थानों पर सजी संगीत महफिलें

ग्वालियर, 22 दिसंबर (हि.स.)। संगीतधानी ग्वालियर की फिजाएं शुक्रवार की शाम सुर-साज की मीठी संगत से महक गईं। मौका था विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह के अंतर्गत पूर्वरंग कार्यक्रमों की श्रृंखला में संगीत की नगरी ग्वालियर में एक साथ सजीं “तानसेन संगीत महफिलों” का। जब शहर के पन्द्रह स्थानों पर विशिष्ट संगीत सभाएं सजी तो मानो सुरों का उत्सव साकार हो उठा। इन सभाओं में शहर के वरिष्ठ और उदयीमान कलाकारों ने ऐसे सुर छेड़े कि दिसम्बर की सर्द सांझ सुरों का संपर्क पाकर गर्माहट का अहसास करा गई। तानसेन समारोह के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब सुरों की नगरी में इतनी संख्या में एक साथ संगीत सभाएं हुईं।

सुमधुर गायन से गुंजायमान हुआ महाराज बाड़ा

शहर के हृदय स्थल महाराज बाड़ा पर स्थित टाउनहॉल में सजी “तानसेन संगीत महफिल” में सभा की शुरुआत हेमांग कोल्हरकर के गायन से हुई। उन्होंने राग “पूरिया धनाश्री” में गायन की प्रस्तुति दी। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे-'लागी मोरी लगन'। उनके द्वारा प्रस्तुत तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे-'काहे अब तुम आए हो।' उनके साथ तबले पर मनीष करवड़े एवं हारमोनियम पर डॉ. अनूप मोघे ने संगत की। इस सभा के दूसरे कलाकार थे देश के अग्रणी हवाईन गिटार वादक पं. सुनील पावगी। उन्होंने राग 'धानी' में अपना वादन पेश किया। आलाप, जोड़, झाला से शुरू करके इस राग में उन्होंने दो गतें पेश की। विलंबित गत झपताल और द्रुत गत तीन ताल में निबद्ध थी। उन्होंने वादन का समापन अपने भैरवी की धुन से किया। उनके साथ तबले पर डॉ. विनय विन्दे ने संगत की।

गायन-वादन से बैजाताल में उठीं जल तरंगें

बैजाताल पर सजी “तानसेन संगीत महफिल” में उदयीमान गायक सुदीप भदौरिया का ध्रुपद गायन एवं राजेन्द्र विश्वरुप का सुरबहार वादन हुआ। सुदीप ने अपना गायन राग यमन में पेश किया। उनके गायन से रसिक मंत्रमुग्ध हो गए और एक बारगी ऐसा लगा कि बैजाताल के पानी में जल तरंगें उठ रही हैं। उन्होंने आलाप, मध्यलय, आलाप, द्रुतलय आलाप के बाद उन्होंने धमार में निबद्ध बंदिश पेश की, जिसके बोल थे-'केसर रंग घोर के बनो है। दूसरी बंदिश-गणपति गणेश-जलद सूलताल में निबद्ध थी। उनके साथ पखावज पर पं. संजय पंत आगले ने साथ दिया। तानपुरे पर साकेत कुमार एवं युक्ता सिंह तोमर ने साथ दिया। दूसरी प्रस्तुति में वरिष्ठ कलाकार राजेन्द्र विश्वरुप ने सुमधुर सुरबहार वादन पेश किया। उन्होंने राज कल्याणी में आलाप जोड़, झाला से शुरू करके चौताल में एक गत पेश की। उनका वादन गांमीर्य और माघुर्य से परिपूर्ण था। वादन में पं. संजय पंत आगले ने संगत की।

किले पर भी गूंजी स्वर लहरियां

ग्वालियर किले पर सजी “तानसेन संगीत महफिल” की संगीत सभा की शुरुआत मीरा वैष्णव के गायन से हुई। उन्होंने राग पुरिया कल्याण में दो बंदिशें पेश की। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे होवन लागी सांझ जबकि मध्यलय तीनतालकी बंदिश के बोल देह बहुत दिन बीते। आपने एक तराना भी पेश किया। इसके बाद इसी सभा में जनाब सलमान खान का सुमधुर सारंगी वादन भी हुआ।इन प्रस्तुतियों में हारमोनियम पर नवनीत कौशल एवं तबले पर शाहरुख खान ने साथ दिया।

गंगादास की शाला में भी सुर महके

तानसेन संगीत महफिल के तहत गंगादासजी की बड़ी शाला-सिद्धपीठ गंगादासजी की बड़ी शाला में भी सुर महके। सभा की शुरूआत जान-माने सितार वादक पं. भरत नायक के वादन से हुई। उन्होंने राग पूरिया कल्याण में वादन पेश किया। आलाप, जोड़ झाला से शुरू करके उन्होंने तीन ताल में विलंबित व द्रुत गतें पेश की। अंत में एक धुन से वादन का समापन किया। सभा के दूसरे कलाकार थे वरिष्ठ गायक पं. महेश दत्त पांडे। उन्होंने राग मारु विहाग में अपना गायन पेश किया। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे-'भनक परी है कानने मेरे' जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे -'काहू के मन को..'। राग रसरंजनी से गायन को आगे बढ़ाते हुए आपने इस राग में मध्यलय, तीन ताल में एक बंदिश पेश की, जिसके बोल थे-'कैसे कटे ये रैन’। उन्होंने गायन का समापन एक भजन से किया। तबले पर पं. अनंत मसूरकर व हारमोनियम पर संजय देवले ने सधी हुई संगत का प्रदर्शन किया।

जयविलास पैलेस में बिखरे राग मधुवंती के सुर

जयविलास पैलेस में सजी तानसेन संगीत महफिल में पं. श्रीराम उमड़ेकर का सितार वादन एवं पं. उमेश कंपूवाले का खयाल गायन हुआ। सभा की शुरूआत पं. उमेश कंपूवाले के गायन से हुई। उन्होंने राग मधुवंती में अपना गायन पेश किया। इस राग में उन्होंने दो बंदिशें पेश की। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे-'पिया घर नाहीं’ जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे-'तुम्हारे दरस बिन बलमा’। इसी राग में आपने तराना भी पेश किया। इसके पश्चात् आपने महादजी सिंधिया द्वारा रचित भजन-'अरि गिरधर सौ कौन लरी’ और माधवराव प्रथम पर लिखी गई स्तुति भी पेश की। गायन का समापन उन्होंने मराठी अभंग से किया। आपके साथ तबले पर पांडुरग तैलंग एवं हारमोनियम पर अक्षत मिश्रा ने साथ दिया। अगली प्रस्तुति में पं. श्रीराम उमड़ेकर का सितार वादन हुआ। उन्होंने राग चारुकेशी में अपने वादन की प्रस्तुति दी। आलाप, जोड़ से शुरू करके उन्होंने क्रमश: मत्त और तीन ताल में दो गतें पेश की। आपके साथ तबले पर श्री कुणाल मसूरकर ने साथ दिया।

हस्सू-हद्दू खां सभागार में गूंजी ध्रुपद की बंदिशें

हस्सू खां हद्दू सभागार की तानसेन संगीत महफिल में तेजस भाटे ने ध्रुपद गायन की प्रस्तुति दी। आलाप, मध्यलय आलाप एवं द्रुत लय आलाप से शुरू की। उन्होंने राग गायन में धमार पेश किया। बंदिश के बोल थे- 'केसर घोर के बनो है' उन्होंने जलद सूलताल में भी एक बंदिश पेश की, बोल थे-'गणपति गणेश। यहीं पर दूसरी प्रस्तुति पद्मजा विश्वरुप के विचित्र वीणा वादन की हुई। उन्होंने राग चलनाट में आलाप, जोड़, झाला से शुरू करके तीव्रा ताल में एक गत बजाई। इन प्रस्तुतियों में संजय आफले ने पखावज पर साथ दिया।

खयाल गायन से गुंजायमान हुआ द्वारिकाधीश मंदिर

द्वारिकाधीश मंदिर मुरार की सभा का आगाज मनोज नाइक के सितार वादन से हुआ। उन्होंने राग पूरिया धनाश्री में वादन की प्रस्तुति दी। विलंबित एवं द्रुत रचनाएं उन्होंने खयाल अंग में तीन ताल में पेश की। वादन का समापन उन्होंने झाले से किया। आपके साथ तबले पर प्रणव पराड़कर ने संगत की। इसी सभा के दूसरे कलाकार थे अनंत महाजनी जी। उन्होंने राग मारु विहाग में दो बंदिश गाईं। विलंबित बंदिश एक ताल में निबद्ध थी, बोल थे-'भनक परी है कानन' जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे-'जागूं मैं सारी रैना' उन्होंने राग तिलक कामोद में भी एक बंदिश पेश की और भजन-'रघुवर तुमको मेरी लाज' से गायन का समापन किया। आपके साथ तबले पर अविनाश महाजनी व हारमोनियम पर शुभम बहादुर ने साथ दिया।

तानसेन संगीत महाविद्यालय भी हुआ ध्रुपदमय

तानसेन संगीत महाविद्यालय में योगिनी तांबे ने ध्रुपद गायन की प्रस्तुति देकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके गायन का उतार-चढ़ाव सुनते ही बना। जगत नारायण शर्मा ने पखावज पर चौताल की शानदार प्रस्तुति दी।

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में “नाम निरंजन गावो”

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में सजी तानसेन महफिल में ग्वालियर की वरिष्ठ संगीत साधिका विदुषी साधना गोरे का गायन व संजय राठौर का तबला वादन हुआ। संजय राठौर के तबला वादन से सभा की शुरुआत हुई। उन्होंने तीन ताल में अपना वादन प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने द्रुत लय में लयकारी त्रिपली दुकड़े पेश किए और लग्गी बजाकर समापन किया। उनके साथ हारमोनियम पर विवेक जैन ने लहरा दिया। दूसरी प्रस्तुति में साधना गोरे का गायन हुआ। उन्होंने राग शुद्ध सांरग में अपना गायन पेश किया। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे-'नाम निरंजन गावो ' जबकि तीन ताल में मध्यलय की रचना के बोल थे- 'तू है निराकार।' गायन को आगे बढ़ाते हुए साधना ने मिश्र शिवरंजनी में दादरा पेश किया। बोल थे- 'छाई घटा घनघोर' गायन का समापन आपने राग पटदीप पर आधारित मीरा के भजन 'भज ले रे मन' से किया। आपके साथ तबले पर डॉ. विनय विन्दे एवं हारमोनियम पर विवेक जैन ने संगत की।

शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय में गूंजी भैरवी

शंकर गांधर्व संगीत महाविद्यालय में हुई संगीत महफिल में अंकुर धारकर का वायोलिन वादन एवं डॉ. ईश्वरचन्द्र करकरे का गायन हुआ। सभा की शुरुआत करते हुए अंकुर धारकर ने राग यमन में अपना वादन पेश किया। उन्होंने तीन रचनाएं पेश की। विलंबित, मध्यलय और द्रुत लय की तीनों ही रचनाएं तीन ताल में निबद्ध थी। गायकी अंग का उनका वादन माधुर्य से परिपूर्ण था। आपके साथ तबले पर डॉ. विनय विन्दे ने संगत की। अगली प्रस्तुति में डॉ. ईश्वरचन्द्र रामचन्द्र राग पूरिया धनाश्री में तीन बंदिशें पेश की। एक ताल में निबद्ध विलंबित बंदिश के बोल थे-'ए बलि-बलि जाऊं। अद्धा तीन ताल में बंदिश के बोल थे-मोहे लागी लगन गुरु चरणन की, एवं द्रुत तीन ताल में बंदिश थी- पायलिया झंकार। तीनों ही बंदिशों को उन्होंने पूरे कौशल से गाया। गायन का समापन ग्वालियर घराने की खास भैरवी में भजन 'मैं तो तोरे दावन वा’ से किया। उनके साथ तबले पर संजय राठौर एवं संवादिनी पर मुकेश पाल ने साथ दिया।

माधव संगीत महाविद्यालय में “पायलिया झनकार…”

तानसेन संगीत महफिल के तहत शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय में हुई संगीत सभा की शुरूआत जनाब राशिद खां के सितार वादन से हुई। उन्होंने राग यमन में वादन पेश किया। आलाप जोड़ से शुरू करके उन्होंने विलंबित और द्रुत दोनों गतें तीन ताल में पेश की। आपके साथ तबले पर रहीस खां ने संगत की। सभा की दूसरी कलाकार थी डॉ. वीणा जोशी। उन्होंने राग पूरिया धनाश्री में अपना गायन पेश किया। उन्होंने दो बंदिशें पेश कीं। एक ताल में निबद्ध बंदिश के बोल थे-' अब तो रुत मान’।जबकि तीन ताल में मध्यलय की बंदिश के बोल थे-' पायलिया झनकार..’। गायन की समापन उन्होंने राम भजन से किया। आपके साथ तबले पर सजग माथुर व हारमोनियम पर नारायण काटे ने संगत की।

तानसेन कला वीथिका में नाथद्वारा परंपरा की धिन्नक

तानसेन कला वीथिका में सभा की शुरुआत जयवंत गायकवाड़ के पखावज वादन से हुई। उन्होंने चौताल में अपना वादन पेश किया। गणेश परन से शुरू करके आपने नाथद्वारा परंपरा का धिन्नक का बाज फरमाईशी परन और रेला बजाते हुए झाले से समापन किया। आपके साथ विवेक जैन ने हारमोनियम पर साथ दिया। इसी सभा में प्रो. रंजना टोणपे ने अपना गायन पेश किया।

दत्त मंदिर में सबसे कम उम्र के कलाकार वेदांत के तबला वादन ने बांधा समां

दत्त मंदिर में सजी संगीत महफिल में प्रज्ज्वल शिर्के व वेदांत विपट ने सांगीतिक प्रस्तुतियां दीं। सभा की शुरूआत वेदांत विपट के एकल तबला वादन से हुई। बताना मुनासिब होगा कि जितनी भी सभाएं हुईं उनमें प्रस्तुति देने वाले कलाकारों में वेदांत सबसे कम उम्र के कलाकार है। उन्होंने तीन ताल में तबला वादन पेश किया। पेशकार से शुरू करके उन्होंने कायदे, रेले, गत परन व तिहाइयों की प्रस्तुति दी। उनके साथ हारमोनियम पर शशांक शिवहरे ने नगमा दिया। वेदांत ने तबले की शिक्षा अपने पिता विकास विपट से प्राप्त की है। इसी सभा में प्रज्ज्वल शिर्के ने राग पूरिया धनाश्री में प्रस्तुति दी। उन्होंने दो बंदिशें पेश की। एक ताल की विलंबित बंदिश के बोल थे-' तन मन बारूं” जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे- 'आना वे मिल जान वे। उनके साथ तबले पर लोकेन्द्र शिर्के व हारमोनियम पर शशांक शिवहरे ने साथ दिया।

पर्यटन संस्थान में राग ‘पूरिया कल्याण’ की गूंज

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान में सजी तानसेन संगीत महफिल में युवा गायक यश देवले का गायन हुआ। उन्होंने राग पुरिया कल्याण में बंदिशें सुनाई। इसी सभा में अविनाश राजावत ने एकल तबला वादन में तीन ताल की प्रस्तुति दी।

लक्ष्मीनारायण मंदिर में राग ‘मधुवंती’ में गायन

तानसेन संगीत महफिल के तहत लक्ष्मीनारायण मंदिर में आयोजित संगीत सभा की शुरुआत शिवांग दुबे के गायन से हुई। राग मधुवंती से गायन की शुरुआत करते हुए उन्होंने इस राग में दो बंदिशें पेश की। एक ताल में विलंबित बंदिश के बोल थे-'पिया घर नाहीं’ जबकि तीन ताल में द्रुत बंदिश के बोल थे-'तुम्हारे दरस बिन’। इसी राग में आपने तराना पेश करते हुए भजन से समापन किया। आपके साथ तबले पर अनुनय शर्मा ने एवं हारमोनियम पर सत्यम पाठक ने साथ दिया। इसी सभा में पं. सुभाष देशपांडे ने वायलिन वादन की प्रस्तुति दी। उन्होंने राग मारु विहाग में अपना वादन पेश किया और क्रमश: एक ताल व तीन ताल में विलंबित, मध्य एवं द्रुत लय की रचनाएं पेश की। आपके साथ तबले पर योगेश शर्मा ने साथ दिया।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश/प्रभात

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