स्टडी में खुलासा, सप्ताह में दो बार रेड मीट के सेवन से टाइप 2 मधुमेह का खतरा अधिक
चेन्नई, 26 अक्टूबर (हि.स.)। पौधे-आधारित प्रोटीन स्रोतों की तुलना में रेड मीट से मधुमेह का खतरा अधिक है और पर्यावरणीय क्षति भी। एक नए अध्ययन के अनुसार, जो लोग प्रति सप्ताह में दो बार रेड मीट खाते हैं, उनमें टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि रेड मीट के स्थान पर पौधे-आधारित प्रोटीन स्रोतों जैसे नट्स और फलियां या मामूली मात्रा में डेयरी खाद्य पदार्थों का सेवन करने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा कम रहता है।
द अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट के अनुसार जो लोग प्रति सप्ताह केवल दो बार रेड मीट खाते हैं, उनमें पेड़-पौधों से प्राप्त प्रोटीन स्रोत की तुलना में रेड मीट से प्राप्त प्रोटीन के उपयोग से टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। यह भी देखा कि लाल मांस के स्थान पर यदि मेवा-फल या स्वस्थ पौधों पर आधारित प्रोटीन स्रोतों और फलियां या थोड़ी मात्रा में डेयरी खाद्य का उपयोग किया जाए तो यह खतरा काफी हद तक कम हो सकता है।
हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पोस्ट-डॉक्टरल रिसर्च फेलो तथा शोध पत्र के प्रथम लेखक डॉ जिओ-गु जो के अनुसार, इस अनुसंधान का निष्कर्ष है बुद्धिमानी से आहार का चुनाव। इसलिए, हम लोगों को सलाह देते हैं कि रेड मीट का उपयोग कम करें।
अध्ययन में रेड मीट और टाइप 2 मधुमेह के जोखिम के बीच एक गहरा संबंध देखा गया है। इस अध्ययन में बड़ी तादाद में प्रतिभागियों को शामिल किया गया था और उसके आधार पर टाइप 2 मधुमेह के मामलों का विश्लेषण किया गया है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अमेरिका और दुनिया भर में टाइप 2 मधुमेह की दर तेजी से बढ़ रही है। समूची दुनिया के लिए यह बीमारी एक गंभीर चुनौती है, जिससे हार्ट अटैक, लिवर फेलियर, हर प्रकार के कैंसर और दिम्मनेशिया (मनोभ्रंश) की समस्या पैदा होने लगती है।
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने नर्सों और हेल्थ प्रोफेशनल्स के माध्यम से 2,16,695 प्रतिभागियों के स्वास्थ्य डेटा का विश्लेषण किया। 36 वर्षों तक, हर दो से चार साल के अंतराल में आहार का मूल्यांकन किया गया। इस दौरान, 22,000 से अधिक प्रतिभागियों को टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित पाया गया।
शोधकर्ताओं ने प्रोसेस्ड और अनप्रोसेस्ड रेड मीट का सेवन करने से टाइप 2 मधुमेह जोखिम अधिक देखी। जिन प्रतिभागियों ने सबसे अधिक लाल मांस खाया उनमें शाकाहार की तुलना में टाइप 2 मधुमेह विकसित होने का जोखिम 62 प्रतिशत अधिक था। प्रोसेस्ड लाल मांस को खाने वाले व्यक्तियों में टाइप 2 मधुमेह का जोखिम 46 प्रतिशत देखा गया, जबकि अनप्रोसेस्ड रेड मीट खाने से 24 प्रतिशत जोखिम पाया गया।
शोधकर्ताओं ने लाल मांस की एक दैनिक खुराक को दूसरे प्रोटीन स्रोत से बदलने के संभावित प्रभावों का भी अनुमान लगाया तो पाया कि इसके स्थान पर नट्स और परोसने से टाइप 2 मधुमेह का खतरा 30 प्रतिशत कम होता है, और इसकी जगह डेयरी उत्पाद परोसने से 22 प्रतिशत कम जोखिम होता है।
इस शोध पत्र के दूसरे लेखक प्रोफेसर वाल्टर विलेट ने कहा, हमारे निष्कर्षों और दूसरों द्वारा किए गए पिछले अनुसंधान कार्यों के अनुसार प्रति सप्ताह लगभग एक बार रेड मीट का उपयोग किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के अलावा, पेड़-पौधों के प्रोटीन स्रोतों की जगह रेड मीट का प्रयोग ग्रीन हाउस गैस और जलवायु परिवर्तन को भी प्रभावित करता है।
हिन्दुस्थान समाचार/डॉ. आरबी चौधरी/संजीव कुमार/वीरेन्द्र
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