जयशंकर ने किया ट्रम्प के दावे का खंडन, शाह बोले शपथ लिए मंत्री पर भरोसा करे विपक्ष
नई दिल्ली, 28 जुलाई (हि.स.)। विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने सोमवार को लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में भाग लेते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस दावे का खंडन किया कि पाकिस्तान के साथ संघर्ष विराम को रोकने में उनकी भूमिका थी। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रधानमंत्री मोदी और ट्रम्प के बीच इस दौरान कोई बातचीत नहीं हुई और अमेरिकी नेताओं से बातचीत में कभी भी व्यापार का मुद्दा नहीं आया।
विदेश मंत्री ने सदन को बताया कि भारत की 10 मई को तड़के की गई विध्वंस कार्रवाई से पाकिस्तान घबरा गया। विभिन्न देशों के माध्यम से अनुरोध आया कि पाकिस्तान संघर्ष विराम चाहता है। हमने स्पष्ट किया कि हमला पाकिस्तान के उकसावे का नतीजा था और अगर वह संघर्ष विराम चाहता है तो आधिकारिक चैनल यानी डीजीएमओ स्तर पर इसका अनुरोध करे। हमें पाकिस्तान से इसका अनुरोध प्राप्त हुआ और उसके बाद भारत के हमलों को रोका गया।
विदेश मंत्री ने घटनाक्रम से सदन को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि 9 मई को अमेरिकी उपराष्ट्रपति का फोन आया और उन्होंने बताया कि पाकिस्तान बड़ा हमला करने जा रहा है। प्रधानमंत्री का जवाब था कि हमले का जवाब उचित ढंग से दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वे स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि 22 अप्रैल को पहलगाम हमले पर दुख जताने के बाद राष्ट्रपति ट्रम्प और प्रधानमंत्री के बीच 17 जून को बातचीत हुई। इस बीच कोई बातचीत नहीं हुई।
विदेश मंत्री के बयान के बाद विपक्ष ने सदन में शोर-शराबा शुरु कर दिया। इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि विपक्ष को सदन में बोल रहे भारत में शपथ लिए मंत्री (जयशंकर) पर भरोसा नहीं है बल्कि विदेशी नेता (डॉनल्ड ट्रम्प) पर भरोसा है।
विदेश मंत्री ने अपने वक्तव्य में पूरे घटनाक्रम में हासिल रणनीतिक उपलब्धि गिनाई। इससे भारत ने अब पाकिस्तान के साथ नया ‘यथार्थ’ (न्यू नोर्मल) स्थापित किया है। यह है- आतंक कोई प्रोक्सी युद्ध नहीं है। आतंकी हमले का उचित जवाब दिया जाएगा। आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चलेगी। भारत अब परमाणु हमले की धमकी नहीं मानेगा। खून और पानी एक साथ नहीं बहेगा।
विदेश मंत्री ने पहलगाम हमले के बाद भारत की कुटनीति के बारे में भी सदन को जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इस कुटनीति के कारण ही दुनिया के 196 में से 193 देशों ने भारत की आतंक पर कार्रवाई यानी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का विरोध नहीं किया। उन्होंन बताया कि हमारा उद्देश्य पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देना था जिसमें हम सफल रहे।
विदेश मंत्री ने पहलगाम हमले के दोषी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के प्रोक्सी टीआरएफ को अमेरिका की ओर से आंतकी संगठन घोषित किए जाने को उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि जर्मनी के विदेश मंत्री ने उनके साथ भारत के अपनी सुरक्षा के अधिकार का समर्थन किया। यह समर्थन भारत को फ्रांस और यूरोपीय संघ से भी मिला।
विदेश मंत्री ने विपक्ष के कई आरोपों का भी जवाब दिया। आईएमएफ की ओर से पाकिस्तान को मदद मिलने को विपक्ष ने सरकार की असफलता बताया था जिसके जवाब में विदेश मंत्री ने गिनाया की 26/11 के आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान को आईएमएफ से 15 बिलियन डॉलर की मदद मिली थी।
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हिन्दुस्थान समाचार / अनूप शर्मा

