समाज की मजबूती पर ही परिवार का अस्तित्व व सुरक्षा निर्भरः भागवत

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समाज की मजबूती पर ही परिवार का अस्तित्व व सुरक्षा निर्भरः भागवत


कोलकाता, 19 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शुक्रवार को कहा कि एक स्वस्थ और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए सकारात्मक और सद्गुणों से युक्त शक्तियों का आपसी सहयोग जरूरी है। सभी को एक दिशा में मिलकर आगे बढ़ना होगा। डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि चरित्र निर्माण केवल उन्हीं व्यक्तियों के माध्यम से संभव है, जिनका जीवन सादा हो और समाज से उनका सक्रिय जुड़ाव बना रहे।

डॉ. भागवत ने पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में आयोजित प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने परिवार की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि हर परिवार को यह आत्ममंथन करना चाहिए कि वह समाज की समृद्धि के लिए कितना समय, श्रम और संसाधन दे रहा है, क्योंकि समाज की मजबूती पर ही परिवार का अस्तित्व और सुरक्षा निर्भर करती है।

यह सम्मेलन संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में उत्तर बंगाल प्रांत की ओर से उत्तर बंगाल मारवाड़ी भवन में आयोजित किया गया। सम्मेलन में उत्तर बंगाल के आठ जिलों और पड़ोसी राज्य सिक्किम से आए सौ से अधिक प्रबुद्ध नागरिकों ने भाग लिया। सम्मेलन का विषय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्षों की यात्रा रहा। इसमें समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों ने भाग लिया।

सरसंघचालक डॉ. भागवत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर फैली भ्रांतियों पर कहा कि संघ को पारंपरिक संगठनात्मक ढांचे से नहीं समझा जा सकता, क्योंकि ऐसा कोई अन्य संगठन नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ की स्थापना किसी का विरोध करने या व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं हुई, बल्कि समाज के हर वर्ग में निःस्वार्थ सेवा की भावना को विकसित करने और बिना प्रचार एवं व्यक्तिगत पहचान की इच्छा के सामाजिक कार्य करने वालों को जोड़ने के उद्देश्य से हुई है।

संघ संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का उल्लेख करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि गरीबी और कठिन परिस्थितियों के बावजूद डॉ. हेडगेवार ने अध्ययन के प्रति समर्पण और राष्ट्रसेवा की भावना को जीवन का आधार बनाया। उन्होंने ऐसा कार्य तंत्र विकसित किया, जो राष्ट्रसेवा के हर रूप को पोषित करता है।

शताब्दी वर्ष को लेकर संघ प्रमुख भागवत ने बताया कि स्वयंसेवक घर-घर जाकर पंच परिवर्तन के बारे में जागरुकता फैलाएंगे। आचरण के माध्यम से किए गए ये पांच बदलाव ही राष्ट्र के कल्याण में बड़ा योगदान दे सकते हैं और यही शताब्दी समारोह की असली भावना होगी।

सम्मेलन के दौरान संघ की सौ वर्षों की यात्रा, उसकी विचारधारा और सामाजिक तथा राष्ट्रीय विकास में उसकी भूमिका पर गहन चर्चा की गई। मोहन भागवत ने सामाजिक पुनर्निर्माण, नागरिक जिम्मेदारी और समाज व राष्ट्र को मजबूत बनाने में जागरूक नागरिकों की भूमिका पर विस्तार से विचार रखे।

सम्मेलन का समापन संवाद, सामाजिक जिम्मेदारी और व्यक्तिगत आचरण को राष्ट्रीय विकास की मजबूत नींव मानने के संकल्प के साथ हुआ, जो संघ के शताब्दी वर्ष के व्यापक संदेश का हिस्सा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर

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