गणतंत्र दिवस परेड के मार्चिंग दस्तों में सिख रेजिमेंट को सर्वश्रेष्ठ चुना गया

गणतंत्र दिवस परेड के मार्चिंग दस्तों में सिख रेजिमेंट को सर्वश्रेष्ठ चुना गया
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गणतंत्र दिवस परेड के मार्चिंग दस्तों में सिख रेजिमेंट को सर्वश्रेष्ठ चुना गया

- संस्कृति मंत्रालय की झांकी ‘भारत: लोकतंत्र की मां’ को मिला पहला स्थान

- न्यायाधीशों के तीन पैनलों के मूल्यांकन के आधार पर यह फैसला लिया गया

नई दिल्ली, 30 जनवरी (हि.स.)। गणतंत्र दिवस परेड में कर्तव्य पथ पर मार्चिंग दस्तों में सिख रेजिमेंट की टुकड़ी को तीनों सेनाओं के बीच सर्वश्रेष्ठ चुना गया है। संस्कृति मंत्रालय की झांकी ‘भारत: लोकतंत्र की मां’ ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। सीएपीएफ और अन्य सहायक बलों के बीच दिल्ली पुलिस की महिला टीम को सर्वश्रेष्ठ मार्चिंग दल का पुरस्कार घोषित किया गया।

न्यायाधीशों के तीन पैनलों के मूल्यांकन के आधार पर यह फैसला लिए गए हैं। मेजर सरबजीत सिंह की अगुवाई में भारतीय थलसेना की सिख रेजिमेंट की एक टुकड़ी ने मार्च किया था। रेजिमेंट का आदर्श वाक्य ‘निश्चय कर अपनी जीत करूं’ और युद्ध घोष ‘बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ है। इस रेजिमेंट को अब तक 82 युद्ध सम्मान, 16 थिएटर सम्मान, 10 विक्टोरिया क्रॉस, 21 ‘इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट’, दो परमवीर चक्र, तीन अशोक चक्र, एक पद्म विभूषण, दो पद्म भूषण, 11 परम विशिष्ट सेवा पदक, 14 महावीर चक्र, 12 कीर्ति चक्र और दो उत्तम विशिष्ट सेवा पदक से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा रेजिमेंट को 72 शौर्य चक्र, एक पद्मश्री, 19 अति विशिष्ट सेवा पदक, आठ वीर चक्र, नौ युद्ध सेवा पदक, 293 सेना पदक, 61 विशिष्ट सेवा पदक और सात अर्जुन पुरस्कार मिले हैं।

सिख रेजिमेंट की स्थापना ‘शेर-ए-पंजाब’ महाराजा रणजीत सिंह के सिपाहियों ने 1846 में की थी। इसने उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत (ब्रिटिश भारत का एक प्रांत) और प्रथम विश्व युद्ध के दौरान टोफ्रेक (1885), सारागढ़ी (1897), ला बस्सी (1914) और न्यूवे चैपल (1914) जैसी कई लड़ाइयों और अभियानों में अहम भूमिका निभाई है। आजादी के बाद सिख रेजिमेंट ने श्रीनगर (1947), टिथवाल (1948), बुर्की (1965), राजा (1965), पुंछ (1971) और परबत अली (1971) की लड़ाइयों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

संस्कृति मंत्रालय की झांकी 'भारत: लोकतंत्र की मां' ने प्रथम स्थान प्राप्त किया, जिसे जूरी ने मंत्रालयों/विभागों की झांकियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया। परंपरा और नवीनता के मिश्रण ने इस झांकी ने जूरी के सदस्यों और दर्शकों को समान रूप से मंत्रमुग्ध कर दिया। इस झांकी के जरिए भारत की सांस्कृतिक विरासत और भारत को लोकतंत्र की जननी के रूप में दिखाया गया है। संस्कृति मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि झांकी में परंपरा और नवोन्मेष का मिश्रण था, जिसे प्रदर्शित करने के लिए ‘एनामॉर्फिक' तकनीक के उत्कृष्ट उपयोग ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

हिन्दुस्थान समाचार/सुनीत/दधिबल

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