विश्व का सबसे बड़ा साहित्योत्सव सम्पन्न, आइंस्टीन वर्ल्ड रिकार्ड्स ने विश्व कीर्तिमान का दिया प्रमाण पत्र
-अंतिम दिन रहा दिव्यांग लेखकों के नाम
नई दिल्ली, 16 मार्च (हि.स.)। साहित्य अकादमी के तत्वावधान में आयोजित विश्व के सबसे बड़े साहित्योत्सव-2024 का शनिवार को समापन हो गया। छह दिवसीय इस समारोह का अंतिम दिन दिव्यांग लेखकों के नाम रहा। दिव्यांग लेखकों को राष्ट्रव्यापी मंच प्रदान करने के लिए अखिल भारतीय दिव्यांग लेखक सम्मिलन का आयोजन किया गया। वहीं बच्चों में साहित्य के प्रति रुचि जगाने को लेकर दिल्ली एवं एनसीआर के 850 से ज्यादा बच्चों के लिए कई प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया।
आज के अन्य महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में गोपीचंद नारंग के जीवन और कृतित्व पर परिसंवाद, बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक समाज में अनुवाद, भारत की भाषाओं का संरक्षण, भारतीय संदर्भ में पुनर्लेखन/पुनःसृजन के रूप में अनुवाद, भारतीय अंग्रेजी लेखन और अनुवाद के अतिरिक्त भारतीय वाचिक महाकाव्य एवं स्वातंत्र्योत्तर भारतीय साहित्य पर चल रही राष्ट्रीय संगोष्ठियों का भी समापन हुआ।
छह दिवसीय इस समारोह को दुनिया का सबसे बड़ा साहित्योत्सव मानते हुए आज आइंस्टीन वर्ल्ड रिकार्ड्स, दुबई की टीम ने एक सादे समारोह में इस विश्व कीर्तिमान का प्रमाण-पत्र साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक, उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा एवं सचिव के. श्रीनिवासराव को सौंपा। प्रमाण-पत्र में छह दिन चले दुनिया के इस सबसे बड़े साहित्योत्सव में 190 सत्रों में 1100 से अधिक लेखकों के भाग लेने और इसमें 175 से अधिक भाषाओं का प्रतिनिधित्व होने को प्रमाणित किया गया है।
अखिल भारतीय दिव्यांग लेखक सम्मिलन के उद्घाटन सत्र में प्रख्यात अंग्रेजी विद्वान जीजेवी प्रसाद ने कहा कि हम उन जैसे नहीं हैं, लेकिन हमें उनके लिए सजग और स्नेह से कार्य करना होगा। दिव्यांगता जन्मजात नहीं बल्कि कई बार हमारी अपनी अज्ञानता और लापरवाही के कारण हमें प्राप्त होती है। उन्होंने सभी दिव्यांग रचनाकारों से अनुरोध किया कि वह अपनी विशेष क्षमताओं को पहचान कर उनपर काम करें, उन्हें मंज़िल अवश्य प्राप्त होगी।
अपने अध्यक्षीय भाषण में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने विभिन्न क्षेत्रों में दिव्यांगजनों द्वारा पाई गई उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा कि दिव्यांगजनों को हौसले की ऊर्जा से आगे बढ़ना होगा, तभी वह अपनी मनचाही मंजिल प्राप्त कर सकेंगे। उद्घाटन सत्र के आरंभ में साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि आज 24 भारतीय भाषाओं के दिव्यांग लेखकों को यहां उपस्थित पाकर साहित्य अकादमी अपने को गर्वित महसूस कर रही है।
साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष एवं महत्तर सदस्य गोपीचंद नारंग को याद करते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक परिसंवाद का आयोजन किया गया। इसके मुख्य अतिथि गुलजार और नारंग जी की धर्मपत्नी मनोरमा नारंग थीं। गुलजार ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि गोपीचंद नारंग का व्यक्तित्व और कृतिव उनके हुनर और आलिमियत का खूबसूरत मुजस्समा है।
बीज वक्तव्य प्रख्यात उर्दू विद्वान निज़ाम सिद्दीकी ने दिया। विशिष्ट अतिथि के रूप में सदीकुर्रहमान क़िदवई ने अपना वक्तव्य दिया। अध्यक्षता साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की। आरंभिक वक्तव्य उर्दू परामर्श मंडल के संयोजक चंद्र भान ख़याल ने दिया। इन कार्यक्रमों में भाग लेने वाले महत्वपूर्ण लेखक और विद्वान थे- हरीश नारंग, दामोदर खड़से, अन्विता अब्बी, रीता कोठारी, के. इनोक, देबाशीष चटर्जी, उदयनारायण सिंह, मंमग दई, सुकृता पॉल कुमार, शाफे किदवई, शमीम तारीक आदि।
हिन्दुस्थान समाचार/पवन/आकाश
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