शांति विधेयक पर लगी संसद की मुहर, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में नया अध्याय

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शांति विधेयक पर लगी संसद की मुहर, परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में नया अध्याय


नई दिल्ली, 18 दिसंबर (हि.स.)। भारत के रूपांतरण के लिए नाभिकीय ऊर्जा के संधारणीय दोहन और अभिवर्धन विधेयक 2025 यानी शांति विधेयक पर संसद ने अपनी मुहर लगा दी है। लोकसभा के बाद राज्य सभा में भी गुरुवार को छह घंटे से अधिक चली मैराथन बहस के बाद इसे ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इससे पहले बुधवार को यह विधेयक लोकसभा से मंजूरी प्राप्त कर चुका था।

राज्य सभा में विधेयक के पारित होने के दौरान विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया और इसे स्थायी समिति के पास भेजने की मांग की, हालांकि सरकार ने आपत्तियों को खारिज करते हुए विधेयक को मंजूरी दिला दी।

विधेयक पर चर्चा के दौरान सत्ता पक्ष ने इसे देश की ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों और भविष्य की आवश्यकताओं के लिए अहम करार दिया, जबकि विपक्ष ने सुरक्षा, दायित्व, निजीकरण और नियामक ढांचे को लेकर गंभीर सवाल उठाए। विपक्षी सदस्यों का कहना था कि इतने महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर पर्याप्त समय और गहन संसदीय जांच आवश्यक थी।

परमाणु ऊर्जा विभाग में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि यह कानून बदले हुए समय, तकनीक और वैश्विक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लाया गया है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 में जिस प्रकार के कानून का विरोध हुआ था, आज परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। उन्होंने कहा, “तकनीक तेजी से बदल रही है और यह बदलाव गतिशील है। अब हम स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स के दौर में हैं, जो पहले की तुलना में अधिक सुरक्षित हैं और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भी बिजली उत्पादन की क्षमता रखते हैं।”

डॉ. सिंह ने सदन को आश्वस्त किया कि शांति विधेयक के तहत अपनाए जाने वाले सुरक्षा मानक वही हैं, जो 1962 के परमाणु कानून में निर्धारित किए गए थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में सुरक्षा से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जाएगा।” उन्होंने यह भी कहा कि सरकार सभी सुझावों और आशंकाओं पर चर्चा के लिए तैयार है।

मंत्री ने अपने संबोधन में बताया कि परमाणु ऊर्जा 24×7 भरोसेमंद बिजली का स्रोत है, जबकि सौर और पवन जैसी अन्य नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों में निरंतरता की चुनौती रहती है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा सुरक्षा और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।

डॉ. सिंह ने आंकड़ों के माध्यम से सरकार की उपलब्धियां भी गिनाईं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2014 से पहले परमाणु ऊर्जा विभाग का बजट 13,879 करोड़ रुपये था, जो वर्तमान वित्त वर्ष में बढ़कर 37,483 करोड़ रुपये हो गया है। वर्ष 2015 में सरकार ने परमाणु क्षेत्र में संयुक्त उपक्रमों की अनुमति दी थी, हालांकि उस समय यह केवल सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों तक सीमित थी। वर्ष 2017 में मंत्रिमंडल ने एक साथ 10 परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की मंजूरी दी और सितंबर 2025 में प्रधानमंत्री द्वारा चार नए परमाणु रिएक्टरों की आधारशिला रखी गई।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 में देश की परमाणु ऊर्जा क्षमता 4.7 गीगावाट थी, जो अब बढ़कर 8.9 गीगावाट हो चुकी है। हालांकि यह कुल बिजली उत्पादन का केवल तीन प्रतिशत है। सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष 2047 तक इसे कम से कम 10 प्रतिशत तक पहुंचाया जाए। इसी उद्देश्य से इस वर्ष के बजट में न्यूक्लियर एनर्जी मिशन की शुरुआत की गई है, जिसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी एक प्रमुख घटक होगी।

विधेयक के समर्थन में भाजपा सांसद किरण चौधरी ने कहा कि शांति विधेयक पुराने और बिखरे हुए कानूनों को समाप्त कर एक आधुनिक और एकीकृत ढांचा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक लाइसेंसिंग, सुरक्षा मंजूरी, दायित्व और मुआवजे से जुड़े प्रावधानों को एक ही कानून में समाहित करता है, जिससे नीतिगत भ्रम समाप्त होगा। उन्होंने विपक्ष पर निजीकरण को लेकर अनावश्यक भय फैलाने का आरोप लगाया।

राज्यसभा में चर्चा के दौरान मनोनीत सदस्य हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि यह विधेयक भारत के ऊर्जा भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। उनके अनुसार, यह कानून परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को आधुनिक बनाने, निवेश को प्रोत्साहित करने और राष्ट्रीय सुरक्षा व जनसुरक्षा को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाया गया है।

विपक्ष की ओर से कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने भारत की परमाणु ऊर्जा यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि इस क्षेत्र की नींव 2014 से बहुत पहले रखी जा चुकी थी। उन्होंने 1948 में पारित पहले परमाणु कानून, परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना, डॉ. होमी भाभा के नेतृत्व में तीन चरणीय परमाणु कार्यक्रम और अप्सरा रिएक्टर जैसे उदाहरणों का हवाला दिया।

तृणमूल कांग्रेस की सांसद सागरिका घोष ने शांति विधेयक को “भारतीय परमाणु ऊर्जा प्रणाली का कुलीनकरण” बताया। डीएमके सांसद पी. विल्सन ने आरोप लगाया कि यह विधेयक आपूर्तिकर्ता की जिम्मेदारी को कमजोर करता है और परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन जैसे गंभीर मुद्दों पर स्पष्टता नहीं देता।

आम आदमी पार्टी के सांसद संदीप कुमार पाठक ने कहा कि भारत विदेशी निजी परमाणु मॉडल तो अपना रहा है, लेकिन उनके जैसे सख्त नियामक ढांचे को लागू नहीं कर रहा। उन्होंने नियामक संस्थाओं को संसद के प्रति जवाबदेह और पूरी तरह स्वतंत्र बनाने की मांग की।

उल्लेखनीय है कि शांति विधेयक, 2025 के पारित होने के साथ ही भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में एक नए अध्याय की शुरुआत मानी जा रही है। हालांकि सरकार ने बार-बार यह भरोसा दिलाया है कि निजी भागीदारी के बावजूद सुरक्षा, संप्रभुता और जनहित से कोई समझौता नहीं किया जाएगा, लेकिन विपक्ष ने संकेत दिए हैं कि वह इसके क्रियान्वयन पर कड़ी नजर बनाए रखेगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / सुशील कुमार

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