विविधता में एकता भारतीय सनातन संस्कृति का विशिष्ट और प्राचीन गुणः संघ प्रमुख डॉ भागवत
समालखा/नई दिल्ली, 21 सितंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आएसएस) के प्रमुख डॉ मोहन भागवत का कहना है कि विविधता में एकता भारतीय सनातन संस्कृति का विशिष्ट और प्राचीन गुण है। आज दुनिया भर में यूनिवर्सिटी इन डायवर्सिटी की जो चर्चा की जाती है, उन्हें हमारे जनजातीय समाज की पूजा पद्धति ही देख लेनी चाहिए। जिसका एक साथ प्रदर्शन आज यहां समालखा में हो रहा है।
अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता सम्मेलन में पारंपरिक पूजा पद्धति का उद्घाटन करते हुए संघ के सरसंघचालक डॉ भागवत ने कहा कि हिन्दू जीवन पद्धति में प्राचीन काल से, सनातन काल से प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित कर उसकी पूजा की जाती रही है। इन पूजा पद्धतियों में विविधता है और एक समानता भी है। हमारे पुरखों ने प्रकृति में भी वही चैतन्य देखा जो उनके भीतर विद्यमान था। पेड़ पौधा, नदी जंगल ज़मीन पहाड़ यानी पंच तत्वों का उपासक हमारा समाज अपनी परम्परा से इसे संजोये हुए है। हमें दर्शन कर उसका महत्व समझना चाहिए।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस अवसर पर देशभर की जनजातियों की भिन्न-भिन्न पूजा पद्धतियों को भी देखा और समझा। समालखा के सेवा साधना ग्राम के विशाल मैदान पर 80 टेंट्स में अलग-अलग जनजातियों के पुजारी और समाज प्रमुख अपने-अपने तरीके से पूजा की। एक प्रकार से भारतीय जनजातीय समाज का लघु रूप सबको दिखा। बड़ी संख्या में स्थानीय समाज वनवासी समाज की पूजा और संस्कृति देखने आया था।
उल्लेखनीय है कि देश के सभी राज्यों की सभी जनजातियों के कुल मिलकर 2000 के क़रीब प्रतिनिधि समालखा में तीन दिन के लिए जुटे हैं। इस कार्यकर्ता सम्मेलन का उद्घाटन प्रसिद्ध कथावाचक रमेश भाई ओझा ने किया। संघ प्रमुख रविवार को समापन के समय सबका मार्गदर्शन करेंगे।
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हिन्दुस्थान समाचार / प्रभात मिश्रा
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