(वार्षिकी): मध्य प्रदेश में ‘संपदा 2.0’ से पूरी तरह पेपरलेस भू-पंजीयन का युग शुरू

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(वार्षिकी): मध्य प्रदेश में ‘संपदा 2.0’ से पूरी तरह पेपरलेस भू-पंजीयन का युग शुरू


- मध्यप्रदेश को संपदा 2.0 के लिए मिला ‘राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस स्वर्ण पुरस्कार’

भोपाल, 23 दिसंबर (हि.स.)। मध्य प्रदेश ने 2025 में ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूत पहचान बनाई है। राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी डिजिटल पहल ‘संपदा 2.0’ को राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस पुरस्कार 2025 में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। यह सम्मान एक सॉफ्टवेयर या तकनीकी प्लेटफॉर्म की सफलता से कहीं अधिक उस व्यापक बदलाव का प्रतीक है जिसके जरिए प्रदेश में भू-दस्तावेजों का पंजीयन अब पूरी तरह पेपरलेस और पारदर्शी बनता जा रहा है। यह पहल आम नागरिक के अनुभव को सरल, तेज और भरोसेमंद बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम मानी जा रही है।

राज्‍य में लंबे समय तक जमीन-जायदाद से जुड़े दस्तावेजों का पंजीयन आम लोगों के लिए एक जटिल, समयसाध्य और कभी-कभी परेशान करने वाली प्रक्रिया रही है। उप-पंजीयक कार्यालयों के चक्कर, कागजी फाइलें और पारदर्शिता की कमी ये सभी समस्याएं वर्षों से बनी हुई थीं। इन्हीं चुनौतियों को दूर करने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश सरकार ने ‘संपदा’ पोर्टल की शुरुआत की थी, जिसे उन्नत स्वरूप में ‘संपदा 2.0’ के रूप में लागू किया गया है।

‘संपदा 2.0’ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह भू-पंजीयन की पूरी प्रक्रिया को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ले आता है। अब नागरिकों को पंजीयन के लिए अनिवार्य रूप से सरकारी कार्यालय जाने की जरूरत नहीं पड़ती। वीडियो केवाईसी, आधार आधारित सत्यापन, डिजिटल सिग्नेचर और ई-साइन जैसी आधुनिक तकनीकों के माध्यम से घर बैठे ही दस्तावेजों का पंजीयन संभव हो गया है। यही कारण है कि इसे फेसलेस रजिस्ट्रेशन सिस्टम कहा जा रहा है।

प्रदेश में लागू इस प्रणाली के तहत भारतीय स्टाम्प अधिनियम के अंतर्गत आने वाले लगभग 140 प्रकार के दस्तावेजों में से 70 से अधिक दस्तावेजों का ई-रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन किया जा सकता है। बिक्री विलेख, दान पत्र, बंधक, लीज, पॉवर ऑफ अटॉर्नी जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज अब डिजिटल माध्यम से पंजीकृत हो रहे हैं। इससे समय की बचत होने के साथ ही मानवीय हस्तक्षेप कम होने से पारदर्शिता भी बढ़ी है।

इस संबंध में वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता आशुतोष कुमार झा कहते हैं कि ‘संपदा 2.0’ को सफल बनाने में जीआईएस आधारित भूमि जानकारी, गाइडलाइन वैल्यू, स्टाम्प शुल्क की स्वचालित गणना और ऑनलाइन भुगतान प्रणाली की बड़ी भूमिका है। नागरिक अब किसी भी संपत्ति की गाइडलाइन दर, लोकेशन और संबंधित विवरण ऑनलाइन देख सकते हैं। इससे गलत मूल्यांकन और विवाद की संभावना कम हुई है। डिजिटल रिकॉर्ड के कारण दस्तावेज सुरक्षित रहते हैं और भविष्य में उनकी जांच-पड़ताल भी आसान हो जाती है।

एडवोकेट धनंजय प्रताप सिंह का कहना है कि प्रदेश में शुरू हुई इस पूरी प्रक्रिया में पेपरलेस सिस्टम एक बड़ा बदलाव है। पहले जहां फाइलों के ढेर, स्टाम्प पेपर और भौतिक दस्तावेजों पर निर्भरता थी, अब वही काम डिजिटल डॉक्यूमेंट और क्लाउड-आधारित स्टोरेज के जरिए हो रहा है। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिला है, बल्कि सरकारी खर्च और संचालन लागत में भी व्‍यापक तौर पर कमी आती हुई दिखाई दी है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में प्रदेश सरकार सुशासन और डिजिटल गवर्नेंस को विकास की बुनियाद मानकर आगे बढ़ रही है। सरकार का मानना है कि पारदर्शी और सरल प्रशासन जनता का भरोसा बढ़ाता है, निवेश के लिए भी अनुकूल माहौल तैयार करता है। भूमि पंजीयन जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया का डिजिटलीकरण निवेशकों के लिए भी बड़ा संदेश है कि मध्यप्रदेश में सिस्टम भरोसेमंद और आधुनिक है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, ‘संपदा 2.0’ लागू होने के बाद पंजीयन प्रक्रिया में लगने वाला समय 60 से 70 प्रतिशत तक कम हुआ है। पहले जहां एक पंजीयन में कई घंटे या कभी-कभी दिन लग जाते थे, अब वही प्रक्रिया कुछ ही चरणों में पूरी हो रही है। इसका सीधा लाभ आम नागरिक, वरिष्ठ नागरिकों, महिलाओं और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को मिला है।

राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस पुरस्कार 2025 में स्वर्ण पदक मिलना इस बात का प्रमाण है कि मध्यप्रदेश की यह पहल केवल राज्य स्तर से आगे राष्ट्रीय मंच पर भी श्रेष्ठ मानी गई है। इस पुरस्कार के लिए देशभर से आई ई-गवर्नेंस परियोजनाओं का मूल्यांकन नवाचार, प्रभाव, पारदर्शिता और नागरिक सुविधा जैसे मानकों पर किया गया था। ‘संपदा 2.0’ इन सभी कसौटियों पर खरी उतरी।

भविष्य की योजनाओं में ‘संपदा 2.0’ को और अधिक उन्नत बनाने की तैयारी है। इसे अन्य राजस्व सेवाओं, नगर निगम रिकॉर्ड और भू-अभिलेख प्रणालियों से जोड़ने पर काम चल रहा है, ताकि जमीन से जुड़े सभी रिकॉर्ड एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हो सकें। इससे भूमि विवादों में कमी आएगी और न्यायिक प्रक्रिया पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। ‘संपदा 2.0’ आज मध्य प्रदेश के उस डिजिटल भविष्य की झलक है, जहां सेवाएं नागरिक के दरवाजे तक, बिना कागज और बिना झंझट के पहुंच रही हैं। वर्ष 2025 के लिए मध्‍य प्रदेश के लिहाज से आप इसे एक बड़ी उपलब्‍ध‍ि मान सकते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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