Tanot Mata Temple : भारत-पाक सीमा पर स्थित यह मंदिर दुश्मनों पर भारी, जहां बम भी हो जाते हैं बेअसर!

राजस्थान के रेगिस्तानी इलाके में स्थित जैसलमेर जिले के तनोट गांव में एक ऐसा मंदिर है जो सिर्फ आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि देशभक्ति और चमत्कारों का प्रतीक भी बन चुका है. भारत-पाकिस्तान सीमा के बिल्कुल पास स्थित तनोट माता मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके चमत्कारी इतिहास ने इसे भारतीय सेना और आम लोगों दोनों के बीच विशेष सम्मान दिलाया है. तनोट माता को ‘थार की वैष्णो देवी’ और ‘सैनिकों की देवी’ के रूप में भी जाना जाता है.
भक्त दूर-दूर से यहां माता के दर्शन करने और अपनी मनोकामनाएं पूरी करने आते हैं. यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमा पर शांति और शक्ति का प्रतीक भी है. इस चमत्कारी मंदिर की कहानी आज भी लोगों को आश्चर्यचकित करती है और मां तनोट के प्रति उनकी श्रद्धा को और बढ़ाती है. आइए इस मंदिर के प्राचीन इतिहास के बारे में जानते है.
तनोट माता मंदिर का चमत्कारी इतिहास
तनोट माता को हिंगलाज माता का अवतार माना जाता है. यह मंदिर 12वीं शताब्दी में बना था और यहां की मान्यता है कि माता तनोट अपने भक्तों की रक्षा स्वयं करती हैं. यह आस्था सिर्फ जनश्रुति तक सीमित नहीं, बल्कि इतिहास ने भी इसे प्रमाणित किया है. पाकिस्तानी सेना ने कई बार मंदिर को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन हर बार माता की कृपा से उनके प्रयास विफल रहे. मंदिर की दीवारों या संरचना को कोई नुकसान नहीं पहुंचा. यह घटना न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि भारतीय सेना के जवानों के लिए भी एक अद्भुत रहस्य और अटूट आस्था का प्रतीक बन गई.
1965 की भारत-पाक युद्ध में चमत्कार
इस मंदिर की सबसे चर्चित घटना 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान सामने आई. पाकिस्तान की ओर से तनोट क्षेत्र में भारी बमबारी की गई थी. लगभग 3,000 बम मंदिर परिसर और उसके आसपास गिरे, लेकिन न तो मंदिर को कोई नुकसान हुआ और न ही कोई बम फटा. भारतीय सेना के जवानों का मानना है कि यह माता तनोट की कृपा थी.
1971 के युद्ध में भी मिला आशीर्वाद
1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भी इस मंदिर ने चमत्कारिक ढंग से भारतीय सैनिकों का मनोबल बढ़ाया. इस युद्ध में भी तनोट क्षेत्र एक अहम मोर्चा बना रहा, लेकिन माता की कृपा से भारतीय सेना ने विजय प्राप्त की. इसके बाद भारतीय सीमा सुरक्षा बल ने इस मंदिर की देखरेख का जिम्मा ले लिया.
BSF द्वारा संचालित होता है मंदिर
आज भी तनोट माता मंदिर की देखरेख सीमा सुरक्षा बल के जवान करते हैं. वे न सिर्फ मंदिर की साफ-सफाई व पूजा-पाठ का ध्यान रखते हैं, बल्कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भी सुरक्षा और व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं. हर रोज यहां ध्वजवंदन और आरती एक सैन्य अनुशासन की तरह होती है.
पर्यटन और श्रद्धालुओं के लिए बना आकर्षण
तनोट माता मंदिर एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल बन चुका है. देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. जैसलमेर से तनोट की दूरी करीब 120 किलोमीटर है, और रास्ते में थार रेगिस्तान की खूबसूरती भी श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती है.मंदिर परिसर में आज भी उन बमों को देखा जा सकता है जो युद्ध के दौरान गिरे थे लेकिन फटे नहीं. ये बम अब कांच के बक्सों में रखे गए हैं और श्रद्धालुओं के लिए यह एक जीवंत प्रमाण हैं कि ईश्वर में आस्था से असंभव भी संभव हो सकता है.